चीन की क्रूर और गीदड़ सेना की डरपोक असलियत का बे नकाब और पोल खोल किस्सा , पढ़े पूरी कहानी...

19 जुलाई, 2020(रिसर्च- गौरव चौधरी और स्वप्निल राजपूत, एडिटिंग- अमित) दोस्तों आज की हमारी ए स्टोरी हमारे भारत देश में रह रहे चीन के कुछ चमचो जो हर रोज़ भारत की चीन के हाथो 1962 में हुई हार की घुड़की देते रहते है की नींद हराम कर देगी और आप सबका मनोबल इतना ऊँचा कर देगी की आप अब कभी 1962 के चीन भारत युद्ध की धमकी को उदाहरण के तोर पे परवाह नहीं करेंगे, इस स्टोरी को पूरा पढ़ने के बाद आपको पता लगेगा की चीन की सेना उसके सस्ते सामान की तरह ही है न तो टिकाऊ है और नहीं दमदार है, एक कागज के सेना है जो भारत के सैनिको के सामने कुछ दिन भी नहीं टिक सकती

(first sino – japan war 1894–1895)

इस कहानी में हम बात करेंगे चीन और उसकी सेना के द्वारा लड़े गए कुछ प्रमुख युद्धों की ,सबसे पहले शुरू करते है (Qing dynasty) के आखरी  दो दसक में लड़े गए युद्ध जिसमे (first sino – japan war) का ज़िक्र मिलता है, जो चीन और जापान के बीच लड़े गए

कोरिया में ! दरअसल यह युद्ध जापान ने अपनी बढ़ती आर्थिक शक्ति और सैनिको के दम पे लड़ा, जापान यह चाहता था कि वो अपना व्यापार कोरिया में करे साथ ही चीन के द्वारा मिल रही टक्कर का भी अनुमान बहुत अच्छी तरह से जापान को होने लगा था ! ऐसा इस लिए था क्योंकि कोरिया लंबे समय से ही  चीन का महत्वपूर्ण ग्राहक था ! लेकिन जापान कि रुचि अपने व्यापार के साथ-साथ कोरिया में कोयला और लोहे के प्राकृतिक संसाधनों में भी थी ! जापान 1875 में पहले तो व्यापार के लिए जाता है, और फिर धीरे-धरे अपना बर्चश्व भी बढ़ा लेता है ! कोरिया में अपना बर्चश्व बनाये रखने के लिए दोनों देश चीन और जापान अपने सैनिक भी भेज देते है, यह घटना 1884 कि है लेकिन उस वक़्त कुछ टकराव के बाद शांति हो जाती है, लेकिन 1894 में युद्ध जैसे हालत फिर बन जाते है और युद्ध  होता भी है! इस युद्ध में चीन बहुत बुरी तरह से हार गया हालात इतने ख़राब हो गए कि चीन इस युद्ध में अपना सबकुछ हर गया जैसे कि युद्धपोत जिससे चीन East china sea में अपनी पकड़ बनाये हुए  था और सारे द्धीप भी खो बैठा  जो कि चीन से लगे हुए थे और साथ ही कोरिया से लगे हुए द्वीपो  पर भी जापानी सेना का कब्ज़ा हो गया !  कोरिया में महजूद लगभग सभी चीनी सैनिको को भी मार दिया गया ! जब युद्ध समाप्त हुआ तब ये पता चला कि चीन के जो भी युद्धपोत East china sea या फिर उसके आस-पास थे  लगभग सभी युद्धपोत या तो नष्ट कर दिए गए है या उन पर जापानी वायुसेना का कब्ज़ा है  !इस युद्ध के बाद पूरी दुनिया ने जापान को  ताक़तवर योद्धा माना और चीन की गीदड़ सेना की हवा अब दुनिया के सामने पूरी तरह से निकल चुकी थी

source- www.britannica.com

(Second Sino-Japan War 1937 – 1945)

