18 अगस्त 2020, दोस्तों हमारी आज की ये स्टोरी हिंदुस्तान में रहने वाले उन लोगो को पढ़नी चाहिए जिन्हे हिंदुस्तान अच्छा नहीं लगता और ये लोग रहते हिंदुस्तान में है और दुसरे देशो की तारीफों के पुल बांधते है हमें पूरा यकीन है की इस स्टोरी को पढ़ने के बाद इन लोगो की आंखे खुल जाएँगी और इनमेसे कुछ लोग ही सही हिंदुस्तान में रहने को लेके खुदको खुश किस्मत समझने लगेंगे, साथ ही मीडिया छेत्र में कदम रख रहे या आने वाले समय में कदम रखने की सोच रहे युवाओं को पढ़नी चाहिए ताकि वो मीडिया छेत्र में आने से पहले ही ये सीख सके की मीडिया में आने के बाद उनको आने वाली किन मुसीबतो का सामना करना पड़ सकता है ताकि वो तैयार रहे और इन मुसीबतो हो हराने के गुर अपने सीनियर्स से पहले ही सीख ले, साथ ही देश की आम जनता को ये स्टोरी ध्यान से पढ़नी चाहिए ताकि ये भोली जनता मीडिया के महत्व को समझ सके और पत्रकारों को इज्जत की नजर से देखना शुरू करे, स्टोरी को शुरू करने से पहले हम ये साफ़ करना चाहते है की स्टोरी में दिए गए सभी अंश अलग अलग मीडिया वेबसाइट से लिए गए है और हम स्टोरी में किसी भी पक्ष की तरफ से लगाए गए किसी भी इल्जाम या दावे की पुष्टि नहीं करते
1.Mahmoud Abou Zaid(Mr Shawkan)-
22 वर्ष की उम्र में उसने 2010 में ब्रिटिश फोटो एजेंसी डिमोटिक्स के लिए अपनी पत्रकारिता की शुरुआत की थी। 2013 में उसने देश(मिस्र) के तत्कालीन रक्षा मंत्री और सैन्य प्रमुख जनरल अब्दल फतह अल सीसी (मिस्र के वर्तमान राष्ट्रपति, जिन्हें डोनाल्ड ट्रंप एक बेहतरीन शख्स कहते हैं) के खिलाफ हो रहे प्रदर्शनों की तस्वीरें खींची थीं। ये तस्वीरें टाइम और बीबीसी समेत दुनिया भर के प्रमुख मीडिया संस्थानों ने प्रकाशित की थीं। उसी साल 14 अगस्त को जनरल अब्दल ने सुरक्षा बलों के माध्यम से काहिरा के उन दो जगहों पर धावा बोल दिया, जहां प्रदर्शनकारी इकट्ठा हुए थे। वो भी सुरक्षा बलों की अमानवीय और दमनकारी हरकतों को अपने कैमरे में कैद कर रहा था। अचानक उसे दो अन्य विदेशी फोटोग्राफरों के साथ गिरफ्तार कर लिया गया। जिनमेंसे एक फ्रांस से और दुसरे अमेरिका से थे, बाद में उन दोनों विदेशी प्रत्रकारों को तो छोड़ दिया गया, लेकिन उसकी कैद बरकरार रही।
गिरफ्तार होने के अगले लगभग ढाई साल तक उसने बिना किसी आरोप के सलाखों के पीछे काटे। बाद में उस पर सुरक्षा बलों की हत्या और सम्प्पतियो को नुकसान पहुंचाने जैसे कई गंभीर आरोप लगा दिए गए। वो उस प्रदर्शन स्थल पर एक फ्रीलांस पत्रकार की हैसियत से मौजूद था, इसका एक मात्र सबूत था उसका कैमरा। लेकिन सरकार की नजरों में वह सबूत भी उसे किसी राजद्रोही जैसा अपराधी बनने से नहीं रोक पाया। उसका कहना था की उसने आजीवन बंदूक को हाथ नहीं लगाया, हिंसा का तो कभी ख्याल तक ही नहीं आया। फिर भी मार्च, 2016 में देश की अदालत ने कुल छह संगीन अपराधों में दोषी ठहराते हुए उसे मृत्युदंड की सजा सुना दी।
