युद्ध छेत्र को कवर करने जाने वाले पत्रकार को क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए, जानने के लिए लिंक को क्लिक करे

दोस्तों हमारा ये आज का आर्टिकल कोई कहानी बिलकुल नहीं है, ये आर्टिकल उन पत्रकारों को कुछ मश्वरे देने और उनकी मदद करने की एक कोशिस है जो पत्रकार दुनिया के अलग अलग देशो में जहा कोई हथियार बंद संघर्ष या कोई भीषण युद्ध चल रहा हो ऐसे हालातो को ग्राउंड जीरो पे कवर करने जाते है, ऐसी असाइनमेंट को कवर करते समय किन बातो का ध्यान रखना चाहिए जिससे पत्रकार अपने साथ साथ अपनी टीम की सुरक्षा यकीनी बना सकते है इन सभी चर्चाओं पे ही ये आर्टिकल आधारित है, आर्टिकल को शुरू करने से पहले हम चाहते है की एक झलक  दुनिया भर में पत्रकारों के साथ हो रहे दुव्योहार पे डालते चले

RSF की एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर मे 170 से ज्यादा पत्रकार मौजूदा समय में अपने काम की वजह से जेल में बंद है पिछले लगभग 15 सालो में दुनिया भर में 800 से ज्यादा पत्रकारों की हत्या की जा चुकी है और दुःख की बात है की ऐसे में 90 % मामलो में पत्रकार की हत्या करने वालो को कोई सजा नहीं मिल सकी है ये बात सबसे ज्यादा दुःख पहुंचाने वाली है RSF की एहि रिपोर्ट ये भी बताती है की मौजूदा समय में डिजिटल मीडिया से जुड़े 100 से ज्यादा पत्रकार और ब्लॉगर सिर्फ इस बात के लिए दुनिया की अलग अलग जेलों में बंद है क्यों की उन्होंने इंटरनेट पे अपने विचार लिखे थे

जो भी पत्रकार किसी भी युद्ध जैसे हालात को कवर करने के लिए जाने वाले है उन्हें इस बात का ध्यान रखना चाहिए की युद्ध छेत्र को कवर करने की असाइनमेंट हमेशा ऑप्शनल होती है मतलब ये बात पत्रकार के हाथ में होती है की वो ऐसी असाइनमेंट पे जाने से अपने एडिटर को मना भी कर सकता है ऐसे मामले में अखबार, टीवी चैनल या समाचार वेबसाइट का एडिटर या मालिक पत्रकार को युद्ध छेत्र में जाने के लिए बाध्य नहीं कर सकते

जो पत्रकार युद्ध छेत्र को कवर करने जाने वाले हो उनके संस्थान को इस बात का ध्यान रखना चाहिए की ऐसे किसी पत्रकार को युद्ध छेत्र में न भेजा जाये जो पहली बार इस काम के लिए चुना गया हो अगर भेजने के लिए कोई और विकल्प न हो तो कुछ अनुभवी लोगो की टीम को ऐसे पत्रकार के साथ भेजना लाजमी होता है, संस्थान को इस बात का भी पूरा अध्ययन रखना होगा की युद्ध छेत्र में जाने वाली टीम के पास बुलेट प्रूफ हेलमेट, बुलेट प्रुफ जैकेट और संभव हो तो बुलेट प्रुफ वाहन का इंतजाम जरूर होना चाहिए, साथ ही टीम के पास फर्स्ट ऐड किट होनी चाहिए, जो पत्रकार दूर दराज के इलाको में जाने वाले हो उनके पास सेटलाइट फ़ोन होना बेहद जरुरी होता है क्यों की युद्ध छेत्र में ऐसे बहुत से इलाके होते है जहा किसी भी मोबाइल नेटवर्क का होना संभव नहीं होता ऐसे में पत्रकार के पास अगर सेटलाइट फ़ोन होगा तो वो अपनी टीम के संपर्क में बना रहेगा, मीडिया संस्थान को इस बात का भी ध्यान होना चाहिए की जो पत्रकार युद्ध छेत्र को कवर करने जा रहा है उसके पास जीवन बीमा है या नहीं? अगर नहीं है तो सम्बंधित मीडिया संस्थान को चाहिए की वो पत्रकार चाहे उनका स्टाफ का हिस्सा हो या स्ट्रिंगर दोनों मामलो में पत्रकार को जीवन बीमा जरूर करवाए जिसमे ये सुनिश्चित होना चाहिए की बीमा पालिसी में उक्त युद्ध छेत्र में लम्बे समय से सामना की जाने वाली हर बीमारी, युद्ध छेत्र में घायल होने की स्थिति में कोई अंग हमेशा के लिए ख़राब हो जाने, या फिर मौत होने जाने के बाद उचित पैसा आसानी से पीड़ित पत्रकार या उसके परिवार को मिल सके,

