आज की हमारी ये कहानी देश की मीडिया के लिए शायद एक खबर के तौर पे मार्च 2021 के साथ ही कही गुम्म हो गई हो लेकिन एक दर्दनाक कहानी के रूप में लम्बे समय तक जिन्दा रहेगी और जब तक जिन्दा रहेगी तब तक भारत देश की न्याय व्यवस्था से सवाल पूछती रहेगी जिसका जवाब शायद देश कभी दे पाए
न्यायिक सिद्धांत में अक्सर कहा जाता है कि भले ही 100 गुनहगार छूट जाएं, लेकिन किसी निर्दोष को सजा नहीं होनी चाहिए यह न्यायपालिका की जिम्मेदारी है कि बेकसूर को सजा न हो लेकिन सिस्टम की लापरवाही की वजह से एक जवान, समझदार और मासूम व्यक्ति विष्णु की जिंदगी बर्बाद हो गई. केवल उसने नहीं, बल्कि उसके माता-पिता, भाई-भाभी, भतीजों ने भी 20 साल घुट-घुट कर यह सजा काटी है.
अनपढ़ विष्णु समझ नहीं पाया कब सजा सुना दी गई
विष्णु ने बताया कि 20 साल पहले एक गाय और पशुओं को लेकर छोटी सी कहासुनी हुई थी, लेकिन राजनीतिक ताकत की वजह से दूसरे पक्ष ने उसपर SC/SC एक्ट के तहत केस दर्ज कर दिया. विष्णु अनपढ़ था, कुछ समझ नहीं पाया. गरीब था इसलिए अपनी तरफ से वकील भी खड़ा नहीं कर सकता था. एक दिन कोर्ट ने उसके पक्ष में सरकारी वकील खड़ा कर उसे आजीवन कारावास की सजा सुना दी. विष्णु ने बताया कि जब जज ने जेल भेजने का निर्णय सुनाया, तो सामने बैठे होने के बावजूद उसको पता नहीं चला कि उसे सजा दे दी गई है.
उत्तर प्रदेश के जिला ललितपुर के निवासी 43 वर्षीय विष्णु तिवारी की जिंदगी के पिछले 20 साल आगरा की जेल में गुजरे. वह रेप और एससी/एसटी एक्ट में दर्ज हुए केस की सजा काट रहे थे, लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के बाद विष्णु 3 मार्च को बाइज्जत बरी हो गए. विष्णु तिवारी ने 20 साल तक उस जुर्म की सजा काटी, जो उन्होंने किया ही नहीं. रिहाई के बाद विष्णु ने अपना दर्द मीडिया के सामने बयां किया.
अब अदालत ने 20 साल बाद विष्णु के खिलाफ दायर मुकदमे को ही झूठा बताया है. सवाल यह उठना शुरू हो गया है कि विष्णु की ज़िंदगी के वो बीस साल उसे कौन वापस करेगा, जो उसने बगैर किसी गुनाह के ही सलाखों के पीछे निकाल दिए. उसे उसके मां-बाप कौन लौटाएगा, जो जवान बेटे के ग़म में तड़प-तड़प कर इस दुनिया से चले गए साथ ही उनके भाइयों से उन्हें कौन मिलवाएगा जो अब इस दुनिया में नहीं रहे.
20 साल बाद माननीय अदालत ने कहा है कि विष्णु जिस जुर्म में इतने सालों से जेल की सलाखों के पीछे क़ैद था, वो मुकदमा ही झूठा है, वो जुर्म तो उसने किया ही नहीं फिर क्यों उसे जेल की सलाखों में बंद रखा गया है. इसलिए उसे फ़ौरन आज़ाद किया जाए. इधर, जज साहब ने इस फ़ैसले पर अपने दस्तखत किए और उधर पिछले बीस सालों से काल कोठरी में घुट रहे विष्णु की ज़िंदगी में अचानक से उजाला हो गया. उसे रिहाई मिल गई. पर क्या सचमुच विष्णु की ज़िंदगी में उजाला हुआ? क्या सचमुच विष्णु को उसकी खोई हुई ज़िंदगी वापस मिल गई? क्या सचमुच उसे खोया हुआ आत्मसम्मान दोबारा हासिल हो गया? आप विष्णु की पथराई आंखों में झांकेंगे तो उन आंखों का सूनापन आपको आपके सवालों का जवाब खुद ब खुद दे जाएगा.
