विश्व राजनीति के कुछ नियम और इसका इतिहास, न कभी पढ़े होंगे न सुने होंगे, क्या है विश्व राजनीती???..... कहानी का भाग-1....

अंतर्राष्ट्रीय राजनीति को बस एक लाइन में समेटा जा सकता है या यु कहे की इसके लिए एक शब्द ही काफी है जो इसको शुरू से अंत तक ब्यान कर सकता है वो शब्द है “ताकत” अंतर्राष्ट्रीय राजनीती में हर देश अंतर्राष्ट्रीय स्तर पे ताकत हासिल करने के लिए हर तरह की राजनीती करता है ताकत हासिल करने के इलावा अंतर्राष्ट्रीय राजनीती में किसी और तरह की राजनीति के लिए कोई जगह है ही नहीं, इस स्टोरी में आपको अंतर्राष्ट्रीय राजनीति से जुड़े बहुत से उधारण और स्टेटिस्टिक्स मिलेंगे

ऐसा ही एक उधारण रोमन साम्राज्य से भी जुड़ा हुआ है रोमन साम्राज्य को युद्ध के समय में जो भी पक्ष कमजोर दिखता था उसके तरफ से युद्ध में ताकतवर पक्ष के खिलाफ मैदान में उतर जाया करता और युद्ध में ताकतवर पक्ष को हराने के बाद कमजोर पक्ष को रोमन साम्राज्य में बड़ी आसानी और प्रेम से मिला लिया जाता था ताकतवर पक्ष तो वैसे ही हार चूका होता था उसके लिए तो रोमन साम्राज्य के आगे झुकना ही होता था कुछ इसी तरह यूनान साम्राज्य भी तलवार के दम पे ही खड़ा हुआ था

अंतर्राष्ट्रीय राजनीती में सिविलाइसेशन को महत्व दिया गया जिसकी परिभाषा के मुताबिक सबके लिए एक जैसा न्याय करने वाले कानून का राज हो और जंगल राज जहाँ सिर्फ ताकतवर का राज चलता है ऐसी व्यवस्था के लिए कोई स्थान नहीं होता

आगे बढ़ने से पहले एक बात नोट करिए की आज की विश्व राजनीती और विश्व सम्बन्धो को लेके जितनी भी थेओरीज़ आई है या यु कहे जो भी दिशा निर्देश चल रहे है उनमेसे ज्यादा तर पश्चिमी देशो ख़ास कर अमेरिका से आने वाले विद्वानों की ही देन है, अगर ये बात कही जाए की विश्व राजनीती में रूस के लेनिन, चीन के माओ, भूतपूर्व योगोस्लाविआ के टीटो, इंडोनेशिया के सुकर्णो, इजिप्ट के नासिर, भारत के महात्मा गाँधी और नेहरू जैसे चर्चित और बड़े नेताओ  के सुझाव को कोई ख़ास जगह नहीं मिली है, तो ठीक ही रहेगा, ऐसा बिलकुल भी नहीं है की इन बड़े नामो का धरातल पे कोई योगदान नहीं पर फिर भी इनकी सोच को नजरअंदाज करते हुए पश्चिम के विद्वानों को ख़ास तवज्जो दी गई है, विश्व राजनीती में एक देश दुसरे देश के साथ कैसे पेश आएगा इसके लिए नियम और थेओरीज़ भी पश्चिम की तरफ से ही आई है

साथ ही एक बात और ध्यान रहे की विश्व राजनीती में सामाजिक विज्ञान का अहम स्थान है पर समाजिक विज्ञान में नेचुरल विज्ञान के किसी भी नियम को लागु नहीं किया जा सकता क्यों की सामाजिक विज्ञान नेचुरल विज्ञानं की तरह स्थाई कुदरती चीज़ो जैसे की हवा और रौशनी से डील नहीं करता, सामाजिक विज्ञान तो इंसान के वर्तावो से जुड़ा है जो समूह और एक दुसरे के साथ किए जाने वाले वर्तावो जो हालातो के साथ बदलते रहते है पे खोज करता है या यु कहे की डील करता है

