कैसे बन सकते हैं एक सफल राजनेता??, कैसे सीखी जा सकती है अच्छी राजनीती??, वो कौनसी बातें है जो दिला सकती है चुनाव लड़ने के लिए एक अच्छी पार्टी की टिकट??, जानिए सब कुछ इस आर्टिकल में, लिंक को क्लिक कर पढ़िए....

25, दिसंबर, 2021: कौन है चुना हुआ नेता: अगर बात की जाए पश्चिमी देशो की तो वहाँ, सदन में चुना हुआ नेता पालिसी बनाने के समय सदन को इस बात के बारे औगत करवाता है की लोग कैसी पालिसी चाहते है, पर भारत की बात की जाए तो यहाँ चुना हुआ नेता कई सारी समस्याओं का सामना करता है उसे नाराज मीडिया आउटलेट्स का ध्यान रखना होता है, उसे इस बात का भी पूरा ध्यान रखना है की पार्टी से जुड़े छोटे बड़े वर्कर क्या चाहते है, चुने हुआ नेता को उसकी पार्टी से बाहर के ग्रुप्स का भी ध्यान रखना होता है जो अपने वेस्टेड इंटरेस्ट के लिए पार्टी से जुड़े है, उसे पार्टी के बड़े नेतावों की मांगों को भी पूरा करना होता है, सीधे शब्दों में बात करें तो भारत में चुने हुए नेता को अपनी पार्टी के अंदर बाहर दोनों तरफ से जुड़े हिस्सेदारों और अपने छेत्र की जनता की समस्या को समझना, जुड़े रहना और समाधान करना सबसे जरूरी काम रहता है, सफल नेता बनने के लिए सुनने की कला होना और समस्या का हल निकालने की क़ाबलियत होना बहुत जरूरी है

नेतावों की रिड की हड्डी उनकी पार्टी होती है पार्टी नेतावों को एक आइडियोलॉजी देती है उन्हें चुनाव में जीतने के लिए लोग टीम के रूप में देती है, पार्टी नेता को एक आधार वोटर देती है जो नेता को बेसिक आत्मविश्वास देता है, सही पार्टी टिकट मिलना ही नेता के राजनीतिक भविष्य को तय करता है, छेत्र की जनता के इलावा नेता अपने पार्टी के लिए और नेता के लिए पार्टी बेहद जरुरी होते हैं

साल  2016 में मुंबई में निगम चुनाव थे उस समय भी मोदी लहर जोरो पर  थी महाराष्ट्र की एक छेत्री पार्टी के एक नेता ने अपनी पार्टी के टॉप लीडर्स को भरोसा दिलाया की वो पार्टी को जीत दिला के रहेगा बदले में पार्टी उसको जीत के बाद बनता सम्मान दे जिस पर पार्टी के टॉप लीडर्स ने उक्त नेता को भरोसा दिया की जीत के बाद उसे उचित इनाम जरूर मिलेगा, चुनाव उक्त छेत्री पार्टी ने बहुमत से जीत लिए जिसके बाद पार्टी ने अपना वादा पूरा किया और उक्त नेता को राज्य सभा की सीट दी, इस बात से यह साफ़ होता है की पार्टी नेता का भविष्य निर्धारित करती है इस लिए हर नेता को चाहिए की अपनी पार्टी की टॉप लीडर्स के जितना संभव हो संपर्क में रहे, पार्टी भी अपने स्तर पर  अपने सभी सदस्यों की गतिविधि पर  नजर रखती है

समझदार नेता अपनी पार्टी से हटके भी कुछ लोगो जैसे की डॉक्टर्स, वकील, पत्रकार और व्यापार से जुड़े लोगो से दोस्ती करते है जिससे जरुरत पड़ने पर इन लोगो की उक्त नेता को मदद मिल सके

एक बार एक MP ने अपनी पार्टी के एक सीनियर नेता के खिलाफ कुछ ब्यान दे दिया जिसका नतीजा हुआ की उक्त MP को पार्टी की कम्युनिकेशन टीम ने टीवी चैनलों की डिबेट में भेजना बंद कर दिया, पार्टी की अहम मीटिंग्स में उक्त MP को बुलाया जान बंद कर दिया गया, पार्टी के बड़े नेताओं ने तो उक्त MP से बात तक करनी बंद कर दी जिसके बाद उक्त MP को लगने लगा की उसे पार्टी के अंदर किनारे करने की शुरुआत हो चुकी है