युद्ध छेत्र पे रवाना होने से पहले हर पत्रकार को चाहिए की वो एक बार अपनी वेक्सिनेशन की लिस्ट चेक कर ले अगर कोई वेक्सिनेशन करवाने की जरुरत हो तो उक्त वेक्सीने ले ले

युद्ध छेत्र में जाने वाले हर पत्रकार को अपने ब्लड ग्रुप की डिटेल अपने पहचान वाले सबूतों के साथ रखना चाहिए ताकि जब कभी कोई खून की जरुरत खुदको या टीम के किसी अन्य सदस्य को हो तो समय पे खून मिल सके, युद्ध छेत्र को कवर करने जाने वाले हर पत्रकार को फर्स्ट ऐड के इस्तेमाल की ट्रेनिंग दिलवाने की जिम्मेदारी उसके मीडिया संस्थान की होती है ऐसे मामले में रेड क्रॉस संस्थाए मीडिया घरानो की मदद कर सकती है, युद्ध छेत्र में जाने वाले पत्रकार के लिए कुछ ऐसे दस्ताबेज भी है जो बहुत ही जरुरी माने जाते है

1. पासपोर्ट( जो कमसे काम अगले 6 माह के लिए वैलिड हो)

2. प्रेस कार्ड

3. अंतर्राष्ट्रीय वेक्सिनेशन सर्टिफिकेट बुकलेट

4. आपके ब्लड ग्रुप का नाम

5. अंतर्राष्ट्रीय ड्राइविंग लाइसेंस

6. कुछ अमेरिकी डॉलर

7. सड़क और शहर का नक्शा

8. एक लिस्ट जिसमे एम्बेसी के अफसरों, कुछ अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओ के फ़ोन नंबर जिनसे आपातकाल में मदद मिल सके

9. मोबाइल फ़ोन होसके तो सेटलाइट फ़ोन

जब पत्रकार युद्ध छेत्र में पहुंच जाएं तो उन्हें इस बात का ध्यान हमेशा रखना होगा की कही भी आने जाने का समय, यात्रा करने के लिए लिया गया वाहन और आने जाने के रास्ते बदलते रहे, जो भी पत्रकार अरब देशो में कवरेज के लिए जाने वाले हो ख़ास कर महिला पत्रकारों को चाहिए की वो स्थानीय रिवाज़ो का पूरा सामान करे और कोई भी कैसुअल पोशाक न पहने, युद्ध छेत्र में पत्रकारों को चाहिए की वो सैनिक जैसे दिखने वाले कपडे न पहने और साथ में किसी भी तरह का औजार न रखे, जैसा की कुछ लोग अपने साथ फल आदि काटने के लिए छोटे चाक़ू रख लेते है युद्ध छेत्र में पत्रकारों को अपने साथ ऐसा कोई औजार नहीं रखना चाहिए, युद्ध छेत्र में कवरेज के दौरान अगर कही बम जैसी कोई चीज़ मिले और आपको बम के होने का शक हो तो उस संदिग्ध चीज़ को बिलकुल भी न छूए अगर उक्त चीज़ में कोई टाइमर जैसा यंत्र लगा हो जो लगातार चल रहा हो या फिर उसमे से जलने की गंध आरही हो तो तुरंत किसी मजबूत चीज़ जैसे की कोई मजबूत दीवार या कोई बाड़ी चट्टान या फिर कोई बड़ा पेड़ हो तो उसके पीछे छिप जाएं ताकि अगर धमाका हो तो पत्रकार की जान बच जाएं ऐसे हाल में मोबाइल फ़ोन का इस्तेमाल करने से बचें और इस बात का ध्यान रखे की उक्त संदिग्ध चीज़ से आप कम से कम  100 गज के घेरे से बहार रहें, युद्ध छेत्र में कही भी आने जाने से पहले अपने वाहन को अच्छी तरह से जांच ले ख़ास कर वाहन के चक्को को जरूर देखे की कही कोई बम तो नहीं रखा गया हो, वाहन को हाथ लगाए बिना ऊपर से नीचे तक अच्छे से देख लेने के बाद ही उसमे बैठें, युद्ध छेत्र में रहते हुए अगर कोई पार्सल आपको मिले जिसकी पैकिंग कुछ संदिग्ध लगे या जो जरुरत से ज्यादा भारी और ठोस किसम का हो या जिसपे लिखा हो अर्जेंट, या पर्सनल तरह के शब्द लिखे हो ऐसे पार्सल को शक की निगहा से देखा जाना जरुरी है, युद्ध को कवर करने निकलने से पहले कुछ ख़ास बातो का ध्यान हर बार रखा जाना चाहिए

