india nepal GEO पॉलिटिक्स को जानिए करीब से, are india and nepal allies, nepal india friendship, is india close to nepal पढ़िए पूरी कहानी....

दोस्तों ये कहानी है भारत और नेपाल के सदियों पुराने रिश्तो की है, इसमें न किसी भी राजनीतिक पार्टी की आलोचना है न किसी भी राजनीतिक दल की कोई तारीफ, इसमें वो सब है जो नेपाल के प्रधानमंत्री श्री ओली जी को दोनों देशो के अटूट प्यार और कभी न अलग हो सकने वाले बंधन की झलक मिल जाएगी और हिंदुस्तान में बैठे चीन के समर्थको को ये कहानी जरूर पढ़नी चाहिए ताकि उनको पता लग जाए की चाहे चीन लाख कोशिश करले पर भारत और नेपाल की जनता को एक दुसरे से अलग करना असंभव है

नेपाल में साल 1846 से लेके 1950 तक राणा वंश का शाशन था उस समय किस देश के साथ नेपाल को कैसा रिस्ता रखना है इसका फैसला राणा वंश ही लिया करता था, नेपाल में साल 1960 में पहली चुनी हुई सरकार का उदय माना जाता है, साल 1960 के बाद नेपाल में भारत की मदद से पहली बार लोकतंत्र का जन्म हुआ, उस समय के नेपाल के शाशक महेंद्र ने भारत और चीन दोनों मेसे भारत को खुश रखना ज्यादा सही समझा और उन्होंने वो सब समझौते पलट दिए जो चीन की तरफ झुकते थे जिसमे ईस्ट-वेस्ट सड़क योजना थी जिसकी वजह से भारत को ये चिंता थी की तराई छेत्र में चीन की उपस्थिति भारत के लिए आने वाले सालों में सर दर्द बन सकता है जिस वजह से महेंद्र ने इस सड़क योजना के काम में चीन को नकारते हुए भारत की हिस्सेदारी मंजूर की,

पर कुछ समय बाद जब बांग्लादेश युद्ध हुआ तो नेपाल को ये पता था की इस संघर्ष में भारत की सहानुभूति पाकिस्तान के खिलाफ बांग्लादेश के पक्ष में है तब भी नेपाल ने इस मामले में न तो खुद दखल दिया और न किसी अन्य बाहरी ताकत के दखल को  सही बताया

नेपाल में लम्बे समय से एक तबका ऐसा है जो एहि मानता है की चीन जो भी करेगा वो नेपाल की भाले के लिए ही करेगा और भारत जो भी करेगा वो नेपाल को दबा के रखने के लिए करेगा एहि वो तबका है जिसकी वजह से नेपाल के कुछ लोगो के ही सही पर बिना वजह का शक घर किए हुए है

हिंदुस्तान के लगभग हर नागरिक को ये जरूर पता होगा की भारत की सेना में नेपाली युवको का महत्वपूर्ण स्थान है ये संभव कैसे हो सका है ये बात शायद कम लोगो को ही पता होगी, इसकी शुरुआत उस समय हुई थी जब भारत पे अंग्रेजो का राज हुआ करता था भारत की सेना को ब्रिटिश इंडिया आर्मी कहा जाता था साल 1815-16 के दरमियान ब्रिटिश इंडिया आर्मी और नेपाल के बीच एक समझौता हुआ था जिसे सगौली का समझौता कहा जाता है जिसके अस्तित्व में आने के बाद ही भारतीय सेना में नेपाली लोगो की भर्ती होनी शुरू हुई थी जो आजतक जारी है पर हाल के दिनों में नेपाल की सेना ने एक कदम आगे बढ़ते हुए कुछ अन्य देशो जैसे की ब्रिटेन, अमेरिका और रूस जैसी महा शक्तियों के साथ सैन्य अभ्यास किया है

भारत और नेपाल के बीच एक और समझौता साल 1950 में हुआ था जिसे भारत और नेपाल के रिश्तो की नीव कहा जाता है जिसमे एक शर्त थी की नेपाल की सेना के लिए जो भी गोला बारूद की जरूरत होगी उसे भारत से ही ख़रीदा जाएगा, अगर भारत किसी भी हाल में नेपाल की जरुरत न पूरी कर पाए तो नेपाल के पास अधिकार होगा की वो भारत सरकार की सहमति लेने के बाद ब्रिटेन या सिर्फ अमेरिका से खरीद सकता है पर ऐसे साजो सामान को लाने लेजाने में भारत की सीमाओं का इस्तेमाल किया जाना लाजमी होगा

