कार्सिका का वो योद्धा, देशभक्त, सच्चा सेना नायक या फिर तानाशाह, पढ़े ये रोचक कहानी....

6,सितम्बर,2020(रिसर्च असिस्टेंस- शैलेन्द्र श्रीवास,स्टोरी एडिटिंग- अमित )- वो एक ऐसा योद्धा था जो जिस तरफ अपनी तलवार घूमा देता तो उस तरफ दुश्मनो की लाशो के ढेर लग जाते, उसके दुश्मन उसके नाम से ही कांपते थे, वो जब 3 साल का था तो एक बार उसने अपनी माँ से कहा की सामने जो सैनिक आ रहे है मुझे उनके जैसे कपडे सिल्वा दो और उनके जैसी बन्दूक दिलवा दो मैं भी सैनिक ही बनुगा, ये गोल  से चेहरे वाले, गोरे  चिट्टे बालक का जन्म 15 अगस्त 1769 को कार्सिका में हुआ था, वो बचपन से ही देश भगती का जज्बा दिल में छुपाए जवानी की तरफ बढ़ा, वो अपनी जिंदगी के एक बड़े हिस्से तक फ्रांस से नफरत  करता रहा क्यों की वो लड़का जिस कार्सिका में जन्मा था फ्रांस ने उस कार्सिका पे कब्ज़ा कर रखा था, वो बचपन से ही अपनी जन्दगी का एक ही लक्ष्य लेके चला था वो था की कार्सिका को कब और कैसे फ्रांस की गुलामी से आज़ाद करवाना है, वो बचपन से ही जुझारू और बहादुर होने के साथ साथ बहुत जिद्दी था, कुछ इतिहासकार कहते है जब वो स्कूल में पढता था तब अक्सर अपने से बड़े लड़को से लड़ जाया करता था, वो अकेले ही ताकतवर और खुद से बड़े लड़को के झुण्ड से लड़ता था और तब तक  हार नहीं मानता था जब तक सामने वाला झुण्ड हार के भाग नहीं जाता था  कार्सिका की आज़ादी के सपने का दामन  थामे वो लड़का जवान हो गया और उसे एक दिन लगने लगा की अगर कार्सिका को फ्रांस से आज़ाद करवाना है तो फ्रांस की सरकार में पहले घुस के उसकी ताकत और कमजोरी का पूरा अंदाजा लगाना होगा तभी फ्रांस से कार्सिका को आज़ाद करवाया जा सकता है इस सोच के दम पे उस लड़के ने स्कूल की  पढ़ाई पूरी करते ही फ्रांस की राजधानी पेरिस के कैडेट स्कूल में दाखिला ले लिया  उसने 16 साल की उम्र में सैनिक अधिकारी की परीक्षा पास कर ली वो अपने साथ के सभी अधिकारियो मे से सबसे कम उम्र का सैनिक अधिकारी था इसके बाद वो फ्रांस की सेना में भर्ती हो गया इस नौजवान को डायरी लिखने का बहुत शौंक था वो अपनी डायरी में सब लिखा करता था की कैसे कार्सिका की आज़ादी के लिए हथियार जमा करने है कैसे सेना बनानी है और कैसे फ्रांस पे हमला करना है और कैसे फ्रांस को ज्यादा से ज्यादा नुक्सान पंहुचा के कार्सिका को आज़ाद करवाना है, वो लड़का अपनी डायरी को इतना छुपा के रखता था की उसके इलावा कभी कोई भी उस डायरी तक नहीं पहुंच सकता था अगर वो डायरी फ्रांस के अधिकारियो के हाथ लग जाती तो उसे कबकी मौत की सजा सुना दी गई होती, 1785 में उसने फ्रांस की सेना में कमीशन लिया और इसी दौरान साल 1789 आ गया जब फ्रांस में क्रांति खड़ी हो गई थी , उस समय फ्रांस का नेतृत्व  पाउली के हाथ में था जनता बहुत परेशान थी, भ्रष्टाचार अपने चरम पे था,

