विकास दुबे की अनसुनी पर पूरी कहानी, विकास दुबे के क्राइम सफर को पढ़िए शुरू से अंत तक

15 जुलाई 2020(रिसर्च- झारखण्ड से स्वप्निल, एडिटिंग- अमित ), विकास दुबे ने पहले चोरी और छिनैती से अपराध की दुनिया में कदम रखा, लेकिन जल्द ही बंदूक की ट्रिगर पर उसकी उंगलियां थिरकने लगीं चार-चार गोलियों का शिकार हुआ विकास दुबे अब तक 16 लोगों को गोलियों से छलनी कर चुका है, तो सवाल है कि ऐसा अपराध वो अपने दम पर कर रहा था या खाकी और खादी के रसूखदार लोगों का उसके ऊपर हाथ था. अगर किसी का समर्थन उसे हासिल था तो वो कौन है इस सवाल का जवाब विकास के मृत शरीर के साथ ही राख हो गया है

विकास दुबे के अपराध करने का सिलसिला वर्ष 1990 से शुरू हुआ था। बिकरू गांव निवासी किसान के बेटे विकास ने पिता के अपमान का बदला लेने के लिए नवादा गांव के किसानों को वर्ष 1990 में पीटा था।

विकास दुबे के खिलाफ शिवली थाने में पहला मामला दर्ज हुआ था। ब्राह्मण बाहुल्य क्षेत्र में पिछड़ों की हनक को कम करने के लिए विकास को राजनीतिक संरक्षण मिलता गया। उस वक्त एक पूर्व विधायक ने विकास को संरक्षण दिया था।

साल 1999 में फिल्म अर्जुन पंडित आई और उसमें सनी देवल के किरदार से वह इतना प्रभावित हुआ कि अपने नाम के आगे विकास पंडित लिखने लगा। इसके बाद इलाके में वह पंडित जी के नाम से कुख्यात हो गया।

विकास क्षेत्र में दबंगई के साथ मारपीट करता रहा, थाने पहुंचते ही नेताओं के फोन आने शुरू हो जाते थे। कुछ दिनों बाद तो पुलिस ने भी विकास पर नजर टेढ़ी करनी छोड़ दी। वर्ष 2000 में विकास ने इंटर कॉलेज के सहायक प्रबंधक सिद्धेश्वर पांडे को गोली मारकर पहला मर्डर किया था।सूत्र तो ये भी बताते है की ये हत्या काण्ड विकास ने इस लिए किया की विकास कॉलेज की जमीन पे कब्ज़ा करना चाहता था जिस  रास्ते में श्री पांडे रोड़ा बन रहे थे जिस वजह से विकास ने उनकी हत्या की

वर्ष 2001 में  राज्यमंत्री और श्रम संविदा बोर्ड के चेयरमैन संतोष शुक्ला को शिवली थाने के भीतर गोली मारकर मौत के घाट उतारकर विकास ने क्षेत्र में अपनी दहशत फैलाई। इस मामले में थाना प्रमुख सहित सभी पुलिसकर्मी गवाह बने थे। मगर, विकास के डर के सामने सब झुक गए और किसी ने भी कोर्ट में गवाही नहीं दी। बिकरू और शिवली के आसपास क्षेत्र में विकास की दहशत कुछ इस कदर थी कि उसके एक इशारे पर चुनाव में वोट गिरना शुरू हो जाते थे।

साल 2002 में शिवली नगर पंचायत के तत्कालीन चेयरमैन पर बम और गोलियों से हमला किया। इस मामले में उसे उम्र कैद की सजा मिली, लेकिन राजनीतिक संरक्षण की वजह से वह जल्द ही जेल से बाहर आ गया। साल 2004 में उसने केबल व्यवसायी दिनेश दुबे की हत्या की।