उन्ही दिनों आम आदमी पार्टी का जोर चरम पर पहुंच चूका था उक्त MP ने अपने मीडिया के दोस्तों के जरिए यह  बात मीडिया में फैला दी की आम आदमी पार्टी के कुछ बड़े नेता उसे आम आदमी पार्टी में शामिल होने का ऑफर दे रहे है पर वो अपने इलाके की जनता की राय जानने के बाद आखरी फैसला लेगा, यह बात कुछ और मीडिया चैनेलों में पहुंच गई जिसके बाद एक चैनल ने उक्त MP का पूरा इंटरव्यू चला दिया जिसके बाद बात पार्टी के टॉप लीडर्स के कानो तक पहुंच गई, अब पार्टी के टॉप लीडर्स को अपने सीनियर MP के खोने कर डर सताने लगा इसके बाद उक्त MP पार्टी में फिर से वापिस नार्मल माहौल में आ गया,

इसी तरह जब चुनाव आते है तो इन नेतावों को अपने चुनावी कैंपेन के लिए फण्ड की जब जरुरत पड़ती है तब इनके बड़े बड़े व्यापारी दोस्त इस जरुरत को पूरा करते है

सिंगापुर में प्रधान मंत्री का वेतन कुछ 30 लाख डॉलर से भी ज्यादा रहता है, वहीं अगर बात अमेरिका की जाए तो वहाँ के राष्ट्रपति जी का वेतन 4 लाख डॉलर रहता है, इतने वेतन में राष्ट्रपति एक अच्छा जीवन बिता सकते है, वही अगर बात भारत की जाए तो यहाँ रोज़ 16 घंटे काम करने वाले नेतावों का वेतन बहुत ही कम है जो अपने आप में चिंता का विषय है, फिर भी देश अपने नेतावों की जरूरतों को पूरा कर रहा है

अब बात की जाए वोटर ग्रुप्स की तो इन्द्रा गाँधी के समय में कांग्रेस का वोटर देश का गरीब वर्ग हुआ करता था पर सोनिया गाँधी का समय आते आते यह स्थान देश की कम गिनती और पिछड़ी जातियों ने ले लिया, मतलब साफ़ है कांग्रेस का वोटर समय के साथ बदलता रहा है

देश की लगभग हर राष्ट्रीय पार्टी की कम्युनिकेशन टीम का प्रमुख कार्य होता है की रोज़ रात 9 बजे की खबरों में पार्टी के स्पोकसपर्सन को उचित स्थान मिल जाए ताकि पार्टी का ताजा मैसेज पूरे देश की जनता तक पहुंच जाए

बिहार के मुख्य मंत्री रह चुके लालू यादव के बारे कई सारे पत्रकार और लालू यादव के भाई बताते है की जवानी के दिनों से ही लोगो को अपना भाषण सुनने के लिए मजबूर करने की एक गजब की कला रही है लालू यादव में, लालू जब पढ़ते थे तब दूर दूर से युवा उनके भाषण सुनने आया करते थे, इन्ही वजहों से लालू ने पूरे बिहार भर में घूम घूम के अपनी फैन लिस्ट लम्बी की, सीधा कहा जाए तो बोलने की कला ने ही लालू को बड़ा नेता बनाया, कहने का मतलब है की एक अच्छा नेता बनने के लिए भाषण देने की कला होनी बेहद जरुरी है

बाल गंगाधर तिलक की बात की जाए तो उन्होंने अपनी जन सेवा के जरिए एक बड़े जन सैलाब को अपने साथ जोड़ लिया था, हर राजनीति पार्टी को हमेशा ऐसे लोगो की तलाश रहती है जिनके पास आकर्षक व्यक्तित्व, संसाधन, ज्यादा से ज्यादा लोगो को पार्टी की विचारधारा से जोड़ने का हुनर हो

पर्सनालिटी: साल 2014 के चुनाव में ममता बनर्जी ने एक बंगाली फिल्म स्टार को अपनी पार्टी से टिकट दिया जिसका पार्टी में खूब विरोध हुआ क्योकि पार्टी के अन्य नेतावों को लगता था की उक्त व्यक्ति अनुभव हीन और राजनीति से बाहर का है पर ममता अपने फैसले पर अड़ी रही नतीजा हुआ की उक्त फिल्म स्टार ने चुनाव में बड़े अंतर् से जीत हासिल की और एहि नहीं उक्त फिल्म स्टार ने अपनी हर रैली के जरिए लाखों नए वोटर्स भी पार्टी से जोड़े, मतलब साफ़ है की मशहूर पर्सनल्टी का चुनाव में फ़ायदा मिलता है, फिल्म स्टार, खेल से जुड़े स्टार्स और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान रखने वाले चेहरों की पर्सनालिटी का चुनाव पर जबरदस्त असर पड़ता है