1792 में इस सेना नायक ने कॉर्सिका की आज़ादी के लिए पूरी ताकत लगा दी और एक क्रांति को खड़ा किया, पर इस बार किस्मत ने उसका साथ नहीं दिया और जल्द ही पाउली की सेना ने क्रांति का दमन कर दिया, कॉर्सिका वासियो पे घोर अत्याचार किये गए, इस योद्धा के परिवार को भी तरह तरह की यातनाओ का सामना करना पड़ा, उसका परिवार कॉर्सिका छोड़ के पेरिस भाग गया, ये सेना नायक इतना चतुर था की उसने विद्रोही का काला धब्बा अपने माथे से मिटाते हुए फ्रांस की सरकार को अपने पक्ष में मना लिया और इतना ही नहीं उसने फ्रांस की सेना में एक उच्च अधिकारी के तौर पे नौकरी भी पा ली, सेन के उच्च पद पे रहते हुए इस योद्धा को ये एहसास हो चूका था की अब कॉर्सिका को आज़ाद करवाना संभव नहीं रहा है इस लिए उसने अब खुद को फ्रांस का भाग्य विधाता बनाने का मन बना लिया

 

टाऊलिन पर विजय– तभी वो वक्त आया जब फ्रांस की सरकार टाऊलिन पे कब्ज़ा करने के लिए तरस रही थी इस काम के लिए हमारी कहानी के इस सेना नायक को चुना गया उसने अपनी रणनीति के तहत 100 तोपों के साथ टाऊलिन पे हमला कर दिया वहां कब्ज़ा करके बैठी अंग्रेज सेना के बारूद खाने को पलक झपकते ही नष्ट कर दिया गया, अंग्रेजों के जहाज पानी में ही पलट दिए गए अब अंग्रेज सेना के पास जान बचा के भागने के इलावा कोई रास्ता नहीं बचा था, अंग्रेजों के भाग जाने के बाद अब टाऊलिन पे फ्रांस का कब्ज़ा था, हमारे इस सेना नायक की ये पहली सबसे बड़ी कामयाबी थी, पर उसके जीवन में अभी एक और बुरा दौर आना बाकी था

 

टाऊलिन पर विजय के बाद गिरफ्तारी– सोलिसिटी जो कभी इस सेना नायक का शुभ चिंतक हुआ करता था अब उससे कुछ इर्षा रखने लगा था, सालिसिटी की फ्रांस सरकार में बहुत चलती थी जिसने फ्रांस सरकार के कान भरे की ये नवनियुक्त सेना नायक जिनेवा सरकार से गुपचुप तरीके से कॉर्सिका का सौदा कर रह है जिसकी वजह से एक दिन कॉर्सिका फ्रांस के हाथ से निकल जायेगा और ये भी भ्रम पैदा किया की ये सेना नायक फ्रांस के क्रांतिकारियों को संदेह की नजर से देखता है साथ ही ये सेना नायक अंदर ही अंदर फ्रांस से जुड़े कुछ गोपनीय राज इकठा कर रहा है जो आने वाले समय में दुश्मनो के हाथ लग जायेंगे जिससे फ्रांस के लिए बड़ा खतरा पैदा हो जाएगा, सालिसिटी की इन बातो में आके फ्रांस सरकार ने अपने उस महान सेना नायक को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया पर कुछ समय बाद ही फ्रांस की सरकार को अपनी गलतियों का अंदाज़ा हो गया और उसे आज़ाद कर दिया गया

 

दुनिया भर में अपना और फ्रांस का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखने का सफर इसके बाद इस सेना नायक के जीवन में शुरू होने वाला था, हलाकि उसके पूरे जीवन में कई उतार चढ़ाओ आगे भी देखने को मिलते रहेंगे पर कहानी का असली चेहरा अब सामने आना शुरू होगा अब हम चाहते है की रहस्य से पर्दा हटाते हुए आपको ये बता दे की ये कहानी है किसकी है, जो थोड़ा चौकाने वाला तो है, पर रोचक थोड़ा और ज्यादा है, दोस्तों ये सेना नायक दुनिया के सबसे चर्चित, विवादित, बहादुर सेना नायको मे से एक नेपोलियन बोनापार्ट की कहानी है