गांव वालों और रिश्तेदारों ने तब साथ नहीं दिया था
वहीं, अब जेल से जब विष्णु तिवारी रिहा होकर घर पहुंचे तो उनकी मदद को सामाजिक संगठनों के अलावा पुलिस और प्रशासन के अधिकारी भी आगे आ रहे हैं। जब तक वह जेल में रहे तो उनकी न्याय की लड़ाई में कोई भी सामने नहीं आया। यहां तक कि गांव वालों और रिश्तेदारों ने विष्णु तिवारी के परिजनों का बहिष्कार तक कर दिया था।
घर तक नहीं है विष्णु के पास
विष्णु रेप और एससीएसटी एक्ट के मामले में 20 साल तक जेल में बंद रहने के बाद हाईकोर्ट द्वारा निर्दोष साबित किए जाने के बाद आगरा सेंट्रल जेल से रिहा होकर घर पहुंचे। थाना महरौनी के ग्राम सिलावन निवासी विष्णु तिवारी के पास रहने के लिए घर भी नहीं मिला और वह रिश्तेदारों के घर में रहने को मजबूर हैं।
क्यों बीस साल पहले हुई थी जेल?: यूपी के ललितपुर के महरौनी थाना क्षेत्र के सिलावन गांव के निवासी विष्णु तिवारी पर एक महिला के रेप का आरोप था. आरोप था कि उसने गांव की एक महिला का उस समय रेप किया, जब वह घर से खेत में काम करने के लिए जा रही थी. पुलिस ने विष्णु तिवारी पर आईपीसी की धारा 376, 506 और एससी/एसटी एक्ट की धारा 3 (1) (7), 3 (2) (5) के तहत मामला दर्ज किया था. विष्णु को 16 सितंबर 2000 को गिरफ्तार किया गया. उस वक्त विष्णु की उम्र 23 साल थी.
साल 2003 में ललितपुर कोर्ट ने फैसला देते हुए विष्णु को 10 साल और एससी/एसटी एक्ट के तहत आजीवन कारावास की सजा सुनाई, कोर्ट के आदेश के मुताबिक, दोनों सजाएं साथ-साथ चलनी थीं. इसी सजा के तहत विष्णु तिवारी आगरा सेंट्रल जेल में सजा काट रहे थे.
विष्णु तिवारी भावुक होकर आगे कहते हैं, “मैं जेल में था. बाहर माता-पिता ने जमीन बेचकर मुझे निर्दोष साबित करने की आखिरी कोशिश की ज़ी न्यूज़ और पंजाब केसरी के डिजिटल प्लेटफार्म पे छपी खबर के मुताबिक विष्णु का कहना है की वकीलों ने उनके अनपढ़ माता पिता को कहा की पैसे लाओ तो विष्णु की जमानत होगी, जमीन बिक गई, घर बिक गया पर जमानत नहीं हुई सारे पैसे वकील लोग हड़प गए, हार्ट अटैक से माता-पिता का निधन हो गया और वह दुनिया से चले गए इसके बाद दो भाइयों का भी देहांत हो गया.”
पुराने दिनों को याद करते हुए विष्णु ने कहा कि “हमारे पास खुशहाल परिवार था, खेत थे, इंजन था, बैल थे, तीन हल चलते थे, दस भैंसें थीं, लेकिन आज कुछ नहीं है जब घर पहुंचा तो देखा यहां कुछ भी नहीं है.”
विष्णु ने पत्रकारों से बात करते हुए आगे कहा कि पिछले 20 सालों में उन्होंने जो खोया है, वो अब वापस नहीं मिल सकेगा, लेकिन प्रशासन की मदद से वो आगे की जिंदगी को बेहतर कर सकते हैं. विष्णु ने कहा कि अगर प्रशासन सहयोग दे, तो वह नया घर बना सकेंगे.