रिसोर्स: कांग्रेस नेता मधु गौड़ की राजनीती में आने से पहले एक कामयाब लॉ फर्म थी पर मधु गौड़ अपने काम से संतुष्ट नहीं थे जिस वजह से उन्होंने भारत वापिस आके राजनीती में कदम रखने का मन बनाया तो लोक सभा के चुनाव लड़ने के लिए कांग्रेस से सीट चाही इसी सीट के लिए एक अन्य बेहद सीनियर और यूनियन मिनिस्टर रह चुके नेता भी टिकट चाहते थे, पर मधु गौड़ ने पार्टी को ऑफर दी की वो अपना चुनावी कैंपेन खुद ही मैनेज कर लेंगे जिससे पार्टी को कोई रिसोर्स लगाने की जरुरत नहीं पड़ेगी जिससे खुश होकर पार्टी ने अपने पुराने नेता को नजर अंदाज़ करते हुए मधु गौड़ को टिकट दे दी थी, इसके बाद मधु गौड़ ने अपने रिसोर्सेस के दम पर चुनाव भारी बहुमत से जीत लिया, कॉग्रेस एक राष्ट्रीय पार्टी है चाहती तो खुद भी पूरा रिसोर्स लगा सकती थी पर लगभग हर पार्टी को अपने बूते खड़े होने वाले नेता सबसे ज्यादा पसंद होते हैं इससे साफ़ है की रिसोर्सेस का राजनीती में एहम स्थान है,

इंटेल्लेक्ट: बात करते हैं कांग्रेस नेता जय राम रमेश की तो उन्होंने राजनीती की शुरुआत में कांग्रेस के लिए कई सालों तक पालिसी बनाने और इलेक्टोरल रिसर्च का काम किया और फाइनली पार्लियामेंट में अपने लिए जगह बना ली, इंटेल्लेक्ट की सही परिभाषा है पोलिटिकल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल करके पार्टी को फ़ायदा पहुँचाना, इंटेल्लेक्ट पेशेवर और पढ़े लिखे नए लोगो के लिए राजनीती में अपना स्थान बनाने का सबसे अच्छा विकल्प है, बस ध्यान यह रखना होगा की आप पार्टी को जो भी ऑफर कर रहे है वो पोलिटिकली रेलेवेंट हो बस

हमारे देश के पहले और उन्नीसवे लोक सभा में आधे से ज्यादा चुने हुए लोग लॉ फील्ड से आते है, व्यापार जगत के दिगजो, पत्रकारों और लेखकों का भी पार्लियमेंट में एहम स्थान है, व्यापार जगत से जुड़े हुए दिग्गजों को राजनीती के लिए फिट इस लिए माना जाता है क्यों की उन्हें इवेंट और लोगो को मैनेज करने का अच्छा अनुभव होता है जो राजनीती के लिए भी बेहद जरुरी है

ओडिसा में साल 2017 में हुए पंचायत के चुनाव में भी बीजेपी के नए चेहरों ने सालों से सत्ता का सुख भोग रही BJD के अनुभव प्राप्त कद्दावर चेहरों को हरा दिया था जनता को लगता था की बीजेपी केंदर की कुर्सी पर काबिज है जिस वजह से बीजेपी ज्यादा अच्छे से अपने वादों को निभा सकती है

CAG टीम ने साल 2014 के चुनाव से पहले नरेंदर मोदी के होलोग्राम बेस्ड भाषण देश के छोटे से छोटे इलाके में चलाया जिससे देश की जनता के मन में मोदी की विचार धारा बैठ गई, रही सही कसर चाय पे चर्चा जैसे प्रोग्रामों ने पूरा कर दिया एहि बातें आगे चलकर वोटर को मोदी के पक्ष में वोट देने के लिए मजबूर कर गई