 

एक तलवार की वजह से हुई नेपोलियन की शादी- नेपोलियन जिस सेना नायक को अपना आदर्श मानता था उसका नाम था जनरल ब्युहरनेस जो एक लड़ाई में शहीद हो चुके थे जनरल ब्युहरनेस की विधवा जासफीन नेपोलियन के मन को भा गई और वो उससे शादी करने की सोचने लगा एक दिन जासफीन अपने पति की तलवार लेने के लिए नेपोलिन से मिलने आई तो नेपोलियन ने उससे कहा की इस तलवार की आपको जरुरत है और मुझे भी प्रेरणा के लिए इस तलवार की जरुरत है मैं ये चाहता हु की ये तलवार मेरे पास भी रह जाये और आपके पास भी रहे जो तभी संभव है अगर आप मुझसे से विवाह करलें तो, जिसपे जासफीन पहले तो हैरान हुई पर कुछ सोचने के बाद उसने हाँ कर दिया,  विवाह के समय जासफीन का एक बेटा था और जासफीन खुद उम्र में नेपोलियन से बड़ी थी, अपनी किताब “नेपोलियन बोनापार्ट, विश्वविख्यात योद्धा, दृढ़ निश्चयी, राजनीतिज्ञ व इतिहास पुरुष नेपोलियन का सम्पूर्ण जीवन- वृतांत!” में एम् .पी. कमल लिखते है की 9 मार्च 1796 को नेपोलियन और जासफीन का विवाह हुआ उस समय नेपोलियन की उम्र 26 वर्ष थी और जासफीन की 30 वर्ष पर विवाह के समय जासफीन ने अपनी उम्र 28 वर्ष बताया था लेकिन नेपोलियन ने उसकी उम्र 23 वर्ष लिखवाया और अपनी उम्र उसने 25 वर्ष लिखवाई थी, इस तरह विवाह नामे पे दोनों की उम्र गलत लिखी गई थी

 

जब बिना लड़े ही नेपोलियन ने इटली को जीत लिया- नेपोलियन में युद्ध लड़ने के इलावा एक ऐसी और कला थी जिससे वह किसी से भी अपनी बात मनवा लिया करता था वो सामने वाले के दिमाग को अपने कब्ज़े में कर लिया करता था उसने इटली पे अपनी सेना के साथ हमला करना था पर नेपोलियन ने लड़ाई शुरू होने से पहले ही इटली की जनता और वहां की सेना को एक तो इतना डरा दिया की इटली नेपोलियन से लड़ने की हिम्मत नहीं जुटा सका और नेपोलियन ने इटली की जनता को ये भरोसा दिला दिया की इटली अगर नेपोलियन के नेतृत्व में काम करेगा तो उसकी जनता को कामयाबी ही मिलेगी और इटली की जनता के किसी भी अधिकार को छीना नहीं जाएगा और इस तरह बिना एक भी बूँद खून के बहाए नेपोलियन ने इटली को जीत लिया

इटली को जीतने के बाद नेपोलियन ने 14 अप्रैल 1796 को पीमोंटी को हराया और उसके साथ अपनी शर्तो पे संधि की इसके बाद नेपोलियन ने इसी साल 3 अक्टूबर को मोडेना को दण्डित किया और उसे ट्रांसपेडनिक रिपब्लिक में मिला लिया, 9 अक्टूबर को रिपब्लिक ऑफ जेनेवा को हरा कर उसे फ्रांस में मिला लिया, 10 अक्टूबर को उसने नेपल्स के साथ संधि पे हस्ताक्षर किए और तोस्काना के साथ भी एक संधि की, इसके बाद 14 फरवरी 1797 को नेपोलियन ने रायबल पर शानदार विजय प्राप्त की, इसी साल 16 फरवरी को टेगलिया मेन्टो पर शानदार जीत दर्ज की, इसी साल की 18 अप्रैल को नेपोलियन ने ऑस्ट्रिया व हंगरी पे ऐसा हमला बोला की वो इतना डर गए की उनमे नेपोलियन से और लड़ने की हिम्मत नहीं बची थी और दोनों ने नेपोलियन के साथ उसकी शर्तो पे संधि कर ली इसके ठीक 6 महीने बाद केम्पोफार्मिले की संधि पर भी हस्ताक्षर किए,