इस बात को भी याद रखना होगा की संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर नंबर 52 के हिसाब से से छेत्रिय गठबंधन बनाने की अनुमति है ये गठबंधन छेत्र में शांति बहाल रखने और गठबंधन के देशो की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए बनाए जा सकते है

साथ ही इस बात को भी याद रखना होगा की गठबंधन के सभी देश जब तक एक दुसरे की जरूरतों और भरोसे को पूरा करने के लिए सक्षम और जिम्मेदार नहीं होते तब तक ऐसे गठबंधन कामयाब नहीं हो सकते

गेम थ्योरी- अंतर्राष्ट्रीय राजनीती में गेम थ्योरी को काफी महत्व दिया जाता है पर इसकी आलोचना करने वाले भी उतने ही है जितने इसकी प्रशंसा करने वाले, इस थ्योरी के मुताबिक जब किसी मसले पे दो या दो से ज्यादा देशो(एक्टर्स) के बीच कोई मतभेद हो तो उसको सुलझाने के समय हर एक्टर चाहता है की उसे फायदा ज्यादा से ज्यादा और नुक्सान काम से कम हो

पर गेम थ्योरी के आलोचक ये मानते है की अंतर्राष्ट्रीय मतभेदों पे ऐसा कोई रास्ता निकाला जाना चाहिए जिससे सभी जीते पर कोई भी न हारे पर गेम थ्योरी जीत और हार को सुनिश्चित करती है इसका मतलब यह है की ये थ्योरी अंतर्राष्ट्रीय राजनीती के लिए सकारात्मक नहीं है साथ ही यह थ्योरी अंतर्राष्ट्रीय राजनीती के मसलो का समाधान करके इन मसलो को खत्म करने की बात कहती है पर अंतर्राष्ट्रीय राजनीती में ज्यादा तर मसले कभी खत्म नहीं होते

विद्वान् मानते है की अंतर्राष्ट्रीय राजनीती का केंद्र बिंदु शक्ति हासिल करना है, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में कुछ महान शक्ति देशो को स्थान दिया गया है जिनकी ये जिम्मेदारी रहती है की कौनसा देश कितना सैनिक शक्तिशाली बन रहा है साथ ही इसपे भी नजर रखते है की किस देश ने आर्थिक तौर पे कितनी शक्ति अर्जित की है, इस प्रक्रिया का मकसद सिर्फ इतना है की कोई भी एक देश इतना शक्तिशाली न हो जाए की वो दुसरे देश की स्वतंत्रता के लिए खतरा पैदा कर सके

देश एक दुसरे से ज्यादा शक्ति अर्जित करने की चाह क्यों रखते है- पहली बात की किसी भी देश को ये नहीं पता की उसके भिन्न विचारो वाले देश के पास कितनी शक्ति है जिस वजह से हर देश अपने से भिन्न विचार वाले देश के किसी भी संभावित हमले से बचने के लिए ज्यादा से ज्यादा शक्ति अर्जित करना चाहता है दूसरी बात ये है की हर देश अपनी सम्प्रभुत्ता की बाहरी और अंदरूनी शत्रुओं से रक्षा के लिए शक्ति अर्जित करता है अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने हर देश को आत्म रक्षा का अधिकार भी दे रखा है जिसके तहत आत्म रक्षा के लिए शक्ति अर्जित करना हर देश का अधिकार है, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ये बात अच्छे से मानता है की कोई भी युद्ध किसी भी पक्ष को फायदे से ज्यादा नुक्सान ही देता है

 