first sino – japan war  के बाद दुनिया को यह लगा था कि चीन जापान के सामने कभी खड़ा होने की हिम्मत नहीं करेगा और चीन का  कभी जापान के साथ युद्ध नहीं होगा, लेकिन यह सही नहीं था,ऐसा लगता है की चीन की गीदड़ सेना और बीजिंग में बैठे चार फुट के चीनी नेताओ का जापान के हाथो मार खाने से अभी मन और पेट दोनों भरा नहीं था लिहाजा चीन और जापान में फिर 1937 में युद्ध हुआ ! इस युद्ध का मुख्य कारण चीन द्वारा जापान को व्यापार के लिए रोकना था जिसके तहत  चीन ने जापान पर प्रतिबंध  लगा दिए जिससे वो चीन में व्यापार ना कर  सके!  7 जुलाई 1937 को चीन और जापानी सेनाओ का युद्ध फिर से शुरू हुआ , इस बार चीन अपनी सीमा के अंदर ही लड़  रहा था  पिछले युद्ध में चीन से बाहर उसकी हार हुए थी !वो भी उसी जापान के हाथ जो इस बार भी चीन की गीदड़ सेना के सामने सीना ताने खड़ा था इस बार चीन की सेना का मनोबल पहले से भी कमजोर था क्यों की उसे याद था की कैसे उससे जापान ने मार मार के उसके युद्ध पोत छीन लिए थे और कैसे चीन की सीमाओं के साथ लगते कुछ द्वीपो पे भी जापान जम के बैठ गया था और चीन की आवाज़ तक नहीं निकल रही थी महज 6 मिहिनो के भीतर ही चीन ने अपनी ही जमीन पर इस बार भी जापान के सामने घुटने टेक दिए, जिसमे चीन के लगभग 2 million सैनिक मरे गए(एक अनुमान ) और 1939आते आते  चीन के पूर्वी क्षेत्रों पर जापान का कब्ज़ा हो गया!

इस लड़ाई में बुरी हार से चीन के हौसले पूरी तरह से पस्त हो चुके थे लिहाजा चीन रूस और अमेरिका दोनों की शरण में एक साथ चला गया और जापान से अपनी जमीन बचाने के लिए गुहार लगाई लेकिन जापान की हिम्मत की दाद देनी होगी उसने एक साथ अमेरिका, रूस और इन दोनों के पीछे छिपे चीनी गीदड़ो से एक साथ लड़ने का मन बनाया इसी सिलसिले में जापान ने अमेरिका के  पर्ल-हार्बर पे अटैक किया और फिर  रूस के दक्षिणी क्षेत्रों पर धावा बोल दिया , दोनों अटैक से अमेरिका और रूस को बहुत नुक्सान हुआ ! चीन को तो घर में घुस कर जापानी सेना ने  खूब धोया  और उसकी जमीन पर अपना सैनिक ठिकाना तक बना डाला ! जापानी सेना चीन के लगभग आधे क्षेत्रों तक घुस आई थी

फिर आता है ‎ 6 और 9 अगस्त 1945  का वो दिन जिस दिन अमेरिका ने परमाणु बॉम का इस्तेमाल किया और जापान के दो शहर  हिरोशिमा और नागासाकी को तबाह कर दिया ! उसके बाद जापान थोड़ा कमजोर हुआ और फिर चीन ने अपनी खोई जमीन वापिस ली ! इस युद्ध को “एशियाई प्रलय”  भी कहा जाता है क्योंकि इस युद्ध में लगभग 25 मिलियन चीनी नागरिक और लगभग 4 मिलियन चीनी और जापानी सैनिक मारे गए थे !

 

Source: slavic research center news and bbc.com

(पीपुल्स लिबरेशन आर्मी द्वारा तिब्बत पर जबरन कब्ज़ा)

जैसा कि आप जानते हैं चीन अपनी विस्तारवादी निति के लिए जाना जाता है  तिब्बत जो कि एक स्वतंत्र राष्ट्र था  पर चीन ने 6 October 1950  को जबरन कब्ज़ा कर लिया  और फिर 23 May 1951 को अपनी संसद में इसकी मंजूरी भी दे दी  ! यह बेहद ही दुखद घटना रही है उन तिब्बत के नागरिको के लिए जिसने अपने देश को चीन के द्वारा हड़पते हुए देखा,पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) द्वारा तिब्बत के लाखो लोगो को मारा गया  !