 

अंग्रेजो के हांथो मिली हार– 13 अगस्त 1798 को नेपोलियन की सेना का सामना तेज तर्रार अंग्रेज जनरल नेल्सन की सेना से हुआ इस युद्ध में नेपोलियन खुद मौजूद नहीं था जिस वजह से उसकी सेना कुछ कमजोर पड़ गई जिस वजह से नेपोलियन के बहुत सरे युद्ध पोत अंग्रेजो ने डुबो दिए और हजारो फ्रांसीसी सैनिको को मौत के घाट उतार दिया, फ्रांस के 13 प्रमुख युद्ध पोत अंग्रेजो के कब्ज़े में चले गए और कई नष्ट कर दिए गए थे, नेपोलियन ने समझदारी का परिचय देते हुए फिलहाल अंग्रेजो पे हमला बंद कर के सीरिया की तरफ बढ़ने की सोच अपनाई

 

सीरिया पे विजय– अंग्रेजो से मिली हार से चिढ़ा हुआ नेपोलियन सीरिया पे चढ़ गया और उसने एक तरफ़ा युद्ध में जाफा का वध कर दिया और 3000 तुर्की सैनिको को अपने कब्ज़े में ले लिया इन सैनिको को आगे चलके नेपोलियन की सेना ने बड़ी बेदर्दी से समुद्र में डुबो दिया

 

फ्रांस के राज सिंहासन पे कब्ज़ा– नेपोलियन अंग्रेजो के हांथो मिली छोटी सी हार को भुला नहीं पाया था उसे लगता था अगर इंग्लैंड को धुल चटानी है तो नेपोलियन को पहले फ्रांस की सरकार समेत सारे अधिकार अपने हाथो में लेने होंगे क्यों की उसे लगता था अगर फ्रांस की सरकार समय पे इंग्लैंड पे हमला करने का फैसला लेती तो नेपोलियन की सेना इंग्लैंड से किसी भी हाल में नहीं हारती, उसे लगता था की फ्रांस की सर्वोच्च कुर्सी पे किसी ताकतवर व्यक्ति का होना बेहद जरुरी है फिलहाल उसे लगा की उसके खुदके इलावा कोई और मौजूदा समय में इस कुर्सी पे बैठके सही फैसले नहीं कर सकता इस लिए नेपोलियन ने फ्रांस की बाग़ डोर अपने हाथो में ले ली और आगे चलके नेपोलियन संहिता नमक संबिधान का निर्माण भी किया गया जिसे 1804 में लागू किया गया, अभी नेपोलियन को फ्रांस की सत्ता पे काबिज़ हुए मुश्किल से 2 वर्ष भी नहीं हुए थे की फ्रांस की सीनेट के सदस्यो ने नेपोलियन की इच्छा को पूरा करते हुए उसे अगले 10 वर्षो के लिए फ्रांस का राजा चुन लिया और साथ ही ये घोषणा भी कर दी की अगले 10 वर्ष का कार्य काल पूरा होने के बाद एक बार फिर नेपोलियन को और 10 वर्ष के लिए फ्रांस की बाग़ डोर थमा दी जाएगी,  नेपोलियन ने कभी भी अपने सर पे राजा का ताज सजाने से मना कर दिया वो कहता था की मैं जनता का सेवक हु और फ्रांस की सेना का सर्वोच्य कमांडर हु और कुछ नहीं हु, उसने कभी भी राज शाही पोषक तक नहीं पहनी वो हमेशा एक सेना अधिकारी की वर्दी में रहा करता था, उसके शाशन से पहले फ्रांस में शादी के लिए लड़के की उम्र 15 वर्ष और लड़की की उम्र 13 वर्ष रखी गई थी जिसे नेपोलियन ने बदल कर शादी के लिए लड़के की उम्र 21 वर्ष और लड़की की उम्र 15 वर्ष कर दी गई, नेपोलियन के इस फैसले ने भी फ्रांस की जनता के दिल में उसको एक कभी न मिटने वाला नायक बना दिया