नेपाल ने 1950 के समझौते का उलंघन करते हुए भारत से बात चीत किए बिना साल 1989 में चीन से अपनी सेना के लिए हथियार खरीदे थे जिसका भारत ने पुरजोर विरोध किया था, एहि नेपाल की तरफ से की जाने वाली पहली गलती थी जिसपे लगभग पूरी दुनिया भारत के पक्ष को सही मानती है इससे ये भी साफ़ हो जाता है की रिश्तो में जो भी खटास आई उसकी शुरुआत नेपाल की तरफ से हुई थी

इसके बाद नेपाल की कई राजनीतिक हस्तियों ने 1950 की ट्रीटी में बदलाव करने पे जोर दिया इन लोगो के मुताबिक ये ट्रीटी नेपाल की सम्प्रभुत्ता के लिए खतरा है साथ ही ऐसे कुछ लोग ये भी मानते है की भारत और नेपाल के बीच जो खुला बॉर्डर है वो भी नेपाल की सुरक्षा के लिए ठीक नहीं है

वन बेल्ट वन रोड परियोजना के लिए नेपाल ने कागजी तौर पे हाँ कह दी और अगर इस मामले में भारत का स्थान आरक्षित नहीं है तो ये बात भी नेपाल के लिए शर्मिंदा होने और नियमो का उलंघन का दोष झेलने का सबब बन जायेगा

भारत ने काठमांडू से रेलवे लाइन जोड़ने का प्रस्ताव रखा था जिसे नेपाल ने हरी झंडी 2016 तक नहीं दी थी वही दूसरी तरफ चीन ने नेपाल की तरफ डिफेन्स सेक्टर में खुला हाथ बढ़ाया है जिस वजह से नेपाल को लगता है की उसकी डिफेन्स जरूरतों के लिए अब भारत पर निर्भर रहने की कोई खास वजह नहीं है यानिकि अब डिफेन्स जरूरतों के लिए नेपाल के पास चीन एक मजबूत विकल्प की तरह है वही तीसरी तरफ पॉल केनेडी जैसे जानकार मानते है की भारत और चीन दोनों जितना ज्यादा नेपाल में रूचि दिखाएंगे उतना ही खुद दोनों देश एक दुसरे के साथ शत्रुता के बीज बोते चले जायेंगे

आपको बताते चले की नेपाल सदभाओना परिषद् जो आगे चलके एक राजनीतिक पार्टी बनी इसके बाद ही नेपाल में अनेको राजनीतिक पार्टीयो का जन्म हुआ , आगे चलके नेपाल में एक वर्ग ऐसा भी सामने आया जो आजतक खुदको नेपाल में अल्ग थलग महसूस कर रहा है इस वर्ग को ऐसा लगता है की उसे नए निर्मित संबिधान में कोई ख़ास स्थान नहीं दिया जा रहा, इस वर्ग को मधेस जाती का वर्ग कहा जाता है

मधेस ही वो वर्ग है जिसकी वजह से भारत नेपाल के साथ अपना रोटी बेटी का रिस्ता लम्बे समय से मानता रहा है, मधेस एक जन जातीय वर्ग है जिसकी अछि खासी आबादी नेपाल के समतल छेत्रों में रहती है, मधेस वर्ग के लोगो की रिश्तेदारियां भारत के बिहार, झारखण्ड जैसे राज्यों के लोगो के साथ जुडी हुई है, उधारण के तौर पे मधेस जाती के अनगिनत लोगो की शादियाँ नेपाल और भारत में हुई है और ये प्रथा आज भी चल रही है इसी वजह से भारत सरकार इन मधेसी लोगो के जो रिश्तेदार भारत में रहते है उनकी अपने नेपाल में रहने वाले रिश्तेदारों के हको की चिंता को आधार बना के हमेशा नेपाल सरकार पे ये दबाओ भारत की तरफ से बनाया जाता रहा है की नेपाल के नए संबिधान में मधेसियों को उचित स्थान दिया जाए, इसी वजह से नेपाल का एक वर्ग मधेशियो द्वारा अपने हको के लिए किये जा रहे संघर्ष को भारत की मोदी सरकार द्वारा चलाया जा रहा बता के नेपाल की जनता के मन में भारत के प्रति नफरत पैदा की जा रही है

