एनकाउंटर इन्साफ का एक तरीका या कुछ और??? उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े एनकाउंटर्स की एक झलक, पढ़े पूरी स्टोरी

31/जुलाई 2020(कंटेंट सोर्सिंग असिस्टेंस- शैलेंदर, डिस्ट्रिक्ट मोरेना, राज्य- मध्य प्रदेश, एडिटिंग- अमित)- दोस्तों जहाँ अभी एक तरफ उत्तर प्रदेश में विकास दुबे के एनकाउंटर की कहानी ठंडी नहीं हुई है इसी बीच हमने सोचा की आप सबको  एक ऐसी कहानी बताएं जिसमे उन सभी एनकाउंटर्स पे एक झलक डाली जाये जो  कुछ ऐसे एनकाउंटर्स थे जो विकास दुबे से कही ज्यादा बड़े और खतरनाक गैंगस्टरों के किस्से को हमेशा के लिए खत्म कर गए, इस कहानी का मकसद उत्तर प्रदेश पुलिस या फिर एस. टी. एफ की तारीफ करना नहीं है बल्कि देश के नौजवानो को ये सन्देश देना है की जुर्म का रास्ता चाहे कितन भी चमकीला और आकर्षित करने वाला हो पर मंजिल इसकी दर्दनाक मौत ही है इस लिए कभी भी जुर्म के रस्ते को विकल के तोर पे न चुने, आइए चलते हैं कहानी की शुरुआत की ओर

1. उत्तर प्रदेश का आजतक का सबसे बड़ा एनकाउंटर– Indiatoday.in अपने एक आर्टिकल में लिखता है की यूपी पुलिस 90 के दशक के एक एनकाउंटर को आज भी नहीं भूल पाई है जो बिना शक यूपी पुलिस के इतिहास में अब तक का सबसे बड़ा एनकाउंटर था. एनकाउंटर कुख्यात माफिया डॉन श्रीप्रकाश शुक्ला का, जो 90 के दशक में यूपी में आतंक का सबसे बड़ा नाम था और जिसके लिए यूपी पुलिस को खास तौर पर स्पेशल टास्क फ़ोर्स तक बनानी पड़ी थी. श्रीप्रकाश शुक्ला का शूटआउट 23 सितंबर 1998 को दिल्ली के करीब गाज़ियाबाद में हुआ था.

श्रीप्रकाश शुक्ला का जन्म गोरखपुर के मामखोर गांव में हुआ था. उसके पिता एक स्कूल में शिक्षक थे. वह अपने गांव का मशहूर पहलवान हुआ करता था. साल 1993 में श्रीप्रकाश शुक्ला ने उसकी बहन को देखकर सीटी बजाने वाले एक व्यक्ति की हत्या कर दी थी. 20 साल के युवक श्रीप्रकाश के जीवन का यह पहला जुर्म था

श्री प्रकाश शुक्ला ने उस समय के उत्तर प्रदेश के सबसे ताकतवर बाहुबली और डॉन वीरेंदर प्रताप शाही की हत्या 1997 में लखनऊ में हत्या कर दी.

श्रीप्रकाश शुक्‍ला ने 13 जून 1998 को पटना स्थित इंदिरा गांधी हॉस्पिटल के बाहर बिहार सरकार के तत्‍कालीन मंत्री बृज बिहारी सिंह की गोली मारकर हत्‍या कर दी. मंत्री की हत्‍या उस वक्‍त की गई जब उनके साथ सिक्‍योरिटी गार्ड मौजूद थे. वो अपनी लाल बत्ती कार से उतरे ही थे कि एके 47 से लैस 4 बदमाशों ने उनपर फायरिंग शुरु कर दी, इस गोली बारी में मंत्री जी की घटना स्थल पर ही मौत हो गई थी

बिहार के मंत्री के कत्ल के मामले की राख अभी ठंडी भी नहीं हुई थी कि तभी यूपी पुलिस को एक ऐसी खबर मिली जिससे पुलिस के हाथ-पांव फूल गए. श्रीप्रकाश शुक्ला ने यूपी के तत्‍कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की सुपारी 6 करोड़ रुपये में ले ली थी. कहा जाता है की अगर शुक्ल कल्याण सिंह की सुपारी न लेता तो शायद उसका एनकाउंटर ही न होता