 

नेपोलियन की रूस पे पहली कार्रवाई- नेपोलियन ने रूस जैसे ताकत वर देश पे अचानक हमला बोल दिया उस समय रूस में जार का राज हुआ करता था इस लड़ाई में जार की सेना ज्यादा देर तक नेपोलियन से युद्ध नहीं कर सकी और उसने नेपोलियन से संधि करना ही ठीक समझा, जिसके बाद नेपोलियन और जार में संधि के साथ साथ गहरी दोस्ती हो गई

 

पर्शिया पे जीत– रूस से हाथ मिलाने के बाद नेपोलियन ने पर्शिया पे हमला करने की सोची पर्शिया का राजा नेपोलियन में अपना दोस्त देखता था और वो नेपोलियन से युद्ध नहीं करना चाहता था पर पर्शिया में उस समय की रानी लूसी की चलती थी जो नेपोलियन को अच्छा नहीं समझती थी जिस वजह से नेपोलियन से पर्शिया का युद्ध हो गया जिसमे नेपोलियन की सेना ने पर्शिया की सेना को पलक झपकते ही हरा दिया जिस दौरान नेपोलियन की सेना ने पर्शिया के 20,000 सैनिको को बंदी बना लिया और युद्ध जीतने के बाद जब नेपोलियन पर्शिया के राज महल में दाखिल हुआ तो पर्शिया की रानी लूसी ने नेपोलियन के मुँह पे थूकने की कोशिश की जो नेपोलियन के सैनिको की मौजूदगी की वजह से सफल नहीं हो सकी, नेपोलियन को महल में पर्शिया के महान सेना नायक जनरल फ़्रेडरिक की तलवार मिली इस तलवार के दम पे फ़्रेडरिक ने एक बार फ्रांस को हराया था नेपोलियन ने इस तलवार को अपने कब्ज़े में ले लिया, आगे चलके एक दिन पर्शिया के राजा ने नेपोलियन को महल में बुलाया और पर्शिया की रानी से कहा की वो नेपोलियन से अपने व्योहार के लिए माफ़ी मांगे जिसके बाद रानी लूसी ने नेपोलियन से माफ़ी मांगी और नेपोलियन और रानी लूसी के बीच देखने में ही सही पर कुछ कड़वाहट कम हो गई

 

स्पेन में नेपोलियन की पहली सबसे बड़ी हार– नेपोलियन ने रूस से संधि करने के बाद स्पेन पे हमला कर दिया जिसे नेपोलियन ने बहुत जल्दी जीत भी लिया पर इसके बाद उससे एक बड़ी गलती हो गई वो थी नेपोलियन ने स्पेन के राजा के रूप अपने भाई जोसेफ को नियुक्त कर दिया जो नेपोलियन जितना न तो महान था न ही उतना कुशल नेता, जिसे जल्द ही स्पेन की जनता ने नकार दिया और नेपोलियन की सेना और स्पेन के विद्रोही बने नौजवानो के बीच युद्ध छिड़ गया जिसमे स्पेन के विद्रोहियों ने छापामार लड़ाई में नेपोलियन की सेना के 3 लाख सैनिको को मार गिराया, ये अपने आप में अबतक नेपोलियन को सबसे बड़ी चोट थी

 