आइए अब थोड़ा बात कर लेते हैं युवा राजनीति की, हमसबको पता ही है की बीजेपी के युवा विंग का नाम ABVP है और कांग्रेस के युवा विंग का नाम NSUI है, सरल तौर पर देखा जाए तो युवा राजनीती बहुत से बड़े नेतावों के लिए ट्रेनिंग ग्राउंड साबित हुई है, युवा राजनीती में उतरने वाले युवा नेता को कुछ ख़ास फायदे होते है जैसे की: 1. युवा राजनीती से शुरुआत करने वालों को राजनीतिक प्रक्रिया का ज्ञान बहुत जल्दी हो जाता है साथ ही इस बात की भी जानकारी बहुत जल्दी हो जाती है की जमीनी स्तर की सचाई क्या है, 2. चुनावी प्रक्रिया की जानकारी जल्दी मिल जाती है, 3. दूर दराज के इलाकों में रहने वाली जनता से जुड़ने का काफी समय मिलता है और लोगो से कैसे जुड़ना है इस बात की ट्रेनिंग मिलती रहती है, 4. बड़े नेतावों से दोस्ती करने और उनका भरोसा जीतने का काफी समय मिल जाता है जिससे विश्वास मजबूत बना रहता है अगर आप भी युवा राजनीती से शुरुआत करने की सोच रहे है तो इस बात का ध्यान रहे की युवा राजनीती में जाने से आपकी पढ़ाई लिखाई पर बुरा असर जरूर पड़ेगा

आइए अब बात कर लेते है की कुछ ख़ास पेशे से जुड़े लोगो को राजनीतिक पार्टिया अपने साथ लाने के लिए इच्छुक क्यों रहती है

  1. वकील- मामले जैसे की कन्हैया कुमार के खिलाफ चलाया गया देश द्रोह का मामला, अस्सोसिएशन ऑफ़ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया, नेशनल हेराल्ड स्कैम केस, अगस्ता वेस्टलैंड केस इन सभी मामलों में राजनीतिक पार्टियों की तरफ से जो वकील अदालत में पेश हुए सब अपनी अपनी पार्टी से या तो MP थे या फिर किसी अन्य पद पर, वकीलों को राजनीतिक पार्टिया अपने साथ इसी लिए लाती है ताकि वो अदालत में पार्टी का पक्ष मजबूती से रखे और पार्टी को केसों में जीत दिलवाए
  2. समाजिक कार्यकर्त्ता- आपने देखा होगा की बहुत सारे लोगो ने राजनीति में आने से पहले समाज सेवा का काम करना सही समझा ऐसा इस लिए किया जाता है ताकि जनता की असली चाहत क्या है इस बात का पता चल सके और ज्यादा से ज्यादा लोगो से जुड़ा जा सके, राजनीतिक पार्टिया उन्ही लोगो को टिकट देना पसंद करती है जिनके साथ ज्यादा से ज्यादा लोगों का विश्वास जुड़ा हो, इस लिए राजनीती में सामाजिक कार्यकर्ताओं का भविष्य उज्वल रहता है
  3. बेउरोक्रैट्स: उच्च सरकारी पदों से रिटायर हुए अफसरों को भी राजनीती में आसान एंट्री मिलती है ऐसा इस लिए क्यों की अपनी सरकारी नौकरी के दौरान इन अफसरों को सरकारी काम काज और सरकारी कल्चर की जानकारी अच्छे से होती है, दूसरी बात इन अफसरों का अलग अलग राजनीतिक पार्टियों के बड़े छोटे सभी नेतावों से नौकरी के दौरान अच्छा रिश्ता बना होता है, तीसरी बात इन अफसरों को अपनी नौकरी के दौरान ही समाज के एक बड़े हिस्से के संपर्क में आने का मौका मिल चूका होता है

शत्रुघन सिन्हा को पार्टी ने इसी वजह से अपने साथ लिया क्योकि पार्टी जानती थी की वो अपने चुनावी छेत्र के इलावा जहाँ जहाँ रैली करने जाएंगे नए वोटर्स को पार्टी के साथ जोड़ते जाएंगे असल में ऐसा पार्टी सेलिब्रिटी के फैंस को अपने वोटर्स में तब्दील करने के लिए करती है, बिज़नेस से जुड़े दिग्गजों को पार्टी में टिकट इस वजह से दी जाती है क्यों की पार्टी चाहती है की बिज़नेस मैन पार्टी के चुनावों के लिए खुद भी और अपने अन्य सोर्सेस से भी फण्ड जुटाएं

शशि थरूर को जब सेक्रेटरी जनरल का पद मिला तब तक वो अंतर्राष्ट्रीय पटल पर अपनी पहचान बना चुके थे उनके इसी स्टेटस की वजह से उनको राजनीती में ऊँचा स्थान मिला