अप्रैल 2017 में चीन के रक्षा मंत्री और स्टेट काउंसिलर चांग वनकुआंग की नेपाल यात्रा के दौरान चीन ने नेपाली सेना को लगभग Rs. 4.5  बिलियन की मदद के नाम पे एक लालच दी, पर नेपाल को ये याद रखना होगा की उसकी सीमाएं चीन और भारत दोनों से लगती है पर नेपाल जितना अपनी जरूरतों के लिए भारत पे निर्भर रहेगा उतना चीन पे होना संभव नहीं है

1857 में भारत में जब अंग्रेजो के खिलाफ विद्रोह फूटा तो अंग्रेज सेना में तैनात गोरखा सैनिको ने 1857 के विद्रोह को दबाने में एहम भूमिका निभाई थी एहि नहीं दो विश्व युधो में भी गोरखा सैनिको ने अंग्रेजो की तरफ से लड़ाई लड़ी थी 1950 में हुई ब्रिटिश इंडिया और नेपाल के बीच ट्रीटी के मुताबिक नेपाल और भारत दोनों मेसे अगर किसी भी देश को अपने किसी अन्य पडोसी(चीन और तिब्बत) से जुडी कोई समस्या आती है तो दोनों देश एक दुसरे का सहयोग करेंगे, ट्रीटी के इस क्लॉज़ को आधार मानके भी भारत नेपाल के चीन के करीब जाने का विरोध करता है, भारत इस मामले में जरुरत पड़ने पे नेपाल को सहयोग करता भी रहा है पर नेपाल से भारत को चीन के सम्बन्ध में कोई मदद मिलने की उम्मीद कम ही दिखती है

नेपाल ने पहले 1988-89 और फिर 2005-06 में चीन से हथियार खरीदे इसके इलावा नेपाल ने अमेरिका से भी 1965 में एक करार किया था जिसके तहत आज भी नेपाल अमेरिका से भी हथियार खरीद रहा है, इसके इलावा नेपाल के राजा महेंद्र ने 1960 के शुरुआत में चीन के पैसो से निर्मित एक रोड परियोजना को हरी झंडी दी थी जो काठमांडू और चीन- नेपाल सरहद के पास एक नेपाली शहर कोडारी को जोड़ती है, नेपाल ने चीन को भारत के तराई छेत्र के बिलकुल नजदीक के इलाके में पैर रखने दिया था ये वही छेत्र है जहा से भारत में माओइस्ट घुसपैठ का डर हमेशा रहा है, अतीत में नेपाल एहि नहीं रुका उसने चीन के बाद पाकिस्तान से भी रक्षा सम्बन्ध बनाये थे

नेपाल के पाकिस्तान के करीब आने की वजह से साल 1999 में भारत का यात्री विमान(IC814) काठमांडू से पाकिस्तानी आतंकवादियों दवार अगवाह करके अमृतसर होते हुए कंधार ले जाया गया था उस समय इस विमान को छुड़वाने में नेपाल ने भारत से कुछ ख़ास सहयोग नहीं किया था और न ही आजतक कोई ऐसा कदम उठाया है की 1999 जैसी कोई घटना दुबारा न घट सके

इससे पहले नेपाल के राजा महेंद्र ने 1960 में जब भारत ने नेपाल में लोकतंत्र का समर्थन किया तो महेंद्र ने भारत के हितो को छति पहुंचाने के लिए चीन और पाकिस्तान जैसे देशो का हाथ थामा और एहि से राजा महेंद्र ने नेपाल की जनता के मन में एक फर्जी राष्ट्र वाद पैदा करने की कोशिश की जिसका आधार देने के लिए भारत को एक खलनायक बना के पेश किया गया था, उस समय के इस राष्ट्रवाद का नाम मंडाले राष्ट्रवाद रखा गया था

थोड़ा आगे बढे तो हमें दिखेगा की नेपाल के लोगो के मन में व्यापार को लेके भी एक शंका है नेपाल के लोग सोचते है की वो भारत से जितना खरीदते है उससे कही काम भारत को बेचते है जिसे नेपाल के लोग व्यापार में एक असंतुलन मानते है, नेपाल और भारत के बीच एक समझौता हुआ था जिसे बिप्पा एग्रीमेंट कहा जाता है  जिसके अनुसार भारतीय कम्पनिया डायरेक्ट निवेश करने के लिए नेपाल के दरवाजे खुल जाने का इंतजार कर रही है 