देशो को पर्तिस्पर्धा और सहयोग के बीच का अंतर् स्पष्ट रहना चाहिए और ये दोनों अंतर्राष्ट्रीय रिश्तो में जीवित भी रहनी चाहिए पर देशो को ये बात भी याद रखनी चाहिए और मतभेद और पर्तिस्पर्धा में अंतर् भी आँखों से ओझल नहीं होने देना चाहिए वर्ना देशो के नेता एक दुसरे से ठगा हुआ महसूस करेंगे, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय हमेशा से इस बात पे जोर देता आया है की ऐसे संस्थानों का निर्माण होना चाहिए जो हथियारों की अंधी दौड़ को रोकने में सक्ष्म हो वरना ये दौड़ युद्ध की वजह बनती है

देखने में आता रहा है की देश जिनकी सोच अलग होती है, सामाजिक ढांचा अलग होता है, राजनीतिक ढांचा पूरी तरह से अलग होता है पर इन देशो की विदेश नीति एक जैसी क्यों होती है, उदाहरण के तौर पे शीत युद्ध के दौर में सोवियत संघ और अमेरिका की घरेलु, समाजिक और राजनीतिक ढांचा पूरी तरह से एक दुसरे से भिन्न थे फिर भी दोनों ने एक दुसरे के साथ एक जैसी पर्तिस्पर्धा का प्रदर्शन किया, दोनों ने एक जैसे सैनिक गठबंधन भी बनाए, यहाँ तक की दोनों ने अपने प्रभाव वाले छेत्र में एक जैसा एक्सप्लोइटेशन किया, इसपे आगे रौशनी डाली जाएगी

अंतर्राष्ट्रीय राजनीती और रिश्तो में शक्ति को दो ध्रुवीय होना बहुत जरुरी है, उदाहरण के तौर पे साल 1962 में क्यूबा मिसाइल संकट इसी वजह से खत्म हो सका था क्यों की इस मामले में दो महा शक्ति (अमेरिका और सोवियत संघ) आमने सामने आ गए थे लिहाजा दोनों को एक दुसरे की सैनिक शक्ति का अंदाजा था दोनों जानते थे की आमने सामने के युद्ध में दोनों का विनाश हो जाएगा इसी वजह से दोनों शक्तियों ने मामले का समाधान बात चीत से कर लिया था

महान विद्वान् वाल्ट्ज कहते है की बहु ध्रुवीय शक्ति का होना बेहद खतरनाक है क्यों की ऐसे मामले में एक ही महा शक्ति बची अमेरिका जिसकी किसी भी गतिविधि पे लगाम लगाने वाला कोई नहीं बचा, जिससे अमेरिका द्वारा अपनी मन मर्जी पूरे विश्व पे थोपे जाने का खतरा सामने आगया था

अंतर्राष्ट्रीय राजनीती में हर देश के तीन सबसे पहले लक्ष्य होते है, हिंसा की रोक थाम, प्रॉपर्टी का अधिकार और विश्वास और एग्रीमेंट की बहाली, रेअलिस्ट विचार धारा वाले मानते है की शक्ति का संतुलन का एक ही मकसद होना चाहिए सभी देशो के अस्तित्व को क़याम रखना मतलब सभी देश शांति और आज़ादी से अपने अस्तित्व को बनाए रख सके

पश्चिमी ताकत को चुनौती देने वालो के कुछ ख़ास विचार भी याद रखने होंगे: सामान प्रभु सत्ता के लिए संघर्ष, देशो की पूरी आजादी की मांग, जाती, धर्म व रंग भेद के खलाफ संघर्ष जिसका मकसद सबको आज़ादी और आतम्सम्मान से जीने का अधिकार दिलाना हो, किसी भी तरह के शोषण के अंत और आर्थिक आज़ादी के लिए संघर्ष, हाबी होती पश्चिमी सभ्यता के खिलाफ व्यापक मुहीम ये कुछ ख़ास बिंदु हमेशा से पश्चिमी विचार धारा का विरोध करने वालो द्वारा विश्व राजनीती और विश्व स्तर के रिश्तों के सामने रखे जाते रहे है