एक दिन वो जेल में बीमार पड़ा और हेपेटाइटिस-सी का शिकार हो गया। उसने पत्रों के माध्यम से अपनी पीड़ा दुनिया को बताई है। ऐसे ही एक पत्र में उसने लिखा कि इस चारदीवारी में कैद और बीमार होने के बाद मुझे सबसे ज्यादा दुख इस बात का है कि मेरे सपने मर रहे हैं। मेरे सपने कुछ और नहीं, बल्कि ऐसे रंगों से दूर रहना है, जिनमें न जीवन है, न ही कोई रोमांच। और यहां जेल में ऐसे ही रंग मेरी चारों तरफ हैं। जेल से लिखे उसके पत्रों ने दुनिया में थोड़ी हलचल मचाई। इसी का नतीजा था कि अनेक मानवाधिकार संगठन और अंतरराष्ट्रीय समूहों ने उसकी रिहाई का मोर्चा खोल दिया। एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भी ऑनलाइन याचिका के जरिए पत्रकारों की रक्षा करने वाली समिति से उसकी आजादी की गुहार लगाई।
इनसब की मेहनत रंग लाइ और 4 मार्च 2019 को NDTV.com ने एक खबर छापी जिससे दुनिया को पता चला की उसे 5 साल तक जेल में बिताने के बाद कुछ शर्तो के साथ रिहाई मिल गई जिसके बाद पूरी दुनिया में ख़ास कर मीडिया से जुड़े लोगो में एक ख़ुशी की लहर दौड़ गई, पर मिस्र की सरकार ने अपनी बेशर्मी का काला चश्मा अभी तक नहीं उतारा था इस मामले में शौकन के वकील ने मीडिया को बताया की रिहाई तो शौकन को मिली है पर इस शर्त पे की उसे अगले और 5 साल तक रोज़ शाम (6PM से लेके अगले दिन सुबह 6AM) तक पुलिस स्टेशन में बिताने होंगे और कड़ी निगरानी में रहना होगा
sources- www.nytimes.com and www.ndtv.com
2.इराक में मीडिया के हालात– आइए अब कुछ देर इराक चले चलते है यहाँ भी हाल फिलहाल में मीडिया कर्मियों के साथ कब क्या हो जाए किसी को नहीं पता, बात 12 अगस्त की है इस दिन गली कुर्दिस्तान टीवी के रिपोर्टर हुनर रसूल प्रोटेस्ट कर रही भीड़ और पुलिस के संघर्ष में फंस गए जिस दौरान उन्हें गंभीर चोटे आई, उन्हें तुरंत अस्पताल इलाज के लिए लाया गया उनके साथी की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ उन्हें चोटे इतनी ज्यादा लग गई थी जिस वजह से अस्पताल लेजाने के 1 घंटे बाद ही उनकी इलाज के दौरान ही मोत हो गई, बताते चलें की ये गली कुर्दिस्तान टीवी Patriotic Union of Kurdistan पार्टी का आधिकारिक चैनल माना जाता है हुनर रसूल की मौत की वजह से मीडिया कर्मियों ने 12 अगस्त को कला दिवस के रूप में घोषित किया, अलग अलग मीडिया रिपोर्ट्स बताती है की इराक में एक NRT मीडिया ग्रुप है जिसके मालिक को ईराक की प्रमुख विपक्षी पार्टी जिसका नाम नई जनरेशन पार्टी है का संस्थापक भी माना जाता है के लिए काम करने वाले एक ऐसे ही पत्रकार हरम खालिद को उनके कैमरामैन के साथ पुलिस ने 4 घंटे तक कोया छेत्र में हिरासत में रखा, इसी तरह NRT मीडिया ग्रुप के एक और पत्रकार मुहम्मद आमिर और उनके कैमरामैन से उनके सारे सामान पुलिस ने छीन लिए और फिर वापिस तक नहीं किए, RSF की मिडिल ईस्ट में हेड Sabrina Bennoui ने कहा की ये सब दुखद घटनाएं एक दिन में हुई है और उनके मुताबिक़ इराक में पुलिस लगातार पत्रकारों को स्टोरी कवर करने से रोकती रहती है और उनके सामान छीन लिया करती है जो एक आम बात बनती जा रही है, उन्होंने कहा पुलिस की ऐसी हरकतों को बिलकुल बर्दास्त नहीं किया जा सकता, RSF की रिपोर्ट के मुताबिक़ NRT के