भारत और नेपाल के बीच हुई संधि ये भी कहती है की अगर कोई तीसरा देश दोनों देशो मेसे किसी भी देश पे किसी भी तरह का खतरा पैदा करता है तो ऐसे हालात में दोनों देश एक दुसरे की मदद करेंगे और जरुरत पड़ने पे तीसरे देश के खिलाफ मिलकर मुकाबला करेंगे,

नेपाल ने जब साल 1988-89 में चीन से हथियार खरीदे तो भारत के एतराज करने पे नेपाल ने तर्क दिया की उसने संधि का उलंघन नहीं किया है क्यों की ये हथियार उत्तर की दिशा से आए है इस लिए भारत की सीमा उलंघन का सवाल ही नहीं उठता, भारत और नेपाल के बीच हुई 1950 की संधि के क्लॉस 7 के मुताबिक़ भारत और नेपाल दोनों देश एक दुसरे के नागरिको को अपने देश में अपने नागरिक जितने सम्मान देंगे, जो ख़ास कर व्यापार करने, एक दुसरे के नागरिको द्वारा एक दुसरे के देश में प्रॉपर्टी खरीदने और रखने के अधिकार प्रमुख है

भारत और नेपाल के बीच हुई साल 1950 की संधि को कुछ नेपाली लोग जहाँ अपने खिलाफ मानते है और कुछ तर्क देते है जिनमेंसे कुछ इस प्रकार है:

नेपाल के लोग कहते है की नेपाल एक बहुत छोटा देश है और भारत बहुत बड़ा जिस वजह से 1950 की संधि का ज्यादा फ़ायदा भारत को होता है और नेपाल को बहुत कम, साथ ही नेपाल के लोग कहते है की भारत और नेपाल के बीच खुले बॉर्डर का फ़ायदा भारत में जुर्म करने वाले लोग करते है और वो अपने देश में जुर्म करके नेपाल भाग आते है जो नेपाल के लिए भी अच्छा नहीं है, इसके साथ ही नेपाल के कुछ लोग कहते है की नेपाल की इकॉनमी पे भारत के लोगो का ज्यादा असर भी नेपाली लोगो के लिए अच्छा नहीं है

नेपाल के सभी लोग भारत नेपाल के बीच हुई 1950 की संधि के खिलाफ भी नहीं है, इसके पक्ष में नेपालियो के कुछ तर्क है जो इस प्रकार है:

नेपाल के बहुत लोग भारतीय सेना से सेवा निवृत हो चुके है जिनको भारतीय सरकार पेंशन देती है ये पेंशन धारी लोग कहते है की जब तक नेपाल आर्थिक रूप से इतना आत्म निर्भर नहीं हो जाता की वो अपने सभी नागरिको का खर्च अपने दम पर उठा सके तब तक भारत नेपाल के बीच हुई 1950 की संधि में बदलाव करना आत्मघाती होगा, नेपाल के जो लोग भारतीय सेना में काम कर चुके है या वो लोग जो भारत में किसी भी तरह का काम करते है वो इस बात को सिरे से ख़ारिज करते है के 1950 की संधि किसी भी तरह से नेपाल की संप्रभुता के लिए खतरा है

नेपाल और भारत के लोगो के बीच विश्वास की डोर कितनी मजबूत है इस बात का अंदाजा इस बात से ही लग जायेगा की जब नेपाल के राजा त्रिभुवन को देश से भागना पड़ा था तो उन्हें पहले काठमांडू स्थित भारतीय दूता वास में ही शरण मिली थी इसके  बाद ही वो दिल्ली पहुंच सके थे, ये मामला साल 1950 का है तब भारत में पंडित नेहरू प्रधानमत्री थे जिन्होंने नेपाल के राजा, राणा और नेपाली कांग्रेस के बीच समझौता करवाया था

इसके बाद जब सत्ता राजा महेंद्र के हाथो में आई तो 15 दिसंबर 1960 को राजा महेंद्र ने बी पी कोइराला सहित सभी प्रमुख डेमोक्रेटिक नेताओ को जेल में डालने का फैसला ले लिया था तो बी पी  कोइराला और कई डेमोक्रेटिक नेपाली नेताओ को भारत ने ही राजनीतिक शरण दी थी

इसके बाद साल 2006 में भारत की मध्यथा के बाद ही 12 पॉइंट्स का एग्रीमेंट माओइस्ट के साथ हो सका था जिसके बाद कुल 7 पार्टियों का गठजोड़ बन सका था जिसके बाद ही नेपाल में शांति बहाली हो सकी थी  