शक्ति के बारे विश्व के महान लोगो के विचार हमेशा ही अलग रहे है. जैसा की चीन के माओ का कहना था की शक्ति बन्दूक की नली से निकलती है वही इसके पूरी तरह से उलट भारत के राष्ट्र पिता महात्मा गाँधी कहते थे की शक्ति लोगो के दिलों में रहती है

कुछ लोग अपनी मातृभूमि के लिए संघर्ष करते है तो कुछ लोग मानव अधिकारों की रक्षा के लिए संघर्ष करते आए है इसी तरह से लिंग समानता के लिए संघर्ष भी एक महान संघर्ष माना जाएगा जिसने महिला शशक्ति करण के लिए एक बड़ा योगदान दिया है

कुछ विद्वान कहते है की दुनिया को भगवान ने बनाया है पर विश्व के इतिहास को इंसान ने बनाया है

महिला शक्ति करण के लिए किए गए संघर्षो का ही नतीजा था की संयुक्त राष्ट्र संघ ने साल 1975 को अंतर्राष्ट्रीय महिला वर्ष के रूप में और साल 1975 से 1985 तक को महिला दसक का नाम दिया, इसके बाद कुछ महिला सम्मेलन की मीटिंग भी हुई इनमे से मेक्सिको में 1975, कोपेनहेगन में 1980, नैरोबी में 1985 और बीजिंग में 1995 प्रमुख और याद गार सम्मेलन रहे है

बाद में संयुक्त राष्ट्र के सुरक्षा परिषद् में एक मसौदा पास किया गया जिसका नंबर- 1325 और साल  2000 था इसके तहत सभी सदस्य देशो को अपील की गई की राष्ट्रीय, छेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पे सभी जरुरी फैसले लेने     वाली टीम में महिलाओ की भागीदारी बढ़ाई जाए, खास कर मतभेदों के मैनेजमेंट, रोक थाम और मतभेदों को सुलझाने की प्रक्रिया में महिलाओ की भागेदारी को बढ़ाने पे जोर दिया जाए

आगे चलके इस बात पे भी जोर दिया गया की महिलाओ और पुरषो में जो पूरी दुनिया में भेद है वो सिर्फ एक सोच का नतीजा है जिसे बदला जा सकता है, माना गया की  विदेश नीति, डिप्लोमेसी और युद्ध नीति सब पुरषो के लिए सुरक्षित रखी गई है जो बिलकुल भी न्याय संगत नहीं है इसे बदलके महिलाओ को सभी फैसले लेने की प्रक्रियाओं में बराबर का स्थान मिलना चाहिए

सिंथिया एलोए का कहना है की अफगान सोवियत युद्ध में रुसी माताओ की वजह से ही सोवियत सेनाओ की अफगानिस्तान से वापसी संभव हो सकी थी जिसके बाद ही ये युद्ध और फिर शीत युद्ध खत्म हो सका था

साल 1993 में युद्ध छेत्र में महिलाओ के साथ होने वाले यौन अत्याचार  को युद्ध अपराध की श्रेणी में रखा जाने लगा, यूगोस्लाविया में जब  युद्ध के दौरान महिलाओ से होने वाले जुल्म जैसे की शारीरिक शोषण को अब सीधे तौर पे “जिनेवा कन्वेंशन अगेंस्ट वॉर क्राइम” के तहत युद्ध अपराध माना जाता है