कई बार नेता पार्टी मशीनरी को इस्तेमाल कर अपने निर्धारित कार्य को पूरा करते है, रामास्वामी एक बड़े कांग्रेसी नेता थे उन्हें जब पता चला की इंडियन नेशनल कांग्रेस में काफी भेद भाव है और कांग्रेस के ज्यादा तर उच्च पदों पर ब्राह्मण लोगों का कब्ज़ा है तो उन्हें यह बात अच्छी नहीं लगी और उन्होंने इस न इंसाफ़ी के खिलाफ आवाज़ उठाने की सोची तभी उन्हें पता चला की एक अन्य कांग्रेसी नेता जिनका नाम V.V.S अय्यर है तमिलनाडु के चेरांमदेवी में एक गुरुकुलम चलाते है जिसमे गैर ब्राह्मण विद्यार्थियों को अलग बैठाया जाता है तो रामास्वामी ने इस गुरुकुलम को जो इंडियन नेशनल कांग्रेस से जुड़े लोगो द्वारा दी जाने वाली डोनेशन से चलता था का चंदा बंद करवाने के लिए लोब्बिंग शुरू कर दी, वो बात अलग है की कांग्रेस के टॉप लीडर्स ने उनका न तो साथ दिया और न ही इस बात को गंभीरता से लिया

जहाँ एक तरफ बीजेपी ने अपने सभी मंत्रियों के लिए ट्विटर हैंडल चलाना अनिवार्य कर दिया है जिससे आम जनता से सीधा संपर्क रखा जा सके तो वहीँ कांग्रेस जनता को अपने विचार बताने के लिए कांग्रेस सन्देश और बीजेपी कमल सन्देश का प्रकाशन करते हैं, मीनाक्षी लेखी और जयंत सिन्हा ने तो अपने छेत्र में मोबाइल एप्लीकेशन तक लांच कर दिया है ताकि प्रगति कार्य को और अच्छे ढंग से अंजाम दिया जाए और जनता का फीडबैक मिलता रहे

वाल स्ट्रीट जर्नल की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ साल 2014 के चुनाव में कुल 30 हजार करोड़ से भी ज्यादा का खर्च किया गया था

साल 2014 के चुनाव के दौरान नरेंदर मोदी ने देश के वोटर्स को यह बात समझा दी की वो एक ऐसे परिवार से आते है जो आम जनता के बीच का ही है और आम जनता का आदमी होने की वजह से नरेंदर मोदी से ज्यादा अच्छे से जनता का दर्द कोई दूसरा नहीं समझ सकता, लगातार तीन बार गुजरात का मुख्य मंत्री होने का भी नरेंदर मोदी को खूब फ़ायदा मिला

वही राहुल गाँधी ने जो खोया उसे जनता के सामने अच्छे से नहीं रख सके, उन्हें इस बात का फ़ायदा भी नहीं मिला की उनके पिता, पिता के बड़े भाई और राहुल गाँधी की दादी ने देश की अखंडता के लिए अपनी जान दी, कमजोर कम्युनिकेशन की वजह से ही जनता राहुल गाँधी के मैसेज के साथ नहीं जुड़ सकी और साल 2014 के चुनाव में कांग्रेस की हार हुई

पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी यह बात अच्छे से जानती थी की भारत में चुनाव सिर्फ गरीब जनता के मतदान के दम पर ही जीता जा सकता है इस लिए वो कभी भी आम लोगो के बीच चली जाया करती थी, आम लोगो से घुल मिल जाती, आम जनता को छूती और जनता को यह एहसास दिलाती की वो उन्ही मेसे एक है

साल 2015 के बिहार चुनाव में नितीश कुमार ने इस बात को अच्छे से पहचान लिया था की शराब राज्य की महिलावों की आँखों में सबसे ज्यादा खटक रही है जिस वजह से चुनाव से पहले नितीश कुमार ने शराब मुक्त बिहार की बात कही जिस वजह से उन्हें महिलावों का एक बड़ा वोट बैंक मिला और नितीश कुमार जीत गए, इस लिए जीत में कम्युनिकेशन का एहम स्थान रहता है