जब भारत में इंद्रा गाँधी सरकार ने इमरजेंसी की घोषणा की थी तो भारत के सभी विपक्षी नेताओ को शरण देने के लिए नेपाल ही सबसे पहले आगे आया था

बी पी कोइराला ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सीधे तौर पे हिस्सा लिया था पुष्पलाल श्रेष्ठा ने नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी की शुरुआत साल 1949 में भारत की धरती से ही की थी,

 और तो और जब नरेंद्र मोदी साल 2014 में  पहली बार भारत के प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने काम  सभालने के 3 माह के बाद ही  नेपाल की यात्रा की, ये 17 साल बाद भारत के किसी प्रधानमंत्री की नेपाल यात्रा थी, भारत के मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो यह तक कहते है की भारत ने ऐसा कोई युद्ध नहीं जीता जिसमे नेपाल के लोगो ने अपना बलिदान न दिया हो

नेपाल की कुल जनसँख्या को तीन भागो में बांटा जा सकता है सबसे पहले आते है खास आर्य, दुसरे है मधेसी और तीसरा वर्ग है जनजाति लोगो का, नेपाल के राजा पृथ्वी नारायण शाह के राज के समय से ही आर्य खास ही नेपाल में सबसे ज्यादा महत्व हासिल करते आए है बाकी के दो वर्ग नेपाल की जनसख्या के 60% है फिर भी खुद को समाज में पूरा हिस्सा न पाते हुए मानते है

आज भी नेपाल में डेवलपमेंट के जो भी कार्य चल रहे उनमेसे ज्यादातर भारत की मदद से ही चल रहे है, दूसरी तरफ जो नेपाली लोग गल्फ, मलेसिया  या साउथ कोरिया नहीं जा पाते वो लोग भी भारत में आके काम करना पसंद करते है, एक अनुमान के हिसाब से 6 मिलियन नेपाली लोग भारत में किसी न किसी छेत्र में काम कर रहे है

वर्तमान समय में नेपाल के पहाड़ी इलाको में रहने वाले गरीब खास आर्य वर्ग से आने वाले ब्राह्मण और छत्रिय समाज के लोगो को आरक्षण देने के लिए नेपाल के संविधान में 7 से बढ़ा के 17 क्लस्टर कर दिया गया है, कुछ जानकार तो ये भी मानते है की नेपाल के उच्च सरकारी पदों के 70% पदों पे पहले से ही खास आर्य वर्ग के लोग ही बैठे है, नेपाल में हाउस ऑफ़ रेप्रेज़ेंटेटिव और प्रोविंशियल असेंबली में 30% सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित कर दी गई है, पर नए संबिधान में मधेसी वर्ग और जनजाति के वर्ग के लिए कुछ खास नहीं रखा गया जो  भारत की चिंता का सबब बना हुआ है लिहाजा नेपाल को  इस विषय  पर विचार कर लेना चाहिए

नेपाल के नए संबिधान को रचने वालो को लगता है की ऐसा डर रहा होगा की कही भारत से आने लोग उनके सभी उच्च पदों पे काबिज़ न हो जाएं इसी लिए नेपाल के नए संबिधान में आर्टिकल 268 जोड़ दिया गया है जो पुराने सबिधान में नहीं था इसी वजह से मधेसी, थारू और जनजाति के लोग चिंतित है क्यों की नेपाल में इन तीनो खास कर मधेसी लोगो को भारत से जुड़ा माना जाता है इसी लिए इन वर्गो को लगता है नए संबिधान के लागू होने के बाद ये वर्ग बिलकुल पिछड़ जायेंगे

एक बार जब मधेसियों ने डिस्ट्रिक्ट हेडक्वार्टर के सामने शांति पूर्ण प्रदर्शन करने की मांग रखी जिसे नेपाल सरकार ने ख़ारिज कर दिया जिससे गुस्साए मधेसियों ने बॉर्डर बंद कर दिया और काठमांडू सहित नेपाल के दूर अंदरूनी इलाको तक जरुरी चीजों की सप्लाई रोक दी तो नेपाल सरकार ने इस प्रदर्शन का ठीकरा भारत के सर फोड़ा और नेपाल की भोली जनता के मन में भारत  के खिलाफ नफरत भरने की कोशिस की