पत्रकार ही अकेले नहीं जिनपे पुलिस ने जुल्म किया है इराक की एक न्यूज़ वेबसाइट Kurd One News और Payam TV के पत्रकारों को भी बिना वजह हिरासत में रखा जा चूका है RSF की रिपोर्ट के मुताबिक़ ही जब से कोरोना काल शुरू हुआ है पुलिस आए दिन ख़ास करके कुर्दिस्तान में पत्रकारों को बिना वजह तंग परेशान करती रहती है और उनके काम में दखल देती है, 2020 World Press Freedom इंडेक्स में इराक 162 नंबर पे है जहा इस लिस्ट में कुल 180 देशो को रखा गया है
sources- official website of RSF
3. Colombia में कम्युनिटी रेडियो के पत्रकार की हत्या- colombia में एक कम्युनिटी रेडियो चलता जिसका नाम है Emisora Nación nasa ये रेडियो Voz del Viento media collective का हिस्सा है इस रेडियो के एक प्रमुख रिपोर्टर हुआ करते थे जिनका नाम था Abelardo Liz जो एक दिन Corinto शहर में एक जमीन का जब निजीकरण हो रहा था तो मामले को ground Zero पे रिपोर्ट करने के लिए गए हुए थे जहा कुछ लोगो ने इस जमीन के निजीकरण का विरोध करना शुरू कर दिया जिसके बाद शहर के मेयर ने सुरक्षा बालो को मौके पे बुला लिया जिसके बाद प्रदर्शनकारियो और सुरक्षा बालो में झड़प हुई जिसके दौरान दोनों तरफ से गोली बारी की भी खबर आई जिस दौरान Abelardo Liz को भी गोली लग गई, पर ये बात साफ़ नहीं हो सकी की किसने Liz को गोली मारी थी उन्हें इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती करवाया गया जहा उनकी मौत हो गई, RSF के लैटिन अमेरिका हेड Emmanuel Colombié, ने दखल देते हुए सरकार से मांग की है की जल्द से जल्द मामले की जांच कर दोषियों पे सख्त कानूनी करवाई की जाए और सरकार देश भर में काम कर रहे मीडिया कर्मियों की सुरक्षा की गारंटी ले, बताते चले की इसी तरह साल 2017 में एक और कम्युनिटी रेडियो के रिपोर्टर की हत्या ऐसे ही हालातो में Cauca, शहर में हुई थी RSF की ऑफिसियल वेबसाइट से मिली सूचना के मुताबिक़ इसी देश के दो अन्य पत्रकारों की जान का खतरा लम्बे समय से दिखाई दे रहा है जिनपे कई बार हमले भी हो चुके है पर अच्छी किस्मत की वजह से दोनों पत्रकार अब तक बचते आए है इन दो पत्रकारों के नाम है Fernando Osorio and Edilson Álvarez, ये दोनों मेटा से है
sources- official website of RSF
4. अल्जीरिया में पत्रकार को तीन साल की कैद और 50,000 dinnar का भरी जुर्माना– Casbah Tribune news साइट के एडिटर Khaled drareni ने अल्जीरिया के Hirak विरोध प्रदर्शन को कवर किया जिसके बाद उन्हें मार्च के माह में गिरफ्तार कर लिया गया, उन पर बिना हथियारों के गलत नियत से भीड़ जुटाने, देश की अखंडता को खतरे में डालने और अल्जीरिया की राजनीती की गलत तस्वीर फेसबुक पे डालने जैसे संगीन इलाज्म मढ़ दिए गए, जिसमे उन्हें दोषी क़रार देते हुए अल्जीरिया के Sidi M’hamed प्रान्त की एक अदालत ने 3 साल कैद और 50,000/- दिन्नार की सजा सुनाई है उनका जुर्म सिर्फ विरोध प्रदर्शन को प्रमुखता से अपनी समाचार वेबसाइट और कुछ अन्य मीडिया हाउस पे जनतक करना ही है सरकार उनसे इतना डर और चिढ गई की उन्हें अपराधी साबित कर डाला इस मामले में भी RSF ने एक मुहीम चला राखी है जिसमे उसे पूरी दुनिया का समर्थन मिल रहा है