पर्सनल नैरेटिव: बराक ओबामा ने अपने कई भाषण की शुरुआत अपने नैरेटिव से जोड़ी उन्होंने कहा की वो एक मिडिल क्लास परिवार से आते है, उनके पिता केन्या से अमेरिका आए थे उनकी माता एक मिडिल क्लास अमेरिकन परिवार से थी ओबामा का कहना था की वो खुद भी एक मिडिल क्लास परिवार का जीवन जीते आए है और एक काले है पर फिर भी वो अमेरिका के राष्ट्रपति बनने की दौड़ में हैं यह इसी लिए संभव है क्यों की अमेरिका दुनिया का सबसे सुन्दर लोकतंत्र है, वो ही आम जनता की परेशानियों और जरूरतों को समझ सकते है और पूरा कर सकते है, उनके इस ख़ास भाषण ने अमेरिका की जनता को हिला के रख दिया था और इसके बाद ओबामा को मजबूत जन समर्थन मिलना शुरू हो गया था

ओबामा अपने भाषणों में बताते की वो फैक्ट्री में काम करने वाले सबसे कम तनख्वा लेने वाले मजदूरों से मिले ओबामा मजदूरों के सुख दुःख की बात सुनाते, ओबामा एवरेज अमेरिकन्स की जरूरतों और समस्याओं की बात करते यह बातें उनको अमेरिका की जनता के दिलों में जगह देती गई

तर्रक्की की बातें: ओबामा अपने भाषण में लोगो से एक अच्छे आने वाले कल का सपना दिखाते हुए वादे करते, लोगो को भरोसा दिलाते की कैसे अमेरिका पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा क़ाबलियत वाला देश बनके सबसे आगे चलेगा, ऐसी बातों से जब वो अपना भाषण खत्म करते तो उनका भाषण सुनके जाने वाले लोग एक अच्छी सोच के साथ लौटते इन्ही बातों ने ओबामा को आगे चलकर जीत दिलाई

एक बार फिर भारत की तरफ लौटते हैं, हमारे देश में ऐसा कोई सिस्टम ही नहीं है जिसके तहत राजनीती को एक वर्कर के तौर पर अपना समय देने वाले को एक अच्छा मेहनताना दिया जाए, यहाँ तक की चुने हुए नेतावों को भी बहुत कम सैलरी मिलती है बस इसी वजह से राजनीती में भ्रस्टाचार बहुत ज्यादा है

भ्रस्टाचार को ध्यान में रखते हुए भारत की प्रमुख राजनीतिक पार्टियों ने पेशेवर वर्ग से लोगो को पार्टी से जोड़ना शुरू किया जैसे की वकील और डॉक्टर्स, पार्टियां सोचती है की जिसके पास कमाई का एक अलग सोर्स होगा वो राजनीती से कमाने की नहीं सोचेगा और राजनीती में भ्रस्टाचार से बचा जा सकेगा

ज्यादा तर MP यह सोचते है की अगर वो खुदकी सम्पति कम दिखाएंगे तो जनता उन्हें गरीब समझेगी और अपने बीच का समझेगी और इस वजह से उनके चुनाव जीतने की संभावना ज्यादा होगी,

साल 2014 के चुनाव से जुडी एक अंतर्राष्ट्रीय स्टडी के मुताबिक़ साल 2014 के भारत में हुए इलेक्शन पर कुल 1400 करोड़ रुपए का खर्च हुआ था जो अबतक दूसरे नंबर का चुनावी खर्च है इससे पहले अमेरिका के राष्ट्रपति पद के लिए हुए 2012 के चुनाव को सबसे खर्चीला चुनाव माना जाता है

एक अनुमान के मुताबिक़ एक पार्लीमेंटरियन को चुनाव जीतने के लिए कुल 1 करोड़ रुपए के आस पास का खर्च करना पड़ता है, अगर एक पार्लीमेंटरियन अपनी पूरी तनख्वा अगले 5 साल तक भी जमा करे तो उसे एक चुनाव जीतने के लिए अपनी जरुरत के सिर्फ 30% का पैसा इकठा होगा जो एक चुनाव जीतने के लिए न काफी है

अगर बीजेपी और सीपीआई(एम्) को छोड़ दिया जाए तो भारत में लगभग कोई राजनीतिक पार्टी अपने कार्यकर्ताओं को कोई अच्छी तन्ख्वा नहीं देती मतलब साफ़ है अगर आपको किसी राजनीतिक पार्टी से चुनाव लड़ने के लिए टिकट मिल भी जाए तो चुनाव लड़ने और जीतने के लिए जरूरी फण्ड आपको ही ढूंढने होंगे और जब आप चुनाव जीत जाएंगे तो आपको अपना ज्यादा तर समय राजनीतिक कार्यो के लिए ही देना होगा, मतलब अपने जीविका कमाने का अलग रास्ता निकालना भी आपकी ही जिमेवारी होगी, इस लिए यह मान कर चलिए की राजनीती का रास्ता आसान नहीं है