विवाहिक जीवन से निराशा– नेपोलियन को अपने जीवन में वो सबकुछ तो मिला जिसकी उसको इच्छा थी पर उसका पारिवारिक जीवन ख़ास कर विवाहिक जीवन कभी अच्छा नहीं रहा उसकी पत्नी जसफ़ीन जिसे नेपोलियन बहुत प्यार करता था ने नेपोलियन की कभी कदर तक न की उसे नेपोलियन से कभी प्यार हुआ ही नहीं, नेपोलियन ने लम्बे समय तक जसफ़ीन के मन के बदलने का इंतजार किया पर जब नेपोलियन को ये यकीन हो गया की जसफ़ीन वो औरत नहीं जो नेपोलियन के जीवन को सही दिशा दे सकती है तो नेपोलियन ने उसे अपने मन और जीवन दोनों से निकाल फेकने का निश्चय कर लिया एम्. पी कमल अपनी किताब में लिखते है की जब जसफ़ीन को ये एहसास हुआ की नेपोलियन सही है और वो खुद गलत तो वो नेपोलियन के सामने नतमस्तक होते हुए, नेपोलियन से माफ़ी मांगने उसके पास गई पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी और अब नेपोलियन ने उसे अपने मन से निकाल फेंका था एम्. पी. कमल आगे लिखते है की जसफ़ीन पूरी रात नेपोलियन के दरवाजे पे खड़ी उसे पुकारती रही और माफ़ी मांगती रही पर नेपोलियन का दिल नहीं पसीजा और उसने दरवाजा नहीं खोला, अंतत दिसंबर 1809 में नेपोलियन और जसफ़ीन का तलाक हो गया, उसके कुछ समय बाद नेपोलियन का दूसरा विवाह मैरी लुइ के साथ हुआ जिससे आगे चलके 20 मार्च 1811 को नेपोलियन को पुत्र प्राप्त हुआ पुत्र प्राप्ति के बाद नेपोलियन की दूसरी सबसे बड़ी इच्छा पूरे यूरोप  को जीत के पूरे यूरोप से ताना शाही को खत्म  करके गणतंत्र स्थापित करने की थी इसी इच्छा के चलते नेपोलियन ने रूस पे हमला करने का मन तब बनाया जब उसे पूरा यकीन हो गया की रूस का राजा जार अब उसका मित्र नहीं रहा और अब जार उसकी किसी भी युद्ध में मदद भी नहीं कर रहा था, नेपोलियन एक बड़ी सेना का निर्माण कर रूस पे जीत हासिल करने की इच्छा मन में लिए निकल पड़ा ये युद्ध ही इतिहास में नेपोलियन के पतन का कारण माना जाता है नेपोलियन ने रूस पे हमला तो किया पर रूस में वो जितना अंदर जाता गया उसे रूस की तरफ से लड़ने के लिए एक भी सैनिक से सामना नहीं हुआ अगर शुरुआत की कुछ झड़पों को छोड़ दिया जाए तो, नेपोलियन की सेना बड़ी आसानी से रूस की राजधानी मास्को तक पहुंच गई, तभी नेपोलियन मास्को की एक ऊँची बिल्डिंग पे चढ़ा और हालात की जानकारी लेनी चाही तो उसने देखा चारो तरफ आग ही आग लगी हुई थी ये आग या तो नेपोलियन की सेना की गोला बारी से लगी थी या फिर उन रूसी सैनिको और आम लोगो द्वारा लगाईं गई थी जिन्होंने इलाके को छोड़ने के बाद लगाया था ताकि नेपोलियन की सेना को कुछ भी खाने पीने को न मिले, इसके बाद जब नेपोलियन ने पीछे जाके देखा तो उसे पता लगा की उसकी सेना के लगभग 10 हजार घोड़े या तो भूंख के मारे मर गए या रसद सामग्री के अभाव में रूस में उगने वाली एक जहरीली घास खाने से मौत के आगोश में चले गए थे तभी रूस में भीषण हिमपात शुरू हो गया अब हालात ऐसे थे की न खाने को कुछ था, न सर छिपाने को कोई जगह थी और हिमपात के साथ होने वाली बारिश की वजह से बने कीचड में नेपोलियन की सेना के सभी वाहन एक कदम भी चलने के काबिल नहीं बचे थे इस हालात ने नेपोलियन के लगभग 3 लाख 50 हजार सैनिको की जान लेली