पर जब इन्ही मधेसियों ने साल 2007 में माओइस्ट के खिलाफ अपनी आवाज़ उठाई तब नेपाल की किसी भी पार्टी जिसमे नेपाल की कांग्रेस और CPN-UML किसी ने भी इसका न तो विराध किया और नहीं इसके लिए भारत पे इल्जाम डाला क्यों की सभी पार्टिया चाहती थी की मधेस में माओइस्ट कमजोर रहें, आप सबके मन में ये सवाल भी होगा की मधेसियों ने बॉर्डर को जबरन क्यों बंद किया तो उसका कारण था की जब लम्बे समय तक किये जाने वाले शांति पूर्ण संघर्ष का कोई नतीजा नहीं निकला और तो और पुलिस ने मधेसियों पे सीधे गोली तक चला दी वो भी सर और छाती पे  इसके बाद मधेसियों ने गुस्से में आके बॉर्डर को बंद कर दिया था

मधेसियों में हिन्दू और मुस्लिम दोनों समाज के लोग है पर जब भी पहाड़ी समाज VS मधेसी मामला बनता है तो मधेसी हिन्दू मुस्लिम का भेद भूलके सिर्फ मधेस पहचान के नीचे इकठा हो जाते है

नेपाल और भारत के बीच की नजदीकियों का अंदाजा आप इस बात से ही लगा सकते है की साल 1950 से पहले जब ईस्ट और वेस्ट नेपाल को जोड़ने वाला मार्ग नहीं बना था तब नेपाली लोग अपने ही देश के एक हिस्से से दुसरे हिस्से में जाने के लिए भारत की सड़को का इस्तेमाल किया करते थे

अब चलते है इस सवाल के जवाब की तलाश में की नेपाल आजकल चीन को भारत से ज्यादा महत्व क्यों दे रहा है, नेपाल में चीन भारत से ज्यादा प्रोजेक्ट्स कर रहा है पर कम प्रोजेक्ट्स करके भी भारत चीन से ज्यादा नेपाल के लोगो को रोजगार मुहैया करवा रहा है पर फिर भी नेपाल का चीन की तरफ झुकना कुछ हजम नहीं होता कुछ आंकड़ों पे नजर डालनी होगी, जो आपको चौका सकते हैं:

नेपाल में भारत 636 प्रोजेक्ट कर रहा है जिसपे 130 बिलियन रुपए का खर्च बैठ रहा है जिसमे विदेशी निवेश कुल 81 बिलियन रुपए का बैठ रहा है इन कुल प्रोजेक्ट्स में भारत ने 65 हजार नेपाली लोगो को रोजगार मुहैया करवाया है जबकि चीन नेपाल में 972 प्रोजेक्ट्स कर रहा जो भारत की तुलना में काफी ज्यादा है पर इनमे कुल खर्च बैठ रहा है 56 बिलियन रुपए का जिसमे से 29 बिलियन विदेशी निवेश है और चीन इन सभी प्रोजेक्ट्स को मिला के कुल 48 हजार नेपाली लोगो को रोज़गार दे रहा है ये आंकड़ा साल 2016 का है

अब आते है नेपाल में सीधे विदेशी निवेश पे तो इस मामले में चीन नेपाल में 125 प्रोजेक्ट्स कर रहा है जिसमे चीन की तरफ से 6.21 बिलियन रुपए की FDI का कमिटमेंट है इस मामले में चीन ने 5527 नेपालियो को रोज़गार दिया है, इस मामले में भारत नेपाल में कुल सिर्फ 23 प्रोजेक्ट्स चला रहा है और भारत की तरफ से FDI की कमिटमेंट सिर्फ 1.94 बिलियन रुपए की है और भारत ने इस छेत्र में सिर्फ 764 नेपाली लोगो को रोज़गार दिया है जो चीन के मुकाबले हर तरफ से कही नहीं टिक रहा इस लिए भारत सरकार को नेपाल में FDI निवेश पे गंभीरता से सोचना होगा और इसे जल्द बढ़ाने की जरुरत पे विचार करना होगा

आइए जानते है नेपाली जनता के कुछ नाराजगी कारण जो बॉर्डर नियमों से जुड़े हुए है:

1. पशुपति चेक पॉइंट का मसला- नेपाल के लोग कहते है की पशुपति चेक पॉइंट एक ऐसी जगह है जहा भारतीय अफसरों ने चेक पॉइंट बना दिया है जहाँ वे लोग अपने दफ्तर में एक रजिस्टर रखते है जब भी कोई नेपाल से भारत में दाखिल होता है या कोई भारत से नेपाल में दाखिल होता है तो उसे इस रजिस्टर में बहुत सारी जानकारियाँ लिखनी पड़ती है जिसमे लोगो का बहुत समय ख़राब हो जाता है जिससे उन के रोज़ाना के काम बे बुरा असर पड़ता है