एक इंटरव्यू के दौरान सीपीआई(एम्) के नेता ऋतब्रता बनर्जी से पुछा गया की अगर आप अपनी तनख्वा मेसे एक लाख रूपए माह अपनी पार्टी को दे देते है और बचे हुए 25,000 रुपए में अपना घर कैसे चलाते है तो जवाब में उन्होंने कहा की घर चलाने के लिए जरुरी रकम से ज्यादा पैसों की क्या जरूरत है, सीपीआई(एम्) ने अपने सभी सदस्यों को एक बहुत साधारण जीवन यापन करने के लिए हमेशा जोर दिया है

अगर आप अमेरिकी राजनीति की बात करे तो वहाँ दोनों मुख्य पार्टियों डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन के पास मजबूत फण्ड डोनर और फण्ड रेसर दोनों मौजूद हैं इस लिए वहाँ किसी भी नेता के लिए राजनीतिक के लिए अपनी जीविका के लिए जुड़े पैसे खर्च करने की कभी जरुरत नहीं पड़ती और न ही इस बात की चिंता रहती है की राजनीतिक कार्यो की वजह से अपने व्यक्तिगत कार्यो से कोई समझौता करना पड़ेगा

बराक ओबामा में एक गजब की कला है की वो फण्ड डोनर को अपने कैंपेन के लिए बड़ी आसानी से मना लिया करते थे उनका बहुत से राजनीतिक फण्ड डोनर्स के साथ बहुत अच्छे रिश्ते हुआ करते थे, इसी तरह क्लिंटन परिवार के भी बहुत सारे कॉर्पोरेट डोनर्स के साथ अच्छे रिश्ते आज भी मौजूद है जिस वजह से क्लिंटन परिवार फण्ड डोनर्स को लंच पर मिलके, आमने सामने बैठ के मीटिंग करके इस बात के लिए मना लिया करता था की वो क्लिंटन परिवार के लिए फण्ड क्यों दें, क्लिंटन परिवार का कॉर्पोरेट फण्ड डोनर्स के साथ बड़ा अच्छा रिश्ता है जिसकी वजह से इस परिवार को कभी भी किसी भी चुनावी कैंपेन के लिए फण्ड की कमी नहीं हुई, इसके पूरी तरह उलट भारत में चुनावी कैंपेन के लिए कॉर्पोरेट फंडिंग पर बैन लगा हुआ है

भारत में प्रोफेशनल जैसे की वकील और डॉक्टर्स को अपनी प्रैक्टिस करने का अच्छा मौका राजनीतिक कार्यो के साथ साथ मिल जाता है, काकोली घोष दस्तीदार एक ट्रैन्ड डॉक्टर है और वो वेस्ट बंगाल से लोक सभा MP भी हैं वो लम्बे समय से अपना क्लिनिक और राजनीतिक गतिविधियों में संतुलन बनाए हुए हैं, पर यह सब सैलरी लेने वाले प्रोफेशनल्स के लिए आसान नहीं है

अगर आपका बिज़नेस है तो कुछ ऐसा सिस्टम बनाइए की आपकी अनुपस्थिति में भी आपका बिज़नेस चलता रहे, अगर आप सैलरी लेने वाले प्रोफेशनल है तो राजनीती में सलाहकार की भूमिका को ही चुने,

अटल जी कहा करते थे की ज्यादातर राजनीतिक करियर झूठ से शुरू होता है, ज्यादा तर नेता इलेक्शन कमीशन को उनके चुनावी कैंपेन पर खर्च होने वाले फण्ड की बहुत कम संख्या बताते है

ज्यादातर नेतावों को चुनाव के लिए पार्टी से जो फण्ड मिलता है वो नेता के कैंपेन पर खर्च होने वाले कुल फण्ड का 10% से भी कम होता है

कई सारे जाने माने नेता जैसे की जयराम रमेश और मणि शंकर अय्यर पहले कुछ साप्ताहिक अख़बारों के लिए लेख लिखा करते थे, कई सारे पार्लिमेंटेरियंस अब भी बड़े अख़बारों के लिए कॉलम लिखते है जिसके बदले उन्हें अच्छे पैसे इन अख़बारों से मिलते है जिससे उनके सब खर्च चल जाते है