 

पासा पलट गया– नेपोलियन रूस से तो किसी तरह निकल आया था पर फ्रांस में उसका तख्ता पलटने की तैयारी पूरी हो चुकी थी जिससे निपटने में भी उसका कुछ समय खराब हो गया अंत में उसकी गद्दी बच तो गई पर नेपोलियन के बुरे समय का फायदा उठाते हुए उसके दुश्मनो जिनमे रूस, पर्शिया, इंग्लैंड, ऑस्ट्रिया आदि शामिल थे इन देशो ने हाथ मिला के एक संयुक्त सेना बना ली थी जिसने 16 अक्टूबर 1813 को फ्रांस पे हमला कर दिया इस सेना में 3 लाख प्रशिक्षित सैनिक थे दूसरी तरफ नेपोलियन के पास संयुक्त सेना से मुकाबला करने के लिए 1 लाख 50 हजार प्रशिक्षित सैनिक थे बाकी उसके सैनिक जो थे उन्हें युद्ध का कोई ख़ास अनुभव नहीं था और वो ख़ास प्रशिक्षित भी नहीं थे, आखिकार नेपोलियन ने 1 लाख 50 हजार अपने बेहतरीन सैनिको को मैदान में उतार दिया

इतना भीषण युद्ध हुआ की एक ही दिन में अकेले नेपोलियन की सेना के 60,000 से ज्यादा सैनिक मारे गए, 11 फरवरी 1814 को नेपोलियन ने मोटमिरल में और 18 फरवरी को मोटेरियु में सयुक्त सेना के सभी गढ़ ध्वस्त कर दिए पर इस बार सयुक्त सेना नेपोलियन को खत्म करने के इरादे से आई थी, दुसरे दौर का युद्ध लगभग 40 दिन चला जिसमे नेपोलियन के पैर उखड गए. 31 मार्च 1814 को सयुंक्त सेना पेरिस में घुस गई, इस तरह नेपोलियन की करारी हार हुई और जीत मिलने के बाद सयुंक्त सेना ने फ्रांस के लोगो और नेपोलियन के सहयोगियों पे ऐसा दबाव बनाया जिसकी वजह से आखिरकार नेपोलियन को अपनी जान से ज्यादा प्यारे देश को छोड़ना ही पड़ा, नेपोलियन को उसकी गरिमा के अनुसार एल्बा में रखने का फैसला हुआ जहाँ उसके लिए एक शानदार निवास स्थान बनाया गया उसे सालाना 20 लाख फ्रैंक पेंशन के तौर पे देना तय हुआ, आखिर वो अपने कुछ साथियो के साथ एल्बा पंहुचा, उसके कुछ सहयोगियों ने उसे सुझाव दिया की वो एल्बा में रहते हुए अपने देश फ्रांस का इतिहास लिखे जिससे आने वाली पीढ़ी को अपने देश की बहादुरी, गरिमा और जिंदादिली से रूबरू करवाया जा सके

 

नेपोलियन के एल्बा जाने के बाद सयुंक्त सेना ने अपने कठपुतली बोर्बोन को फ्रांस का राजा बना दिया जो बिलकुल कामचोर और अय्याशी पसंद राजा साबित हुआ फ्रांस की जनता उसे बिलकुल पसंद नहीं करती थी

 