 2. बनबासा बॉर्डर की समस्या- ये बॉर्डर भारत और नेपाल के बीच सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाला रास्ता है, और नेपाल के लोगो को दुःख है की इस मार्ग पे सिर्फ 250 मीटर पे ही भारत की तरफ से 2 चेक पॉइंट बना दिए है जिसपे सबसे पहले कस्टम विभाग के लोग जांच करते है फिर SSB और सबसे बाद में BSF विभाग के लोग, इतनी ज्यादा जांच पड़ताल नेपाल की गरीब जनता सहन नहीं कर पा रही वो भी रोज़ाना जिसे नेपाल के लोग बिना वजह की प्रक्रिया मानते है जो सिर्फ लोगो और भारतीय अफसरों का समय ही ख़राब करती है ऐसा नेपाल के लोग मानते है

3. झूलाघाट और धारचूला मार्ग पे तो आने जाने का समय बाँध दिया गया है सर्दियों में ये मार्ग सुबह 6 बजे से लेके शाम सिर्फ 6 बजे तक ही खुले रहते है और गर्मियों में ये मार्ग सुबह 6 बजे से लेके शाम 7 बजे तक ही खुला रहता है इसके बाद अगर कोई एक गेट किसी तरह से खुलवा के दुसरे देश में दाखिल हो भी जाए ते दुसरे देश के गेट पे कई बार तो कोई होता ही नहीं और ताला लगा होता है जिससे आने जाने वाले लोग कई बार कई घंटो तक बीच में ही फसे रहते है          

भारतीय पक्ष के तर्क- भारतीय सरकार लम्बे समय से नेपाल भारत के बीच खुले बॉर्डर को इस लिए खतरा बता रही है क्यों की भारत ये मानता है की नेपाल में पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI बहुत सक्रिय है जिसके एजेंट्स और आतंकी भारत नेपाल के बीच खुले बॉर्डर का कभी भी इस्तेमाल कर सकते है, इसके इलावा भारत की इंटेलिजेंस ये भी मानती है की भारत की फेक करेंसी भी नेपाल बॉर्डर के रस्ते ही भारत में दाखिल होती है जिसे रोका जाना बहुत मुश्किल ही नहीं, बहुत जरुरी भी है

नेपाल और भारत के बीच प्रत्यर्पण संधि नहीं है पर नेपाल और भारत की पुलिस के बीच गजब का एक ऐसा ताल मेल है की जिसके वजह से जब भी कोई अपराधी नेपाल में किसी वारदात को अंजाम देके भारत में घुस जाता है तो नेपाल की सीमा सुरक्षा के बल भारतीय बलों को बता देते है और भारतीय बल अपराधी को पकड़के चुप चाप नेपाल के अधिकारियो को सौंप देते है ऐसे मामलो में नेपाल के बल भारत के अधिकारियो की खुलके मदद करते है पर एक समस्य दोनों बलों को आरही है वो भारतीय मीडिया की तरफ से, जब भारतीय अधिकारी किसी अपराधी को नेपाल के बलों  की मदद से पकड़के मीडिया के सामने पेश करते है तो स्टेटमेंट ये देते है की अपराधी नेपाल की सीमा के पास पकड़ा गया है इस्पे भारतीय मीडिया का कुछ हिस्सा ये कहके नेपाल को बदनाम करता है की नेपाल अपराधियों के लिए स्वर्ग बन गया है तभी अपराधी नेपाल भागना चाहते है इस तरह  के मीडिया ट्रायल की वजह से दोनों देश लम्बे समय से प्रत्यर्पण संधि को अंजाम देने की कोशिश कर रहे है उम्मीद है ये उपलब्धि जल्द ही हासिल होगी