कल्याण सिंह की सुपारी की खबर आने के बाद उत्तर प्रदेश में पहली बार STF का गठन किया गया और इसका पहला टारगेट था श्री प्रकाश शुक्ल जिन्दा या मुर्दा, इसके बाद 23 सितंबर 1998 को एसटीएफ के प्रभारी अरुण कुमार को खबर मिलती है कि श्रीप्रकाश शुक्‍ला दिल्‍ली से गाजियाबाद की तरफ आ रहा है. श्रीप्रकाश शुक्‍ला की कार जैसे ही वसुंधरा इन्क्लेव पार करती है, अरुण कुमार सहित एसटीएफ की टीम उसका पीछा शुरू कर देती है. उसकी कार जैसे ही इंदिरापुरम के सुनसान इलाके में दाखिल होती है, मौका मिलते ही एसटीएफ की टीम अचानक श्रीप्रकाश की कार को ओवरटेक कर उसका रास्ता रोक देती है. पुलिस के मुताबिक पुलिस ने पहले श्रीप्रकाश को सरेंडर करने को कहा लेकिन वो नहीं माना और फायरिंग शुरू कर दी. पुलिस की जवाबी फायरिंग में श्रीप्रकाश शुक्ला मारा गया और इस तरह से यूपी के सबसे बड़े डॉन की कहानी हमेशा के लिए खत्म हुई. विकास दुबे के एनकाउंटर की तरह ही श्री प्रकाश शुक्ला के एनकाउंटर पे भी कई सवाल उठे थे

 

sources- indiatoday.in, www.patrika.com, www.newsbust.in

 

2. सुन्दर गुज्जर दुज्जाना एनकाउंटर केस– सुन्दर गुज्जर का नाम आप मेसे कुछ ही लोगो ने सुना होगा पर 7 0और 80 के दशक में हिंदुस्तान का कोई भी व्यक्ति शायद न हो जिसने सुन्दर गुज्जर के किस्से न सुने हो, मशहूर ब्लॉगर संजीव बैसला अपने ब्लॉग में लिखते है की सुन्दर गुज्जर ने उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर के दुजाना गांव में एक खाते पीते परिवार में जन्म लिया, संजीव बैसला अपने ब्लॉग में लिखते है की सुन्दर गुज्जर उस समय का इकलौता दबंग था जिसने उस समय की देश की प्रधान मंत्री इंद्रा गाँधी तक को मारने की धमकी दे चूका था, बतौर संजीव बैसला सुन्दर गुज्जर ने अपराध की दुनिया का रास्ता इस लिए चुना था की कभी उसके भाई का अपमान हुआ था जिसका बदला लेना सुन्दर अपना फर्ज समझता था इसके इलावा संजीव बैसला लिखते है की कहा तो ऐसा भी जाता है की सुन्दर की बहन के साथ एक बार छेड़ छाड़ न होती तो शायद सुन्दर जुर्म का रास्ता न चुनता, साथ ही संजीव बैसला ये भी लिखते है की भाई के अपमान और बहन के साथ हुए छेद छाड वाली कहानी का कही भी कोई भी सबूत मौजूद नहीं है, संजीव बैसला बताते हैं की सुन्दर एक बार सेना में भर्ती भी हो गया था पर उसने अपनी ट्रेनिंग को पूरा किए बिना ही सेना से इस्तीफ़ा दे दिया और सेना की ट्रैनिग का फ़ायदा उठा के उसने अपना एक छोटा सा गैंग भी बना लिया इसके बाद उसने लगातार वारदातें करनी शुरू कर दी, संजीव बैसला के ब्लॉग पे लिखी कहानी में एक बात सामने आती है की सुन्दर गुज्जर जितना ही बहादुर था उससे कही ज्यादा शातिर भी था संजीव बैसला लिखते है की एक बार पुलिस ने सुन्दर को चारों तरफ से घेर लिया और आत्मसमर्पण करने की चेतौनी दी तो सुन्दर ने पुलिस के सामने एक शर्त राखी की वो आत्मसमर्पण से पहले पूजा करना चाहता है जिसे पुलिस ने मान लिया, इसके बाद पुलिस सुन्दर की पूजा पूरी होने का इंतजार करती रही और सुन्दर पुलिस की आँख में धुल झोकते हुए फरार हो गया और पुलिस को पता तक नहीं चला, सुन्दर गुज्जर ने जुर्म की दुनिया में लगभग 23 साल तक राज किया और पुलिस उसके आगे हमेशा बोनी साबित होती रही पर अंत में उसे भी बाकी अपराधियों की तरह ही पुलिस ने एक दिन मुठभेड़ में मार गिराया, विकास दुबे के एनकाउंटर की तरह ही उस समय सूंदर गुज्जर के मुठभेड़ पे भी कई सवाल उठे थे देश की एक अग्रणी समाचार वेबसाइट फर्स्ट पोस्ट में छपे एक लेख के मुताबिक़ सुन्दर गुज्जर ने 1965 के युद्ध में भारतीय सेना की तरफ से युद्ध लड़ा था फर्स्ट पोस्ट को दिए एक इंटरव्यू में सुन्दर गुज्जर के एक भतीजे ने बताया है की सुन्दर चाचा की मौत की खबर उन्हें रेडियो से पता चली थी सुन्दर गुज्जर के इस भतीजे के मुताबिक सुन्दर गुज्जर को हथकड़ी लगी हुई थी और वो पुलिस की हिरासत में था तो खबरों और पुलिस की बताई कहानी के मुताबिक वो यमुना में डूब के कैसे मर गया, सुन्दर गुज्जर के भतीजे का मानना है की डूब के मरने वाली बात पे विश्वास करना मुश्किल सा लगता है