नेपोलियन का फ्रांस की सत्ता पे आखरी राज– एल्बा में जहा नेपोलियन का दिल नहीं लगा तो वही दूसरी तरफ फ्रांस की जनता नेपोलियन के बिना तड़फ रही थी कुछ साल एल्बा में रहने के बाद नेपोलियन ने एक बार फिर फ्रांस में अपनी दस्तक दी नेपोलियन के आने की खबर सुनके बोर्बोन भाग खड़ा हुआ और फ्रांस के अमीरो और आम जनता की मदद से नेपोलियन एक बार फिर फ्रांस का कमांडर बन गया इस बार नेपोलियन पूरी तरह से बदलके फ्रांस आया था इस बार वो किसी भी युद्ध के लिए नहीं आया था अब वो किसी भी देश पे कब्ज़ा नहीं करना चाहता था वो अब पूरी दुनिया के साथ दोस्ती करके रहना चाहता था पर इंग्लैंड और उसके मित्र देश नेपोलियन पे तनिक भी भरोसा नहीं करते थे और हर हाल में नेपोलियन को फ्रांस से दूर रखना चाहते थे इसी के चलते जल्द ही सयुक्त सेनाओ ने फ्रांस पे हमला कर दिया लेकिन इस बार नेपोलियन उनसे ज्यादा देर तक नहीं लड़ सका और युद्ध में अपना पलड़ा हल्का देख वो अमेरिका से मदद लेने की सोच के साथ जहाज से 3 जुलाई 1815 को रॉकफोर्ट सरमेर जा पंहुचा जहा उसे इंग्लैंड की जल सेना ने घेर लिया जिसके बाद नेपोलियन ने इंग्लैंड की सेना के सामने आत्म समर्पण कर दिया जिसके बाद इंग्लैंड का एक जनरल मेटलेंड उसे लेके इंग्लैंड पंहुचा लेकिन इंग्लैंड के प्लेमिंथ बंदरगाह पे लगभग 10 दिन तक रोके रखा गया नेपोलियन को इंग्लैंड की धरती पे उतारा तक नहीं गया, फिर इंग्लैंड सरकार ने फैसला किया की नेपोलियन को जहरीले कीट पतंगों और खूखार जानवरो और घने जंगल से घिरे अँधेरे दीप सेंट हेलेना भेज दिया जाए क्योकि इंग्लैंड नहीं चाहता था की इस बार नेपोलियन जिन्दा भी बचे, उसे 1815 में सेंट हेलेना लाया गया जहा वो लगभग 6 वर्ष तक सेंट हेलेना में रहा, पर अब उसे जिगर की बिमारी हो चुकी थी 1821 में उसका 53 वं जन्मदिन मनाया गया इस दिन उसने अपनी वसीहत लिखी, अपने पुत्र और दूसी पत्नी मैरी जो अब नेपोलियन के दुश्मन ऑस्ट्रिया के राजा के साथ रह रही थी को याद करते हुए अपने एक सहयोगी मेंथोलान के हाथों में दमतोड़ दिया

 

दोस्तों तो इस तरह से पूरी हुई एक महान, देशभक्त और बहादुर सेना नायक की कहानी, नेपोलियन में कोई कमी नहीं थी पर हर तरह की खूबिया थी जनता उसे अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करती थी पर उसमे एक कमी थी, युद्ध लड़ने की सनक, सब कुछ और सबको जीत लेने का पागलपन बस इसी सनक और पागल पन ने इस महाराजा से सब कुछ एक दिन छीन लिया, यह कहानी सबको सबक देती है की युद्ध बस तवाही लेके आता है, इसमें किसी को फ़ायदा नहीं होता, होता है तो हर पक्ष को बस नुक्सान ही नुक्सान

 

आप सब से निवेदन है की इस कहानी को पढ़ने के बाद आप सोचिएगा जरूर की नेपोलियन आखिर था कौन, कोई सनकी कमांडर जिसकी सनक ने फ्रांस के ही 20 लाख सैनिको की जान ली और न जाने कितने उन सैनिको की जिन्होंने उसके खिलाफ जंग लड़ी, वो तानाशाह था??, या देशभक्त और जनता के लिए जीने मरने वाला एक नेक दिल योद्धा??????? आखरी फैसला आप सब पढ़ने वालों के हाथ है हमे पूरी उम्मीद है की यह कहानी आप सबके दिल में नेपोलियन के प्रति एक सही और सच्ची सोच को जन्म देगी

 

source book- नेपोलियन बोनापार्ट, विश्वविख्यात योद्धा, दृढ़ निश्चयी, राजनीतिज्ञ व इतिहास पुरुष नेपोलियन का सम्पूर्ण जीवन- वृतांत!”-लेखक  एम् .पी. कमल

 

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