कई सारे बड़े नेता वर्ल्ड बैंक और यूनाइटेड नेशंस के लिए रिसर्च जैसे काम में भाग लेते है इन कामों के लिए इन नेताओं को अच्छे पैसे तो मिलते है साथ ही दफ्तर नियमों से बंधे रहने से छूट भी मिलती है, ऐसे कई भारतीय नेता है जो वर्ल्ड बैंक के लिए सलाहकार की भूमिका में हैं जो इन नेताओं की आर्थिक रिड की हड्डी साबित हो रही है, ऐसे नेता अपने खर्च को आसानी से उठाने के साथ साथ अपने राजनीतिक कार्यो को भी पूरा समय दे पाते है

भारत देश की राजनीति में कुछ ऐसे लोगो को भी स्थान दिया जाता है जो सीधा अमेरिका जैसे देशों की टॉप यूनिवर्सिटी से पढ़कर आए होते है ऐसे टैलेंटेड लोगो को सीधा मिनिस्टर्स के सलाहकार के पद पर नियुक्त किया जाता है ऐसे में इन लोगो को एक सही डेसिग्नेशन मिल जाती है और इन पदों पर रहने की वजह से इन् लोगो को अच्छा वेतन भी मिल जाता है जिससे इनकी आर्थिक चिंताएं दूर हो जाती है

अमेरिका जैसे विकसित देशों में कुछ ऐसी इलेक्टोरल मैनेजमेंट एजेंसीज है जो युवा टैलेंटेड लोगो को एक अच्छे वेतन पर इलेक्शन कैंपेन जैसे काम पर लगाती है ऐसे हालात में इन युवा लोगो को एलक्शन और राजनीति के अंदर की बारीकियों का पता सही समय पर चलता है ऐसे युवा लोग आगे चलकर राजनीतिक पार्टियों के लिए सही कैंडिडेट बन जाते है मतलब इस रस्ते भी राजनीती में जाया जा सकता है

चुनाव जीतने के बाद भी राह आसान नहीं होती इसका एक उधारण है एक नेता ने एक इंटरव्यू में बताया की चुनाव जीतने के बाद दिल्ली आने पर उन्हें एक सरकारी मकान दिल्ली में दिया गया, कुछ दिन बाद नेता जी को पता लगा की उनके छेत्र से कुछ लोग दिल्ली इलाज के लिए विभिन हस्पतालों में आते रहते है पर इन मेसे ज्यादा तर को सड़क पर सोना पड़ता है तो नेता जी ने ऐसे कुछ लोगो को अपने घर पर रहने का निमंत्रण दे दिया जो नेता जी के लिए सर दर्द बन गया अब एक के बाद एक काफी लोग नेता जी के घर पर रुकने आने लगे, अब कोई सोफे पर सोता, कोई टेबल पर तो कोई जमीन पर ऐसे में नेता जी और उनकी पत्नी के लिए रहना मुश्किल हो गया हुआ यु की अब नेता जी को ही एक अलग घर दिल्ली के एक अलग छेत्र में किराए पर लेना पड़ गया

कहानी के अंत में एक बात और बताते चले की राजनीती में लम्बे समय तक झूठे वादे भी झेलने पड़ते है पर लम्बे समय तक हाथ कुछ नहीं लगता, एक युवा नेता ने एक इंटरव्यू के दौरान बताया की उन्होंने जब पार्टी को ज्वाइन किया तो उन्हें कहा गया की, जमीनी स्तर से शुरुआत करो, आधार मजबूत करो खूब तर्रकी करोगे, नेता ने बताया की सालों तक उन्होंने जी तोड़ मेहनत की, रात रात भर जाग कर रैलियों के लिए तैयारियां की, पर जब चुनाव आते तो उन्हें कोई न कोई बहाना कर अगली बार टिकट देने का वादा कर टाल दिया जाता, यह सिलसिला सालों तक चलता रहा

मतलब राजनीती में अगर आगे बढ़ना है तो सब्र का होना बहुत जरुरी है तभी लम्बे समय बाद ही सही पर सही पोजीशन के लिए टिकट मिल ही जाती है

sources Book: What Makes A Politician By Rwitwika Bhattacharya- Agarwal

Picture- taken from internet not for commercial purposes


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