sources- official website of RSF
5. फिलीपींस में पत्रकार मारिया रेसा की कहानी– मारिया फिलिपीन में एक समाचार वेबसाइट चलाती है जिसका नाम है Rappler मारिया के एक पत्रकार है जिनका नाम है Reynaldo Santos Jr जिन्होंने आज से लगभग 8 साल पहले एक स्टोरी मारिया की वेबसाइट Rappler पे छापी जो देश के एक नामी बिजनेसमैन से जुडी थी जिसमे उक्त बिजनेसमैन पे गैरकानूनी ड्रग्स और मानव तस्करी से जुड़े होने के आरोप थे इसी काहनी को आधार बना के चल रहे केस में मारिया और उनके साथी पत्रकार Reynaldo Santos Jr को “cyber-libel” लॉ के तहत भी दोषी पाया गया है, हालाँकि साइबर लॉ फिलिपीन में Rappler की विवादित स्टोरी के छपने के 4 माह बाद अस्तित्व में आया था इस्पे बोलते हुए सरकारी वकील का कहना था की मुक्कादमा जिस आर्टिकल पे चलाया गया है उसमे कुछ बदलाव साल 2014 में किए गए थे जिनके आधार पे ये मुक्कादमा चलाया गया है जो साल 2012 के cyber-libel लॉ के अस्तित्व में आने के बाद 2014 में आर्टिकल में किए गए बदलाव की वजह से ये मामला cyber-libel लॉ के तहत आ जाता है इस लिए ये कहना गलत होगा की ये मामला cyber-libel लॉ के तहत नहीं आता, फैसला सुनाने वाली महिला जज ने कहा है की Rappler अपनी स्टोरी को सपोर्ट देने वाला कोई भी सबूत अदालत के सामने नहीं रख सका है जिससे ये सिद्ध हो सके की स्टोरी में लगाए गए इल्जाम सच है, लेकिन फैसला आने के बाद मारिया ने बीबीसी से बात करते हुए कहा की “Rappler and I were not the only ones on trial,” “I think what you’re seeing is death by a thousand cuts – not just of press freedom but of democracy.” फिलहाल मारिया और उनके सहयोगी पत्रकार को जमानत पे छोड़ दिया गया है उनकी अपील अगली अदालत में सुनी जानी बाकी है पर अगर अगली अदालत में भी उनकी सजा बर्करार रहती है तो उन्हें 6 साल तक जेल में बिताने पड़ सकते है अंत में बताते चले की मरिया को फिलिपीन के मौजूदा राष्ट्रपति Rodrigo Duterte का मुखर आलोचक माना जाता है और राष्ट्रपति के समर्थक मारिया की समाचार वेबसाइट को fake news outlet कहते है, फिलिपीन सरकार ने मारिया पे टैक्स चोरी से लेके फॉरेन ओनरशिप उलंघन तक के कई आरोप लगाए है
sources- www.bbc.com
6.जॉर्डन में मीडिया हुआ बैन– जॉर्डन के अम्मान के जज ने एक आर्डर 9 अगस्त को पास किया है जिसमे मीडिया को देश में चल रहे अध्यापको के प्रदर्शन को कवर करने से रोक दिया गया है, देश के अटोर्नी जनरल का मानना है की जॉर्डन क्रिमिनल कोड के आर्टिकल 255 और प्रेस लॉ के आर्टिकल 39 के तहत जज को ये अधिकार है की वो किसी भी केस जिसका ट्रायल चल रहा हो या जो मामला जांच के अधीन हो ऐसे मामलो के मीडिया कवरेज पे पूरी तरह से रोक लगा सके जिसके तहत अध्यापको के आंदोलन को कवर करने से मीडिया को रोका गया है, मामल तब शुरू हुआ जब देश में 25 जुलाई को अध्यापको के यूनियन को सरकार ने बंद कर दिया जिसपे अध्यापको ने कड़ा एतराज