पूरा का पूरा देश कब्ज़ा करने के बाद भी चीन रुका नहीं उसने तिब्बत कि संस्कृति को भी नष्ट कर दिया, क्योंकि चीन को डर था कि वहाँ के नागरिक कभी शांत नहीं बैठेंगे इसलिए चीन ने वहाँ के 14th दलाई लामा को भी मारने कि कोशिस कि जो कि पूरी दुनिया जानती है 14th दलाई लामा तब से लेके आजतक भारत में शरण लिए हुए हैं!

चीन यहाँ भी नहीं रुका ऐसा कहा जाता है की चीन ने तिब्बत के दूसरा स्थान पर माने जाने वाले पंचेन लामा को भी किडनैप करवाया  जो कि उस समय एक 6 साल का बच्चा था उसे 14 मई 1995 को गायब कर दिया गया और अभी तक यह भी नहीं पता लगा  कि उसके साथ क्या-क्या हुआ ! वहाँ के लोगो को आज भी इतनी भी आज़ादी नहीं हैं कि वो अपने धर्म और धर्मगुरु कि कही बातो का पालन कर सके,इन बीते 70 सालो में चीनी सेनिको द्वारा ना जाने कितने तिब्बत के लोगो को मारा गया हैं इसका सही आंकड़ा आजतक किसी के पास नहीं है !

source:www.bhaskar.com

( Sino-Indian war 1962 )

अब बात करते हैं भारत और चीन के बीच लड़े गए युद्ध 1962 के बारे में जिसके कुछ सालो पहले तक चीनी गीदड़ नारा लगाया करते थे” हिंदी चीनी भाई भाई” इसी नारे के पीछे छिप के पहले चीन ने नेहरू का दिल जीता फिर भारत की पीठ में धोखे का खंजर भोंक के भारत की जमीन हड़प ली , 1959 के तिब्बती विद्रोह के बाद दोनों देशों के बीच हिंसक झड़प खूब होने लगी, लेकिन चीन से  युद्ध हो जाएगा यह भारत भी नहीं जानता था ! जब चीन ने 20 अक्टूबर 1962 को अचानक भारत के 3225  किलोमिटर क्षेत्र पर आक्रमण किया जिसमे लद्दाख और हिमालय की सीमा भी शामिल थी ! चूकि भारत इस युद्ध के लिए तैयार नहीं था और भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री प. जावहर लाल नेहरू ने कुछ महीने पहले ही “हिंदी चीनी भई-भाई” का नारा दिया था, हम सोच भी नहीं सकते थे कि चीन हम पर अटैक करेगा, लेकिन चीन ने भारत पर हमला कर दिया, जब-तक हम कुछ समझ पाते चीन हमरे कश्मीर के उत्तर-पूर्वी  क्षेत्र पर कब्ज़ा कर चूका था और इसी कब्ज़े के साथ ही चीन ने
युद्ध को रोक दिया और  बातचीत करने के लिए तैयार हो गया ! इस बात से पता चलता है कि चीन ने सिर्फ भारत की जमीन कब्ज़ा करने के लिए युद्ध किया , और जमीन कब्ज़ा हो जाने के बाद जब उसे लगा कि भारत इसका सही उत्तर देने के लिए अब तैयार हो गया है तो उसी समय चीन ने युद्ध को रोक दिया

source:www.indiatoday.in

(sino-indian war 1967)

अब हम बात करेंगे चीन-भारत वॉर 1967 कि जो ”Nathu La and Cho La clashes” के रूप में जानी जाती है, नाथू ला सिक्किम के पूर्वी क्षेत्र में पड़ता है,और Cho La भी  हिमालय के पास पड़ता है जो सिक्किम से लगा हुआ हैं,  यहाँ(Cho La) भी चीन ने 11 से 14 सितम्बर 1967 तक और नाथू ला में और 1 October 1967 तक  भारतीय सेना के साथ युद्ध किया ! लेकिन इस  युद्ध में चीन को बुरी तरह से भारतीय सेना के हांथो मुँह की खानी पड़ी, चीन इस बार भी सोचता था  कि वो फिर से भारत कि ज़मीन पर कब्ज़ा कर लेगा लेकिन वो कर नहीं पाया !

source: www.theprint.in

(Sino-Soviet border conflict 1969)

यह युद्ध cold war के समय लड़ा गया , जिसमे चीन और सोवियत संघ आमने सामने थे , ये युद्ध दोनों देशों के बीच चले आरहे लंबे समय से सीमा विवाद का नतीजा रहा, जगह रही मंचूरिया में  उससुरी (वुसुली) नदी के  पास  जेनबाओ द्वीप पर जो की चीन के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र पर था और रूस के दक्षिण-पूर्वी क्षेत्र से लगता था था !