विष्णु के छोटे भाई महादेव तिवारी भी सरकार से मुआवजे की उम्मीद रखते हैं वो कहते हैं कि इस मुकदमे की वजह से न बड़े भाई विष्णु की शादी हुई और न ही उनकी
विष्णु ने अपनी सफाई में कही ये बात: अमर उजाला में छपी एक खबर के मुताबिक इधर विष्णु ने बताया कि अगर वह कुछ दिन और रिहा नहीं होते तो आत्महत्या कर लेते । क्योंकि जेल में रहते-रहते उसके मन ने जेल की जिन्दगी से छुटकारा पाने के लिए आत्महत्या करने का मन बना लिया था। विष्णु ने बताया कि जो जुर्म उन्होंने किया नहीं था, उसमें उन्हें उस समय के भ्रष्ट सिस्टम के चलते जेल जाना पड़ा और सजा भी मिल गयी। उनकी कोई भी सुनवाई नहीं हुई, जबकि वह कहते रहे कि वह 17 साल के है वह बालिग नहीं है और न ही उन्होंने ऐसा कोई कृत्य किया है। बस पशुओं को लेकर थोड़ी बहुत इल्जाम लगाने वाले पक्ष से बहस हुई थी। इतनी सी बात को लेकर विपक्षी ने थाने में शिकायत दर्ज की लेकिन मामला झूठा होने के चलते तीन दिन तक पुलिस ने मामला नहीं लिखा। बाद में दबाव के चलते पुलिस ने उन पर रेप व एससी-एसटी एक्ट का मामला लिख लिया और पकड़कर जेल भेज दिया।
विष्णु तिवारी बताते हैं वर्ष 2003 में जेल में रहने के दौरान पता चला कि उन्हें रेप के मामले में दस वर्ष व एससीएसटी एक्ट के मामले में बीस वर्ष की सजा हुई है। उनके पिता ने जमानत के लिए जमीन बेची व पैसा लगाया। जमानत नहीं मिली तो पिता को लकवा मार गया और वर्ष 2013 में उनकी मौत हो गयी और 2014 में उनकी मां की भी मौत हो गयी ओर कुछ वर्षों बाद उनके बड़े भाई रामकिशोर तिवारी व दिनेश की भी मौत हो गयी।
12 वर्षों तक नहीं पहुंचा जेल में उससे कोई भी मिलने: विष्णु बताते हैं कि 2005 के बाद उनसे मिलने के लिए 12 वर्षों बाद कोई उनके पास नहीं पहुंचा। वर्ष 2017 में छोटा भाई महादेव मिलने पहुंचा, तब उन्हें पता चला कि उनके मां-बाप और भाइयों की मौत हो गयी है।
कैसे इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंचा केस?
ललितपुर कोर्ट में सजा मिलने के बाद विष्णु तिवारी को आगरा सेंट्रल जेल भेज दिया गया, जहां विष्णु के भाई महादेव तिवारी उनसे मिलने गए. विष्णु ने खुद को निर्दोष साबित करने के लिए महादेव को इलाहाबाद हाईकोर्ट की वकील श्वेता सिंह का नंबर दिया.
महादेव ने पत्रकारों से बात करते हुए बताया कि उन्होंने विष्णु को ललितपुर कोर्ट द्वारा दी गई सजा की कॉपी वकील श्वेता सिंह राणा के हवाले किया. विष्णु तिवारी की वकील श्वेता सिंह राणा ने बताया कि विष्णु पर लगी धाराओं के तहत कोई सबूत कोर्ट में पेश ही नहीं हुए थे. उन्होंने आगे कहा कि विक्टिम(रेप का इल्जाम लगने वाली महिला) की मेडिकल रिपोर्ट से साबित नहीं होता था कि विष्णु रेप के दोषी हैं, रिपोर्ट में किसी इंजरी का जिक्र नहीं था.
इस मामले पर हाईकोर्ट ने राज्य को फटकार भी लगाई, राणा ने बताया कि कोर्ट ने राज्य को निर्देश देते हुए कहा है कि ऐसे मुकदमे, जिसमें अभियुक्त आधी से ज्यादा सजा काट चुका हो और उनके मुकदमे लंबित हों, ऐसे केस रिकॉर्ड पर लिस्टिंग कर लाए जाएं, ताकि विष्णु जैसे मामलों का जल्द जल्द निपटारा हो, कोर्ट ने कहा कि लंबित होने से निर्दोष लोगों को सालों बाद न्याय मिल रहा है, जिसे रोका जाना चाहिए.