शिवली क्षेत्र की जमीनों और बाजार की वसूली में अपना कदम रखने के बाद विकास की क्षेत्र में हनक बढ़ती गई थी। राजनीतिक संरक्षण और दबंगई के बल पर विकास को जिला पंचायत सदस्य चुना गया और आसपास के तीन गांवों में उसके परिवार की ही प्रधानी कायम हो गई थी।

विकास के खिलाफ चौबेपुर थाने में हत्या, हत्या के प्रयास, रंगदारी वसूलना, लूट और फिरौती मांगने समेत कई संगीन धाराओं में 60 मुकदमे दर्ज हैं।इसमें हत्या या हत्या की कोशिश में 20, गैगंस्टर एक्ट में 15, दंगों के 19, एनडीपीएस के 2 और एक बार उस पर एनएसए यानी राष्ट्रीय सुरक्षा कानून भी लग चुका है.  वर्ष 2017 में विकास को यूपी एसटीएफ ने गिरफ्तार भी किया था।

sources- amarujala.com and naidunia.com

विकास दुबे की हनक का अंदाजा सिर्फ इस बात से लगाया जा सकता है की वो बिकरू और आसपास के गांवों में अपने समर्थकों के बीच मजबूती बनाए रखने के लिए हर संभव प्रयास करता था। वह किसी भी युवक को एक पर्ची लिखकर देता था और चौबेपुर क्षेत्र की फैक्ट्री में उसे नौकरी मिल जाती थी। ऐसे युवकों की तादाद करीब 500 बताई जाती है है। बताते हैं कि बीते दिनों एनकाउंटर में मारे गए दो युवक भी एक नामी ब्रैंड में नौकरी करते थे।

सूत्र यह भी बताते हैं कि विकास के आगे चौबेपुर क्षेत्र का एक बड़ा हिस्सा नतमस्तक था। कुछ अरसा पहले कानपुर में एक दूध का ब्रैंड लॉन्च किया जाना था। कंपनी को इसके लिए काफी दूध की जरुरत थी। विकास के फरमान का असर था कि क्षेत्र के सैकड़ों पशुपालक किसानों ने सारा दूध उस ब्रैंड को दे दिया । जबकि पहले से दूध ले रहे कई बड़ ब्रैंड मुंह ताकते रह गए।

पर कहते हैं की जुर्म का रस्ता सिर्फ मौत की मंजिल तक जाके खत्म होता है , ऐसा ही हुआ विकास दुबे के साथ उसे मनो ऐसा लगने लगा था की वो अजय हो गया है और उसे कोई कुछ नहीं कर सकता शायद इसी भुलावे में और घमंड की बन्दूक लिए उसने सीओ समेत 8 पुलिस वालों की निर्मम हत्या कर डाली पर शायद उसको नहीं पता था की साल 2020 उसके लिए अंत लेके आया है विकास कई रज्यो की पुलिस को छकाता हुआ उज्जैन तक पहुंच तो गया पर अंत में पुलिस के हाथ लग ही गया अब ये आत्मसमर्पण था या गिरफ्तारी इसका जवाब तो विकास के साथ ही जल गया खैर ये भी सच है की कानपुर में 8 पुलिसकर्मियों को धोखे से मौत के घाट उतारने वाले गैंगस्टर विकास दुबे का हिसाब यूपी पुलिस ने 8 दिन के अंदर कर दिया. जिस कानपुर में खौफनाक वारदात को अंजाम देकर वो भागा था, उसी कानपुर की चौहद्दी में वो मारा गया. उस वक्त जब यूपी एसटीएफ की टीम विकास दुबे को उज्जैन से लेकर आ रही थी, तो उसने भागने का प्रयास किया और फिर एनकाउंटर में चली चार गोलियों ने उसका काम तमाम कर दिया, एनकाउंटर से जुडी जो भी बात हम लिख रहे है वो पुलिस द्वारा अलग अलग मीडिया संस्थानों को बताए गए बयानो पे ही आधारित है

sources- aajtak.indiatoday.in, ndtv.khabar.com, navbharattimes.com

 

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