जर्मन विद्वान कैंट ने साल 1975 में अपने सिद्धांत में कहा है की जब तक आने वाले समय में युद्ध की नियत से छुपा के जब तक घातक हथियार रखे जाएंगे तब तक शांति की कोई भी योजना सफल नहीं मानी जा सकती, कैंट का कहना है की अगर स्थाई शांति की पूरे विश्व को जरुरत है तो इस बात का पूरा ध्यान रखना होगा की कोई भी देश किसी भी छोटे  आज़ाद मुल्क पे किसी भी तरह का कोई शांति से या ताकत से अपना किसी भी तरह का आंशिक या पूरा अधिकार नहीं करेगा, राष्ट्रिय कर्ज को हमेशा विदेशी नीति से दूर रखा जाना चाहिए, कैंट का मानना है की किसी भी देश को किसी अन्य देश के संविधान और सरकार के काम में बिलकुल भी दखल नहीं देना चाहिए

कैंट मानते है की किसी भी देश का सिविल संविधान गणतांत्रिक होना चाहिए क्यों की गणतंत्र ही सरकार की ताकत पर  संविधानिक नियंत्रण रख सकता है और साथ ही सरकार दवारा की जाने वाली किसी भी गलत कार्य पे रोक लगा सकता है, आज़ाद कानून प्रक्रिया का होना बहुत जरुरी है अगर आज़ाद और निष्पक्ष कानूनी प्रक्रिया होगी तभी सभी गैर कानूनी कार्यो को दण्डित किया जा सकेगा, अंतरास्ट्रीय स्तर पे ऐसे संगठन और संस्थाएँ  बनाई जानी चाहिए जहा रंग भेद और जात धर्म का भेद बिलकुल भी न हो और सभी सदस्यों को एक समान सदस्य माना जाए

अब बात करते है अंतर्राष्ट्रीय राजनीती में शक्ति के महत्व की, क्यों की शक्ति ही अंतर्राष्ट्रीय राजनीती और रिश्तो का आधार, रास्ता और मंजिल सब है इसके बिना अंतर्राष्ट्रीय राजनीती में कुछ भी नहीं बचता, जिसमे आर्थिक शक्ति बहुत ही महत्व रखती है, आर्थिक आधार पे ही दुनिया के  देशो को चार तरह की ताकतों की श्रेणी में बांटा जाता है, महा शक्ति, बड़ी शक्ति, माध्यम शक्ति और छोटी शक्ति, विश्व राजनीती का हर सिस्टम शक्ति को तैयार करता है, राजनीती चाहे लोकल हो, राज्य स्तर की हो, राष्ट्रिय स्तर की हो या फिर अंतर्राष्ट्रीय हो राजनीती के  हर रूप का लक्ष्य शक्ति अर्जित करना होता है ऐसा इस लिए होता है क्यों की शक्ति हासिल करना इंसान की सबसे पहली फितरत या कहे की जरुरत है, वैसे राजनीती को अगर आसानी से समझना है तो याद रहे की राजीनति का मतलब है शक्ति को पैदा करना, फिर हासिल करना फिर उसका इस्तेमाल करते हुए काम को एक सही ढंग से दाएरे में रखते हुए पूरा करना है

जैसे कानून की पढाई में उच्च अदालतों द्वारा दिए गए फैसलों को आधार मानके चला जाता है वैसे ही विश्व राजनीती में ताकतवर देशो द्वारा उठाए गए कुछ कदमो को उधारण के तौर पे लिया जाता है

शक्ति का बहुपक्षीय होना- साल 1970 आते आते शक्ति दो पक्षीय न रहके बहुपक्षीय हो गए थी इसके तहत ही अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति निक्सन ने साल 1972 में चीन का दौरा किया और कुछ ऐसे एग्रीमेंट्स पे दस्तखत किए जिससे अमेरिका और चीन दोनों को आने वाले समय में फ़ायदा मिल सके, इस कदम  के बाद ही अमेरिका ने चीन के लिए संयुक्त राष्ट्र में स्थाई सदस्य्ता का रास्ता साफ़ कर दिया, याद रहे चीन तब भी साम्यवादी देश था और अमेरिका एक लोकतांत्रिक देश दोनों की विचार धारा एक दुसरे के खिलाफ थी तब भी अमेरिका ने चीन के लिए संयुक्त राष्ट्र में स्थाई सदस्य्ता का रास्ता साफ़ किया और ताइवान को नजर अंदाज करते हुए चीन को पहल और मान्यता दोनों दी, जबकि ताइवान ही वो देश था जिसे असल चीन माना जाता था और सबको लगता था की संयुक्त राष्ट्र में स्थाई सदस्य्ता भी ताइवान को मिलनी चाहिए न की कम्युनिस्ट चीन को