खण्डहर घर देख विष्णु बोले– अब कहां रहूंगा: जिस घर में विष्णु रहते थे, वह घर खण्डहर में तब्दील हो गया है। जब विष्णु अपने घर पहुंचे और जिस घर में वह रहते थे उस घर को खण्डहर हालत में देखकर यही बोले कि अब वह कहां रहेंगे । क्योंकि उनके परिवार के पास दो-तीन कमरे ही हैं और उनमें भी उनके भाई वगैरह रह रहे हैं। विष्णु का छोटा भाई महादेव बताते है कि भाई के जेल जाने के बाद से ही समाज ने उनका बहिष्कार कर दिया था और गांव के लोग उनके परिवार को कोई कार्यक्रम में नहीं बुलाते थे! दो-तीन साल पूर्व से ही गांव के लोग उन्हें बुलाने लगे हैं! उन्होंने बताया कि सरकार द्वारा न तो प्रधानमंत्री आवास मिला, मात्र उनके मंझले भाई के घर में एक शौचालय का ही लाभ मिला है।
ढाबा खोलने की तैयारी में विष्णु: विष्णु तिवारी ने बताया कि वह बनारसी साड़ियों का कारीगर थे । लेकिन जेल में रसोईया का काम किया है। कपड़ा बुनने का काम भी सीखा है। अब एक ढाबा खोलूंगा। विष्णु ने जेल में 600 रुपए कमाए थे। इन्हीं रुपयों को लेकर वे अपने घर जाने के लिए जेल के बाहर खड़े थे।
मामले को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने संज्ञान लिया है। आगरा के मानवाधिकार कार्यकर्ता नरेश पारस की शिकायत पर मुख्य सचिव और डीजीपी उत्तर प्रदेश को पत्र लिखा गया है। इसमें दोषपूर्ण विवेचना पर विवेचक पर कार्रवाई और पीड़ित को मुआवजा दिलाने के लिए कहा है। आयोग ने छह सप्ताह में रिपोर्ट तलब की है।
अखिल भारतीय ब्राह्मणोत्थान महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष व सदस्य विधान परिषद उमेश द्विवेदी ग्राम सिलावन में विष्णु तिवारी के घर जाकर उनसे मुलाकात करने का वादा कर चुके थे जिसके तहत वे 26 मार्च को उमेश द्विवेदी लखनऊ से प्रात: 7:00 बजे प्रस्थान करेंगे, जो दोपहर 2 बजे ललितपुर के ग्राम सिलावन थाना महरौनी पहुंचेंगे। इस दौरान उनके साथ अखिल भारतीय ब्राह्मणोत्थान महासभा के प्रदेश अध्यक्ष सीएल वाजपेयी एवं संगठन के अन्य पदाधिकारी भी साथ रहेंगे। यह जानकारी अनिरुद्ध पांडेय प्रतिनिधि सदस्य विधान परिषद ने दी है। ऐसा अमर उजाला के डिजिटल प्लेटफार्म पे छपी एक खबर में लिखा गया था, इस ब्यान पे संसथान ने क्या कदम बाद में उठाया इसकी ज्यादा जानकारी नहीं मिल सकी है
विष्णु तिवारी को मुआवजा दिलाने वाली याचिका जल्द ही हाईकोर्ट में दाखिल होगी। इस संबंध में अखिल भारतीय ब्राह्मण एकता परिषद के पदाधिकारी आगे आए हैं।
इस संबंध में उच्च न्यायालय में याचिका हेतु अखिल ब्राह्मण एकता परिषद का एक प्रतिनिधिमंडल विष्णु तिवारी से उनके घर पर मिला। इस दौरान हरिनारायण मिश्र वरिष्ठ अधिवक्ता हाईकोर्ट, श्यामजी दीक्षित झांसी, अशोक शुक्ल, श्याम बिहारी तिवारी, नीरज द्विवेदी आदि शामिल रहे। प्रतिनिधि मंडल ने आवश्यक तथ्य और सूचनाएं भी जुटाई । एकता परिषद के पदाधिकारियों ने हर प्रकार की सहायता देने का भरोसा भी दिया है। उनका कहना है कि विष्णु तिवारी एक झूठे मामले में जेल में रहे। उनका वह समय जेल में बीता है, जिस समय उनके पढ़ने व जीवन संभालने के दिन थे। जनपद के प्रशासनिक अधिकारियों ने भी सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाने का आश्वासन दिया है। इस क्रम में विष्णु तिवारी को एक सरकारी आवास की स्वीकृति मिल चुकी है। ऐसा भी अमर उजाला की ही एक खबर में छपा है