 

sources- blog of sanjeev baisla and www. hindi. firstpost.com

 

3. ऑपरेशन कालिया– अभी कुछ समय पहले ही उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े माफिया सरगना श्री प्रकाश शुक्ल का एनकाउंटर हुआ था इसके बाद पुलिस को लग रहा था की अब जल्दी उत्तर प्रदेश में कोई माफिया सरगना सर नहीं उठाएगा पर पुलिस का ये ख्याल जल्दी ही धुँवा बनके उड़ गया और देश का उत्तम प्रदेश कहे जाने वाले उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में सरकार और पुलिस की नाक के नीचे ही एक खतरनाक गैंगस्टर जिसका नाम रमेश यादव उर्फ़ रमेश कालिया था ने सर उठाना शुरू कर दिया था जनसत्ता. कॉम पे छपे एक आर्टिकल के मुताबिक रमेश कालिया ज्यादा तर उन जमीनों पे नजर रखता था जिसमे कोई झगड़ा हो, रमेश कालिया ऐसी जमीनों पे जबरन कब्ज़ा कर लेता था और उसके रस्ते में जो कोई भी आता था उसके लिए कालिया काल बन जाता था. जनसत्ता. कॉम लिखता है की सपा सरकार में मंत्री अजीत सिंह अपने फर्म हाउस में एक पार्टी दे रहे थे उस पार्टी में काफी लोग हवा में गोलिया चला रहे थे तभी एक गोली न जाने कहाँ से आई और अजीत सिंह के सर को चीरती हुई निकल गई जिसने अजीत सिंह की जान लेली इस काण्ड के बाद उत्तर प्रदेश पुलिस रमेश कालिया के पीछे हाथ धोके पड़ गई, इतना सब होने के बाद भी रमेश कालिया के मन में कोई डर नहीं था और वो अपने रस्ते पहले जैसा ही चलता रहा, फिर आया वो दिन जिसे पूरा उत्तर प्रदेश ऑपरेशन कालिया के नाम से जानता है जनसत्ता. कॉम और indiatoday.in में छपे आर्टिकल के मुताबिक़ उस समय उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह की सरकार थी जो अजीत सिंह की हत्या के बाद हरकत में आई और तब बनी तेज तर्रार पुलिस अफसर नवीन सिकेरा को बुलाने की सहमति, नवीन सिकेरा को आनन फानन में लखनऊ का एस.पी बना दिया गया, नवीन सिकेरा ने चार्ज लेते ही ऑपरेशन कालिया की शुरुआत कर दी फिर एक दिन चुना गया, एक महिला पुलिस अफसर को दुल्हन के पहनावे में तैयार किया गया, एक पुरुष इंस्पेक्टर को दूल्हे के भेष में तैयार किया गया, बाकी के सभी पुलिस वालों ने बारातियो का भेष बना लिया और उस जगह को घेर लिया जहाँ रमेश कालिया अपने कुछ साथियो के साथ मौजूद था, पुलिस ने जब कालिया को ललकारा तो दोनों तरफ से ताबड़ तोड़ गोली बारी होने लगी और पुलिस की बंदूके तब तक गर्जती रही जब तक रमेश कालिया मारा नहीं गया

 

sources- indiatoday.in and www. jansatta.com

 