किया फिर भी सरकार ने अपना फैसला नहीं बदला तो अध्यापको ने विरोध प्रदर्शन शुरू किया जिसके दौरान बहुत से प्रदर्शनकारियो और पत्रकारों को पकड़ के जेल में डाल दिया गया जिनमेंसे ज्यादा तर पत्रकारों को अभी तक भी नहीं छोड़ा गया है जॉर्डन में एक NGO है जो इंटरनेट पे नजर रखती है इसका नाम है NetBlocks, के मुताबिक देश में अब इंटरनेट की स्पीड बहुत कम कर दी गई है और यहाँ तक की अब जॉर्डन में फेसबुक लाइव तक करना मुश्किल हो रहा है
sources- www.bbc.com and official website of RSF
7. दक्षिण कोरिया में पत्रकर ने अपने सोर्स की पहचान नहीं बताई तो हुई 8 माह की जेल- दक्षिण कोरिया के पत्रकार Woo Jong-chang ने कुछ साल पहले यूट्यूब पे एक स्टोरी चलाई थी जिसमे उनहोने दक्षिण कोरिया की पूर्व राष्ट्रपति Park Geun-hye’s से जुड़े महाभियोग के मामले में एक साजिश के बारे में दुनिया के सामने खुलासा किया था जिसपे ये मामला अदालत में चला गया जिसकी सुनवाई करते हुए Seoul Northern District Criminal कोर्ट के जज ने पत्रकार Woo Jong-chang से खुलासा किये जाने के सोर्स की पहचान पूछी जिसपे कुछ भी कहने और बताने से chang ने मना कर दिया जिसपे जज ने उन्हें मान हानि के मामले में 8 माह की कैद की सजा सुनाई है बताते चले की दक्षिण कोरिया एक लोकतान्त्रिक देश है जहा सूचना के अधिकार का सम्मान है पर आज भी इस देश में मानहानि के कानून के तहत 7 साल तक की सजा का प्रावधान है जिसे बदलने की जरुरत है
sources- eastasiaresearch.org
8. सऊदी पत्रकार की हत्या पर आजतक लाश का पता नहीं– तुर्की स्थित सऊदी दूतावास में अक्टूबर 2018 में खाशोगी की हत्या कर दी गई थी। इस विश्वचर्चित हत्याकांड की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचना हुई थी और इस मामले में सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान पर भी उंगली उठी थी। कहा जा रहा था कि प्रिंस सलमान के इशारे पर ही खाशोगी की हत्या को अंजाम दिया गया था, जो शाही परिवार और ख़ास प्रिंस के खिलाफ काफी मुखर होकर लिखते थे। हालांकि, सऊदी प्रशासन ने इससे इनकार किया था। और कहा था की ये सब प्रिंस को बदनाम करने के लिए किया जा रहा है और उनका इस हत्यकांड से कोई लेना देना नहीं है
उधर, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने खुलकर इस मामले में सऊदी क्राउन प्रिंस का साथ दिया। उन्होंने उन रिपोर्ट्स को भी खारिज किया था, जिसमें कहा गया था कि अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए को खशोगी की जुबान बंद कर दिए जाने के संबंध में कोई रिकॉर्डिंग मिली है।
बताते चलें कि खाशोगी दो अक्टूबर 2018 को तुर्की के इस्तांबुल स्थित सऊदी दूतावास में अपनी शादी के लिए जरूरी कागजात लेने गए थे। मगर, इसके बाद वह कभी बाहर नहीं निकले। उनका शव भी आज तक बरामद नहीं किया जा सका है। एक रिपोर्ट में दावा किया गया था कि खशोगी को मारने के बाद हत्या करने वाली टीम के सदस्यों ने उनकी लाश को नष्ट करने के लिए उसे तेजाब में डाल दिया था।
sources- www.zeenews.com and www.aajtak.com