1. वाहन का पेट्रोल टैंक हमेशा फुल रखे

2. आपातकाल में वाहन को ठीक करने के यंत्र हमेशा साथ रखें

3. कुछ ख़ास और जरुरी स्पेयर पार्ट्स भी हर समय साथ रखें

4. प्रेस कार्ड कभी न भूले

5. इस बात का ध्यान रखें की जिस इलाके में आप जा रहें है वहां कर्फ्यू तो नहीं लगा हुआ

6. युद्ध छेत्र में जितना हो सके उतना ज्यादा रात को बहार न निकले क्यों की रात में कोई भी पक्ष रौशनी की कमी में आपको अपना दुश्मन समझ सकता है

7. जिस भी वाहन में सफर करे उसपे बड़े अक्षरों में प्रेस लिखा होना बेहद जरुरी है

8. अगर आप किसी खतरनाक पॉइंट पे फस जाएं तो बिना किसी का ध्यान खींचे अपना वाहन वापिस मोड़ ले, पर अगर किसी ने देख लिया हो तो भागने की कोशिस करना खतरनाक हो सकता है

9. अगर किसी चेक पॉइंट पे फंस जाएं तो चेकिंग कर रहें जवानो से अच्छे से बात करें

10. अगर कोई जवान आपका कोई सामान लेले तो उसके साथ निगोशिएट करें पर उलझे बिलकुल भी नहीं

11. चेक पॉइंट पे जबतक जवान बहार आने को न कहे तब तक वाहन से बहार न जाएं

12. वाहन का इंजन चेक पॉइंट पे बंद न करें

अगर पत्रकारों की टीम किसी झड़प वाले इलाके में फस जाए तो कुछ बातों का ध्यान रखना जरुरी होता है

1. कोशिस करे की आपका वाहन पुलिस/ सेना और उपद्रवियों या आतंकियों के बीच में न फसे जिससे अगर दोनों तरफ से गोली बारी होगी तो पत्रकारों के घायल होने की संभावना बढ़ जाएगी ऐसे हालात में कुछ भी करके जल्द से जल्द अपने वाहन को बीच से निकालके सुरक्षित जगह पे ले जाएं

2. युद्ध छेत्र में पत्रकारों को चाहिए की अपने सामान जैसे की कैमरा, स्टैंड और बैग वगैरा को बिलकुल स्पष्ट हालात में रखे जिससे दूरसे देखने पे भी पता लग जाए की आपके हाथ में कैमरा है न की कोई हथियार

3. अगर आप का काफिला शहर से बहार के इलाके में है तो  कम से कम 50 मीटर का फासला एक वाहन से दुसरे वाहन के बीच होना जरुरी है वाहन की रफ़्तार तेज होनी चाहिए