4. ददुआ की दहशत का अंत- बांदा क्षेत्र के पाठा जंगलों में ददुआ एक ऐसा नाम जो किसी के लिए रोबिन हुड था तो किसी के लिए दहशत का दूसरा नाम उसे ‘बुंदेलखंड का वीरप्पन’ भी कहा जाता है ददुआ को लेकर कभी भी लोगों में एकमत नहीं रहा, लेकिन आज भी लोगों का कहना है कि वह गरीबों के लिए मसीहा था। वहीं व्यापारियों और धनी लोगों के लिए ददुआ वह चेहरा बन गया था, जिसके मिट जाने का इन लोगो को सालो से इंतजार था नवोदय टाइम्स के डिजिटल प्लेटफार्म पे छपे आर्टिकल के मुताबिक़ ददुआ का नाम उस वक्त सुर्खियों में छा गया था, जब उसने 22 साल की उम्र में अपने ही गांव के आठ लोगों की हत्या कर दी और गांव से फरार हो गया। इसके बाद तो जैसे लोगों के लिए शिवकुमार पटेल नाम का युवक खत्म ही हो गया हो और एक नया नाम ‘ददुआ’ लोगों के लिए आतंक बन कर डराने लगा ददुआ ऐसा खतरनाक डकैत था, जिसके खिलाफ मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के थानों में हत्या, लूट और डकैती जैसे 400 से भी ज्यादा मामले दर्ज थे। नवोदय टाइम्स के इसी आर्टिक्ल के मुताबिक चित्रकूट के लोगो का कहना है की ददुआ ने अपने पिता की मौत का बदला लेने के लिए हथियार उठाया था और उन्हीं आठ लोगों की हत्या की थी, जिन्होंने उसके पिता को कुल्हाड़ी से मौत के घाट भी उतार दिया। इन आठ लोगो की जान लेने के बाद ददुआ जंगलों में जैसे विलीन ही हो गया, फिर सालो राज करने के बाद ददुआ का भी अंत समय आही गया, पत्रिका.कॉम पे छपे आर्टिकल के मुताबिक वो समय भी जुलाई का ही महीना था और साल था आज से ठीक 13 साल पहले का यानिकि 2007 का, उत्तर प्रदेश की STF टीम ने ददुआ को उसके साथियो सहित जनपद के मानिकपुर थाना छेत्र के अंतर्गत आते झलमल जंगल में घेर लिया और एक लम्बी चली मुठभेड़ में मार गिराया था

 

sources- navodyatimes.com, www.bbc.com

 

5. पन्ना यादव का मुठभेड़ में अंत– विकास दुबे को मुठभेड़ में मार गिराने का दवा करने के बाद उत्तर प्रदेश की पुलिस ने एक और खतरनाक एनकाउंटर को अंजाम देने का दावा किया है hindi.news18.com में छपी खबर के मुताबिक़ उतार प्रदेश पुलिस और STF ने एक साँझा ऑपरेशन में 50,000/- के इनामी बदमाश माने जाने वाले पन्ना यादव को मार गिराने का दावा किया है, इस खबर के मुताबिक़ पन्ना यादव के ऊपर 3 दर्जन से ज्यादा संगीन मामले दर्ज थे और पन्ना यादव एक बार एक जेलर को पीटने की वजह से भी सुर्खियों में रह चूका था और वो एक बार जेल तोड़के भाग चूका था ये बात भी इसी खबर में छपी है navbharattimes के वेबसाइट पे छपी खबर के मुताबिक़ पन्नेलाल श्रीप्रकाश शुक्ला की तरह बनना चाहता था और उसी के नक्शे कदम पर चलते हुए अपराध का पर्याय बना हुआ था। पुलिस के लिए पिछले तीन दशकों से वह चुनौती बना हुआ था। यूपी के तमाम जिलों में ताबड़तोड़ लूट, डकैती, हत्या, हत्या के प्रयास जैसी दर्जनों घटनाओं को अंजाम देने वाले पन्नेलाल की जिंदगी का सूरज भी मुठभेड़ के दौरान अस्त हो गया। इसके साथ ही उसकी श्रीप्रकाश बनने की  इच्छा भी अधूरी रह गई। इस खबर के मुताबिक़ पुलिस पन्नेलाल को पिछले 28 सालों से बड़ी सरगर्मी से तलाश रही थी navbharattimes.com की खबर के मुताबिक़ पन्नेलाल ने जुर्म की दुनिया में कदम  1992 में रखा था तभी से वो पुलिस के साथ आंख मिचोली खेल रहा था और अब उसका खेल खत्म हो चूका है

 

sources- hindi.news18.com, navbharattimes.com

 

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