भारत और नेपाल के बीच कुल मिलाके ईस्ट, वेस्ट और साउथ से बॉर्डर लगा हुआ है जो लगभग पूरा का पूरा खुला बॉर्डर है, इस बॉर्डर की लम्बाई लगभग 1750 KM  है जो लगभग 86,000 sq.km  का एरिया कवर करता है, दोनों देशो के कुल 48 डिस्ट्रिक्ट बॉर्डर के आस पास ही है, जिनमेंसे 22 भारत के और 26 नेपाल के है कुल 4 डिस्ट्रिक्ट पहाड़ है जिमेसे 2 भारत के और2  नेपाल के है, 9 डिस्ट्रिक्ट हिल एरिया में है जिनमेंसे 5 भारत के और 4 नेपाल के है 35 डिस्ट्रिक्स प्लेन एरिया में है जिसमे से 22 भारत और 26  नेपाल के है

साल 1856 के बाद जब नेपाली के हिल एरिया में रहने वाली आबादी ने तराई छेत्र में बसने से इंकार कर दिया जिसकी वजह इस इलाके का गर्म  वातावरण था, इसके बाद नेपाल की सरकार ने भारत के कुछ इलाको के लोगो को यहाँ बसने के लिए निमंत्रण दिया इन्ही लोगो ने नेपाल के तराई छेत्र को अपनी मेहनत से  विकसित किया और यहाँ का कृषि उद्योग खड़ा किया आगे चलके ये लोग नेपाल के लिए प्रमुख कर दाता बने,

इसके बाद नेपाल और भारत में लोगो के इधर से उधर आने जाने का सिलसिला और बढ़ा क्यों की कृषि जरूरतों के लिए तराई में बसे भारतीय लोगो को रोज़ाना भारत आना जाना पड़ता था

दूसरी तरफ कोसी जैसी नदियों में जब बाढ़ आती है तो इसका पानी भारत और नेपाल के बीच विबाद खड़ा करता रहता है

जब भारतीय सेना में गोरखा लोगो की भर्ती बड़े पैमाने पे होने लगी तो नेपाल सरकार ने भारत सरकार से कुछ शर्तो पे रजामंदी ली थी, जिनमेंसे प्रमुख शर्तो पे नजर डाल ली जाए:

1.  नेपाल के गोरखा सैनिको को किसी भी निहथे प्रदर्शनकारियो  और भीड़ ख़ास कर हिन्दू भीड़ के खिलाफ इस्तेमाल नहीं किया जा सकेगा

2.  गोरखा सैनिक जिस भी इलाके में रहेंगे उस इलाके में उनको खुखरी रखने की आज़ादी होगी क्यों की ये गोरखा लोगो की धार्मिक और राष्ट्रीय पहचान है

3. नेपाल के पास ये अधिकार रहेगा की वो सभी गोरखा सैनिक को  इमरजेंसी ख़ास कर नेपाल का किसी तीसरे देश के विरुद्ध युद्ध के हालत में  वापिस बुला सकेगा

भारत नेपाल के कृष उद्योग को केमिकल फर्टिलाइज़र्स मुहैया करवाता है इसके इलावा नेपाल में डीम्ड एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी भी भारत की मदद से ही बनी है

नेपाल सरकार ने भारत की नेपाल पुलिस अकेडमी जो नेपाल के कावरे डिस्ट्रिक्ट के पनौती में स्थापित की जा रही है के लिए मदद करने के लिए खुलके सराहना भी की है

नेपाल सरकार ने भारत की इस बात के लिए भी तारीफ की है की भारत सरकार ने नेपाल के लोगो को गल्फ देशो में काम करवाने के लिए गैरकानूनी ढंग से भारतीय पोर्ट्स का इस्तेमाल करने वालो के खिलाफ कड़ी करवाई की है जिससे नेपाली लोगो के जीवन और करियर की सुरक्षा हुई है

वही भारत ने इस बात के लिए नेपाल की तारीफ की है की  नेपाल सरकार द्वारा नेपाल में भारत की जाली करेंसी को कई बार ढूढ़ के इसको अंजाम देने वालो को पकड़ा है

नेपाल उन देशो में सबसे आगे रहा है जिसने भारत की संयुक्त राष्ट्र में स्थाई सदसयता के लिए समर्थन जारी किया है

दोस्तों तो ये है भारत और नेपाल के सदियों पुराने खट्टे मीठे रिश्तो की कहानी इसको पढ़के इतना तो पता लग ही जायेगा की नेपाल में चाहे जैसी सरकार आए या चीन कितने भी षड्यंत्र रच ले पर भारत और नेपाल को जुदा करना असंभव है क्यों की ये दिलों का रिस्ता है जो तोड़े कभी नहीं टूटेगा  

Source book- politics of Geo- politics: continuity and change in india- Nepal relations edited by lok raj baral

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