4. अगर आपका काफिला किसी शहर से गुजर रहा है तो वाहन की रफ़्तार 50 KM/घंटा की रफ़्तार से ज्यादा न हो नहीं तो दुर्घटना होने की संभावना बढ़ सकती है

5. एक बात का हर समय ध्यान रखा जाए की आपके काफिले के बीच कोई अनजान वाहन न आने पाए

6. पूरी कोशिस करे की आपके काफिले के बीच कोई मोटरसाइकिल या स्कूटर जैसे वाहन न घुसने पाए ऐसे वाहन आत्मघाती हमले के लिए आतंकवादी संगठन इस्तेमाल करते है

बी.एस. एफ के पूर्व डिप्टी कमांडेंट श्री सम्राट खोसला बताते है की युद्ध छेत्र में प्रशिक्षण प्राप्त पत्रकारों को समस्या कम मामलो में ही आती है ज्यादा तर फ्री लांसर पत्रकार ही मुसीबत में फसते है और फ्री लांसर पत्रकार कई बार सेनाओ के लिए भी समस्या खड़ी कर देते है, श्री सम्राट बताते है की फ्री लांसर पत्रकार ज्यादा तर समय अपने मोबाइल का इस्तेमाल करते है जिसके नेटवर्क को दुश्मन की टीम कई बार ट्रैक कर लेती है जिससे सेना से जुडी जरुरी सूचनाएं भी दुश्मन को पता चल जाती है जो बहुत से मामलो में खतरनाक साबित हो जाता है कई बार इस तरह की ट्रैकिंग की वजह से ही कुछ फ्री लांसर पत्रकार अगवाह भी हो जाते है, श्री सम्राट मानते है की युद्ध छेत्र में पत्रकारों को जितना ज्यादा हो सके सेटलाइट फ़ोन का इस्तेमाल करना चाहिए, श्री सम्राट के मुताबिक युद्ध छेत्र में रिपोर्टिंग के दौरान पत्रकारों को किसी अनजान व्यक्ति जैसे की कोई नया जान पहचान का व्यक्ति या फिर कोई टैक्सी ड्राइवर आदि को रिपोर्टिंग के दौरान गाइड के तौर पे इस्तेमाल बिलकुल नहीं करना चाहिए, ऐसे लोग कई बार दुशमन सेना या आतंकियों के शुभ चिंतक हो सकते है जो पत्रकार की जान खतरे में डाल सकते है पत्रकारों को चाहिए की स्थानीय प्रशाशन द्वारा उपलब्ध करवाए गाइड या फिर सेना द्वारा दिए गए गाइड की मदद ही लेनी चाहिए, श्री सम्राट कहते है की जब पत्रकार रिपोर्टिंग के लिए किसी सरहद के नजदीक जाए तो इस बात का ध्यान रखे की सेना द्वारा दिए गए डेड लाइन से आगे बिलकुल न जाए और साथ ही सेना द्वारा दिए गए कोड को हमेशा याद रखे वरना कोड भूलने की सूरत में खुद सेना के जवान ही पत्रकार को दुश्मन समझ गोली चला सकते है,

युद्ध छेत्र में बहुत बार देखा गया है की पत्रकार की जान उस समय खतरे में पड़ जाती है जब वो माइंस एरिया में जाते है ऐसे हालात से निपटने के लिए पत्रकारों को सेना के  पि. आर. विभाग से जुड़े रहना चाहिए ताकि एस बात की पूरी जानकारी पहले से ही रहे की कहाँ कहाँ माइंस बिछे होने की संभावना है और कहाँ पे नहीं

श्री सम्राट बताते है की आज के समय में युद्ध में सेनाएं क्लस्टर बम का इस्तेमाल करती है ये एक ऐसा बम होता है जो हवाई जहाज से गिराया जाता है एक बड़ा बम होता है जिसमे से जमीन पे गिरने से पहले अनेको छोटे बम निकल के एक बड़े एरिया में फ़ैल जाते है, एक क्लस्टर बम तीन फूटबाल ग्राऊंड जितने एरिया में छोटे छोटे बम फैला देता है जो बहुत बड़ा नुक्सान करते है इन छोटे बमो के पीछे एक पैराशूट लगा होता है जो इसे सही निशाने पे गिरने में मदद करता है पत्रकारों को युद्ध मैदान में जाने से पहले क्लस्टर बम से बचने की ट्रैनिग जरूर लेनी चाहिए या फिर सेना से जानकारी ले लेनी चाहिए