जिस देश के पास जितनी बड़ी जनसँख्या होगी और साथ ही जितना बड़ा उद्योग नेटवर्क होगा इन्ही दो चीज़ों के आधार पे एक शक्तिशाली सेना खड़ी की जाती है जो ये तै करती है की कौनसा देश सुपर पावर है और कौनसा देश कमतर ताकतवर है, जिस देश की आर्थिक स्थिति और सैनिक शक्ति जितनी मजबूत होगी वही देश ज्यादा ताकतवर माना जाएगा, वैसे जिस देश की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी आम तौर पे उस देश की सेना भी मजबूत ही होगी और दूसरी तरफ से देखे तो जिस देश की सेना मजबूत होगी उसकी आर्थिक स्थिति भी मजबूत ही होगी

सैनिककर्ण ही देश की अंतर्राष्ट्रीय समाज में असली स्थिति को दिखाता है रहीनलैण्ड से सेना रखने का अधिकार वर्सेल्स की संधि में छीन लिया गया था ऐसा इस लिए किया गया था ताकि जर्मनी को दुबारा ताकतवर सैनिक शक्ति बनने से रोका जा सके जिससे यूरोप में ब्रिटेन और फ्रांस को मिलने वाली चुनौती से बचा जा सकेगा, आगे चलके साल 1934 में जब रहीनलैण्ड को सेना रखने का अधिकार मिला तो जर्मनी दुबारा एक बड़ी सैनिक शक्ति बन गया और उसने यूरोप में शक्ति का संतुलन बिगाड़ दिया,

इसी तरह जापान ने साल 1922 में हुए वाशिंगटन समझौते का उलंघन करके साल 1930 में शक्तिशाली सेना का निर्माण किया जिसकी वजह से पूर्व में शक्ति का संतुलन बिगड़ गया, एक बात बताते चले की वर्तमान समय में सैनिक उपकरण और सेना की गुडवत्ता देश की ताकत की स्थिति को तै करती है

जब तक कोई देश बड़ा युद्ध नहीं जीत लेता तब तक उस की  शक्ति को मिलता सम्मान नहीं मिल पाता है, यूनान को शक्तिशाली तभी माना गया जब उसकी सेना ने पर्शियन सेना को हराया, जर्मनी को महान शक्ति तभी माना गया जब उसने साल 1870 में फ्रांस को एक युद्ध में हराया, इटली को तब तक एक कमजोर और छोटी सैनिक शक्ति वाला देश ही माना जाता रहा जब तक साल 1936 में इटली ने इथोपिया को युद्ध में हरा नहीं दिया, सोवियत संघ को महा शक्ति का खिताब उसके द्वारा जर्मनी को साल 1944 में हराने के बाद ही मिला, इसी तरह भारतीय सेना को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पे पहचान तभी मिली जब उसने साल 1965 और 1971 में पाकिस्तान को धुल चटाई, इजराइल की सेना ने साल 1967 में अरब देशो की गठबंधन सेना को अकेले ही हरा के दुनिया के सामने अपनी सेना का लोहा मनवाया, जापान ने अकेले ही अपने दम पे  साल 1905 में रूस को हरा के अपनी सैनिक शक्ति का असली चेहरा दुनिया को दिखाया था तभी पूरी दुनिया ने जापान को एक बड़ी शक्ति माना था,  इसी तरह जब अमेरिका की सेना वियतनाम से निकली तब ही चीन की सैनिक शक्ति को पहचान मिली

 


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