युद्ध कि शुरुआत चीन द्वारा  2 मार्च 1969 को  द्वीप पर कब्ज़ा करने की कोशिस के साथ हुई लेकिन चीन के सेना पीपुल्स लिबरेशन आर्मी  रूस कि सेना (red army) के साथ  पहले ही भिड़ंत  में अपना नुकसान करवा बैठी !

चुकी चीन कि कम्युनिस्ट सरकार का हुक्म था  कि उसे  द्वीप पर कब्ज़ा करना ही है, इसलिए पीएलए वहाँ से हटी नहीं ! युद्ध शुरू हुए 7 महीने बीत गए और चीन के पैर उखाड़ने लगे थे और सोवियत सेना ने चीन की गीदड़ सेना को चारो तरफ से घेर लिया था अब चीनी सरकार को लगा की उनका शायद कोई भी चार फुट का गीदड़ बचके वापिस नहीं आएगा इसलिए अब चीन को बात चीत के लिए सोवियत सरकार के सामने झुकना ही पड़ा ! फिर रूस ने 11 सितम्बर 1969 को युद्ध समाप्त किया और जेनबाओ द्वीप को अपने क्षेत्र में शामिल कर लिया ! इस युद्ध में भी चीन और पीएलए (पीपुल्स लिबरेशन आर्मी) की जबरदस्त हार हुई थी

source:www.tribuneindia.com

(Sino-Vietnamese War 1979)

जब वियतनाम के सामने ‘कागजी शेर’ साबित हुई चीन की सेना

वियतनाम चीन के मुकाबले बहुत छोटा देश है.आपको ये जान कर हैरानी होगी कि चीन के साथ युद्ध के समय वियतनाम के पास सैनिकों और हथियारों की बेहद कमी थी, लेकिन 16 दिनों तक चले युद्ध में चीन को भारी नुकसान उठाना पड़ा ! क्योंकि वियतनाम कि सेना गुर्रिल्ला वॉर करने में काफी सक्ष्म थी और साथ में उन्होंने काफी बंकर और टनल भी खोद रखा था जिसमे वो हमला कर के छुप जाते थे ! युद्ध के महज कुछ ही दिनों में चीनी सेना इतनी डर गयी कि उसे  वियतनाम छोड़कर भागना  पड़ा और चीन को  फिर से हार का सामना करना पड़ा !इसके बाद आपको बता दे की इस युद्ध के बाद चीन की गीदड़ सेना ने आजतक कोई युद्ध नहीं लड़ा है पर हाँ इन चार फुट के गीदड़ो ने प्रोपेगंडा वीडियो बनाना बा खूबी सीखा है

 

source: zeenews.india.com

कोरोना के खलनायक की 2020 में हड़प नीति – एक तरफ चीन के पीछे पूरी दुनिया हाथ धोके पड़ी हुई है क्योकि चीन कोरोना वायरस फैला के लगभग पूरी दुनिया की आबादी को खतरे में डाल चूका है पर हिम्मत देखिये इन छोटी आँख और चपटी नाक वाले डेढ़ फुटिये नूडल्स और मंचूरियन स्पेसियलिस्टो की लदाख के गलवान इलाके में भारत की जमीन हड़पने की नियत से आ धमके इसी बीच 15 जून 2020 की रात को जिनपिंग के गीदड़ो और भारतीय शेरो के बीच झड़प हुई जिसमे भारत के 20 जवान शहीद हुए तो जिनपिंग के 43 जवान भी मारे गए है,

source: www.theprint.in

अब हाल की मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ जिनपिंग को अपनी ताकत और कमजोरी दोनों में बैलेंस पता लग गया लिहाजा अब जिनपिंग के चेले अपने घर वापिस जाने शुरू हो गए है

 

 

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