युद्ध छेत्र में स्नाइपर हमले में भी कई बार पत्रकारों की जान चली जाती है, स्नाइपर दिनमे ज्यादा तर मामलो में 600 से लेके 1000 मीटर तक ही निशाना लगा पाते है, स्नाइपर रात में  300 मीटर के घेरे में ही निशाना लगा के हमला करते है, स्नाइपर पास की किसी ईमारत में ही छुपे हो सकते है स्नाइपर कभी भी किसी भी इमारत की सबसे ऊपरी छत पे बैठ कर निशाना नहीं लगा सकते, स्नाइपर किसी खिड़की आदि की पास बैठके या लेट की निशाना साधते है, श्री सम्राट कहते है की धुल, बर्फ़बारी, और तेज हवा की मौजूदगी में स्नाइपर से बचना आसान होता है, आम तौर पे स्नाइपर से बचना बहुत ही मुश्किल काम होता है

फर्स्ट ऐड कैसे दे??- जब रिपोर्टिंग की दौरान कोई साथी या अन्य व्यक्ति घायल हो जाए तो उसे सबसे पहले एक्सपर्ट मेडिकल मदद आने तक फर्स्ट ऐड बचाती है पर फर्स्ट ऐड वही दे सकता है जिसने इसकी पूरी ट्रैनिग ले रखी हो जिसने ट्रैनिग नहीं ली होगी वो फर्स्ट ऐड नहीं दे सकता वरना गलत तरीका घायल की जान ले सकता है, फर्स्ट ऐड देने  वाले को इस बात का ध्यान रखना होगा की घायल को फर्स्ट ऐड देने से पहले खुद दस्ताने, चश्मा, और अच्छा मास्क जरूर पहन ले और ज्यादा से ज्यादा कोशिश करे की घायल के  खून को अपने किसी भी अंग से छूने न दे, ऐसा कदम खून से जुडी कई बीमारियों जैसे की हेपेटाइटस और HIV से बचाता है 

दोस्तों एक बार हम फिर से इस बात पे जोर देना चाहते है की फर्स्ट ऐड वही दे सकता है जिसने इसकी पूरी ट्रेनिंग ली हो, जिसने पूरी टैनिंग ली होगी उसे होने वाली हर तरह की इंजरी और उसके इलाज का कुछ हद तक अनुभव और सही तरीका मालूम होगा पर ये बात भी उतनी ही सही है की पत्रकार जितनी भी मर्जी अच्छी ट्रेनिंग ले ले पर डॉक्टर ही घायल का सही इलाज कर पाएगा कहने का मतलब है की सीखा हुआ पत्रकार फर्स्ट ऐड के जरिये सही मेडिकल मदद के आने तक घायल के शरीर को होने वाले नुक्सान को कुछ हद तक कम करके रख सकता है जिससे डॉक्टर को घायल के शरीर को होने वाले नुक्सान को कम करने में बहुत मदद मिल सकेगी, कुछ जरुरी बाते फर्स्ट ऐड देने से पहले ध्यान में रखनी चाहिए जैसे की अगर घायल व्यक्ति के शरीर से खून बहुत ज्यादा बह रहा हो तो आपको चाहिए की चोट वाले पॉइंट पे सीधा प्रेशर देके रखने से खून का बहाओ कुछ हद तक रुक सकता है पर एक बात का ध्यान रखे की दबाओ को 15 मिनट से ज्यादा न दे 15 मिनट के बाद अगर खून नहीं रुक रहा तो फिर अगले 15 मिनट के लिए दबाओ दे सकते है पर लगातार 15 मिनट से ज्यादा दबाओ नहीं दिया जा सकता है  दबाओ देने के बाद जो पट्टी आपने रखी हुई है उसको जखम से न हटाए नहीं तो खून फिर से बहने लग सकता है, एक और जरूरी बात है जो याद रखने लायक है की अगर जखम से कोई हड्डी या मॉस का टुकड़ा बहार निकला  हो तो उसे खींचने और अंदर करने की बिलकुल कोशिश न करे,