श्रम और सेवायोजन राज्यमंत्री मनोहरलाल पंथ विष्णु तिवारी से मिलने उनके गांव सिलावन पहुंचे और उनके घर में विष्णु को माला पहनाकर सम्मानित भी किया और एक लिफाफा देकर आर्थिक मदद की। उन्होंने विष्णु तिवारी को मदद के लिए जिला प्रशासन के अधिकारियों से बात करने और मदद के लिए शासन में मुद्दा रखने की बात कही। इस दौरान उन्होंने विष्णु के संबंध में जिला प्रशासन के अधिकारियों से आवास और रोजगार दिलाने के लिए वार्ता भी की, साथ ही पुलिस अधीक्षक से आपराधिक मामलों में गहनता से और निष्पक्ष जांच करने की बात कही। वहीं, यहां सोनू चौबे ने भी राज्यमंत्री को विष्णु साथ अन्याय की दास्तान सुनाई और प्रदेश की योगी सरकार और विधिक सेवा समिति का आभार जताया, जिनकी मदद से वह निर्दोष साबित होकर अपने घर लोटे है।
कांग्रेस के प्रदेश सचिव राहुल रिछारिया के साथ ब्राह्मण महासभा के अध्यक्ष प्रशांत रिछारिया, डॉ. विजय भारद्वाज, पंकज मिश्रा, बृजेंद्र तिवारी और जिले के पदाधिकारियों ने ग्राम सिलावन पहुंचकर विष्णु शंकर तिवारी की मदद की। इस दौरान उन्हें 21000 रुपये की धनराशि भेंट की गई।
अखिल भारतीय ब्राह्मण महासभा के पदाधिकारियों ने विष्णु के घर पहुंचकर दस हजार रुपये एवं सवा क्विंटल गेहूं की सहायता प्रदान की है।
प्रदेश अध्यक्ष पंडित राहुल त्रिपाठी कानपुर, जिलाध्यक्ष पंडित अमित कांत दीक्षित टिंकू ने विष्णु तिवारी के घर पहुंचकर दस हजार रुपये और सवा क्विंटल गेहूं की आर्थिक सहायता दी, साथ ही विष्णु तिवारी को अखिल भारतीय ब्राह्मण महासभा का उपाध्यक्ष बनाया गया है। इस अवसर पर विष्णु का मकान बनाने के लिए भूमि पूजन भी किया गया
अब पुलिस व प्रशासन के अधिकारी भी विष्णु तिवारी के गांव उनके घर मिलने पहुंचे, जहां प्रशासन की ओर से मुख्य विकास अधिकारी ने उन्हें प्रशासनिक स्तर पर प्रधानमंत्री आवास व मनरेगा के तहत रोजगार दिलाने का भरोसा दिया, वहीं पुलिस अधीक्षक ने विष्णु को योग्यता के आधार पर पुलिस लाइन में समायोजित करने की बात कही।
दोस्तों सबने जो भी किया है वो सब तो ठीक है पर कुछ सवाल अभी भी मुँह बाये खड़े है जैसे की जिसने विष्णु तिवारी को SC/ST एक्ट और रेप जैसे झूठे मामले में फसाया अभी तक उस पक्ष के खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं हुई और अब तक कोई राजनीतिक पार्टी या सरकारी अफसर उक्त पक्ष के खिलाफ एक भी शब्द क्यों नहीं बोल रहा, दूसरी बात मामला इतना तूल पकड़ चूका है अदालत मामले में खुद संज्ञान कब लेगी, झूठे मामले दर्ज करने वाले पुलिस अधिकारियो की जवाब देहि कब तै होगी ऐसे लोगो को सजा कब मिलेगी
योगी आदित्य नाथ उत्तर प्रदेश के अबतक के सबसे सफल और मेहनत करने वाले मुख मंत्री माने जाते है वो विष्णु के जीवन को दुबारा पटरी पे लाने के लिए कोई बड़ा और असर दार कदम जल्द से जल्द उठाएं ऐसी हमारी योगी जी से अपील है
साथ ही सामाजिक संस्थाओ, गरीबो को इन्साफ दिलाने की लड़ाई लड़ने वाले वकील भाइयो, मानव अधिकार संगठनों और यहाँ तक की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पे मानव अधिकार के पक्ष में काम करने वाली संस्थाओ से भी हम अपील करते है की वो कहानी में दी गई बेसिक जानकारी को आधार बना के विष्णु तिवारी तक पहुंच बनाएं और उनकी तत्काल मदद करे और आने वाले समय में उनके मामले को सुप्रीम कोर्ट में उठाएं, हमे भी आने वाले समय में इस मामले जुडी जो भी जानकारी मिलेगी उसे सार्वजनिक करते रहेंगे ताकि मदद करने की इच्छुक संस्थाओ और लोगो को सूचना मिलती रहे
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