माहिर डॉक्टर अमित कुमार सिद्धू बताते है की युद्ध छेत्र को कवर कर रहे पत्रकारों को फर्स्ट ऐड की ABC को हमेशा याद रखना चाहिए

A- मतलब एयर क्लीरेंस सबसे पहले घायल व्यक्ति की सांस लेने के रस्ते में अगर कुछ रुकावट बन रहा है तो उस रुकावट को जल्द से जल्द हटाए जैसे की कई बार मुँह में कुछ बाहरी चीज़ फंस जाती जिससे साँस लेने में तकलीफ होती है लिहाजा इस बाहरी चीज़ को तुरंत मुँह से निकालके साँस लेने का रास्ता साफ़ करदे

B-मतलब ब्रीदिंग, डॉक्टर अमित कुमार सिद्धू कहते है की सांस न आने की सूरत में आपको चाहिए की घायल को अपने मुँह से सांस देने की कोशिश करे

C- मतलब सर्कुलेशन, अगर घायल व्यक्ति को सांस बिलकुल भी आती नहीं दिख रही तो उसकी छाती पे अपने हांथो से दबाओ बनाये ऐसा कुछ बार दोहराने से घायल का दिल दुबारा ठीक से चलने लगेगा और सांस भी ठीक से आने लगेगी पर डॉक्टर अमित कुमार सिद्धू इस बात को दोहराते है की छाती पे दबाओ बनाते समय इस बात का ध्यान जरूर रखे की कही दबाओ ज्यादा जोर से न पड़ जाए ऐसे में घायल की छाती में फ्रैक्चर हो सकता है 

अंत में डॉक्टर अमित कुमार सिद्धू कहते है की अगर घायल के जखम से कोई मॉस बाहर आ गया है तो उसे बिलकुल भी इधर उधर मत करे उसके ऊपर वही पे साफ़ पट्टी बाँध दे जब एक्सपर्ट मेडिकल टीम आजायेगी तो डॉक्टर उस मॉस को सही जगह पे सेटल कर देंगे

असाइनमेंट से वापिस आने के बाद ज्यादा तर पत्रकारों को युद्ध छेत्र में जो परेशान करने वाले अनुभव हुए थे वो कुछ दिन तक तंग कर सकते है पर जानकारों का मानना है की ऐसी बुरी यादे कुछ ही दिनों में चली जाती है और ये नार्मल साइड इफेक्ट्स ही माने जाते है पर कुछ लोगो को कुछ महीने बीत जाने पे भी ये बुरी यादें कभी सपनो में तो कभी कभी रह रह के परेशान करती रहती है इसे जानकार पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर कहते है इसके इलाज के तौर पे पत्रकार को चाहिए की वो किसी अच्छे मनोविज्ञानी से कौन्सेल्लिंग ले जिससे ये बीमारी जल्द ही ठीक हो जाती है ऐसे मामलो में योग भी एक अच्छा विकल्प हो सकता है पर योग भी किसी अच्छे योग टीचर से सीख कर ही उपयोग में लाना  चाहिए

इस आर्टिकल के अंत में हम आपको इतना कहना चाहते है की युद्ध छेत्र में रिपोर्टिंग के दौरान जरुरी सभी तरह की ट्रेनिंग लेके जाना ही सबसे अच्छा विकल्प होगा, युद्ध छेत्र में काम करने के दौरान अपने एडिटर से ज्यादा से ज्यादा जुड़े रहने की कोशिश करे, कोशिश करे की बताए गए सभी नियमो का पालन करे, अंत में हम कामना करते है की आप सभी युद्ध छेत्र में अपना काम पूरा करके जल्द अपने घर पूरी तरह से स्वस्थ लौटेंगे

Source- Official booklet of RSF

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