किन कारणों से कमजोर होती है Democracy?, कैसे इसे बचाया जा सकता है?, कैसे पहचान की जा सकती है लोकतान्त्रिक नेता की, कैसे चुनें अपना सही नेता, पढ़िए ऑंखें खोल देने वाला यह पूरा आर्टिकल.....

21,दिसंबर,2021: उसके साथ थे 30,000 काली कमीज पहने उसके भरोसेमंद लोग जो उसके लिए कुछ भी कर गुजरने के लिए तैयार थे, ये 30,000 लोग काफी थे उस समय के राजा विक्टर एम्मानुएल-3 का ध्यान खींचने के लिए, राजा को लगता था की वो आने वाला राजनीतिक सितारा है यहाँ बात मुसोलिनी की हो रही है, राजा को लगता था की मुसोलिनी ही वो आदमी है जो देश में फैली हर तरह की अशांति को काबू कर सकता है

 

जर्मनी का हिटलर, इटली का मुसोलिनी, ब्राज़ील में गटूलिओ वर्गास, पेरू में अल्बर्टो फूजीमोरी, वेनेज़ुएला में हूगो छावेज़, सभी एक जैसे रास्ते से सत्ता में आए थे, इन सभी के मामले में मेनस्ट्रीम पोलटिक्स में बैठे लोगो को लगा था की सत्ता की चाभी इन सभी राजनीतिक अनुभव के बिना वाले ऐसे लोगो को आगे करके पीछे से पुराने नेता ही सत्ता की डोर संभाले रहेंगे, पर लगभग हर बार यह  बात इन नेतावों को भारी पड़ी और सत्ता तानाशाही तले रोंदी गई,

 

साल 1923 में हिटलर  म्युनिक बियर हॉल पे अपने भरोसेमंद सहयोगियों की सहायता से कब्ज़ा कर बैठा था पर तब समय रहते प्रशाशन ने मामले को अपने हाँथ में लेते हुए बाज़ी पलट दी थी और हिटलर को 9 महीने तक जेल में बिताने पड़े थे, इसी दौरान हिटलर ने अपनी किताब मैन कम्प्फ लिखी थी, आगे चलके जब हिटलर ने चुनावों के रस्ते जीत हासिल करनी चाही तो उसे सिर्फ कुछ ही वोट मिले थे

 

30 जनवरी 1933 को एक प्लान बनाने वाले अनुभवी नेता वॉन पपेन ने कहा था की हिटलर को चांसलर बनाने के बाद मतलब निकलते ही उसे किनारे कर दिया जाएगा प्लान पूरा सही है घबराने की कोई जरुरत नहीं है हिटलर ज्यादा देर तक सत्ता पर  काबिज़ नहीं रह सकेगा, चिंता की कोई बात ही नहीं है

 

अब आते है वेनेज़ुएला पर जो साल 1958 तक दक्षिण अमेरिका का सबसे शानदार लोकतंत्र होने का दम भरता था, पर तभी तक जब तक एक जूनियर सैनिक अफसर और एक बार का फेल कूप नेता छावेज़ सत्ता में नहीं आ गया

 

फरवरी 1992 में छावेज़ ने अपने कुछ सैनिक साथियो को साथ लेके देश के राष्ट्रपति के खिलाफ विद्रोह कर दिया पर कुछ समय में विद्रोह कुचल दिया गया पर छावेज़ ने टीवी पर आके अपने समर्थकों से कहा की अभी के लिए हमारा आंदोलन दब गया है अभी के लिए हथियार डालने होंगे पर टीवी पर  उसके इस भाषण के बाद पूरे देश के लोगों की आँखों में वो हीरो बन गया, ख़ास कर देश  के गरीब लोग तो उसके दीवाने हो गए, इसी साल नवम्बर में एक बार फिर से उसका विद्रोह असफल रहा तो उसने चुनाव के रास्ते सत्ता हासिल करने की सोची, आगे चलके देश के राष्ट्रपति ने ही छावेज़ और उसके समर्थको के लिए मेनस्ट्रीम राजनीती के रास्ते खोल दिए जबकि उन्हें  यह पता था की  यह लोग लोकतंत्र को नष्ट कर देंगे फिर भी उन्होंने छावेज़ के लिए जनता में समर्थन जुटाया

 

साल 1993 में एक बार फिर छावेज़ जेल में था और अगले ही साल 1994 में देश  के राष्ट्रपति काल्डेरा ने उसके खिलाफ लगे सभी  आरोप ख़ारिज कर दिए, जब छावेज़ जेल से निकला तो एक पत्रकार ने उसको पुछा की आप कहाँ जा रहे है, उसने कहा सत्ता हासिल करने, 6 दिसम्बर 1998 को छावेज़ पहली बार राष्ट्रपति पद का चुनाव जीतने में सफल रहा इस बार उसने एक मजबूत और माझे हुए राजनेता को हराया था

 

हिटलर, मुसोलिनी और छावेज़ सभी अनुभव हीना राजनीती से बाहर के लोग थे जो सत्ता हासिल करने में सफल रहे, इन लोगो को सत्ता सौंपी(हिटलर और मुसोलिनी के मामले में) देश के लोकतान्त्रिक नेतावों ने, और सत्ता को हासिल करने का रास्ता साफ़(छावेज़ के मामले में) भी इन्ही नेतावों ने ही किया, यह  लोकतान्त्रिक नेता हिटलर, मुसोलिनी और छावेज़ के खतरनाक इरादों को समय रहते पहचान ही नहीं सके, हिटलर और मुसोलिनी के मामले में तो एक मजबूत वोट प्रतिशत इन दोनों के खिलाफ था फिर भी सत्ता में बैठे लोगो ने अपने हितों को साधते हुए उस बड़े वोट प्रतिशत को नजरअंदाज किया

 

इन तानाशाहों का एक खराब रिकॉर्ड भी सामने था, हिटलर का कई बार फेल होने का रिकॉर्ड था, मुसोलिनी के काली कमीज वाले साथी पार्लियमेंट में हिंसा करने के आरोपी थे, छावेज़ का सेना में एक ख़राब रिकॉर्ड था, अर्जेंटीना में जुआन पेरोन ने राष्ट्रपति बनने से कुछ ढाई साल पहले एक विद्रोह को लीड किया था,

 

नेता अपना असली असली चेहरा बहुत बार जल्दी नहीं दिखाते, हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओरबन ने 1998 से 2002 तक जब शासन चलाया तो लोकतंत्र के सभी नियम कानूनों का सम्मान किया पर जब वो 2010 में एक बार फिर सत्ता में आए तो उन्होंने सबको हैरान किया इस बार उनका ढंग कुछ अलग ही था

 

अपने नेता को वोट देते समय इन चार बातों का ध्यान रखें:

  1. 1. अगर आपका नेता अपने बातचीत या अपने एक्शन के द्वारा लोकतंत्र के नियमों का उलंघन करे
  2. 2. अगर आपका नेता अपने सामने वाले नेता या पार्टी की वैधता को नकारे
  3. 3. अगर आपका नेता हिंसा को बढ़ावा दे
  4. 4. अगर आपका नेता मीडिया का सम्मान न करे

 

तो सतर्क रहिए आपके नेता जी लोकतंत्र के लिए अच्छे नहीं है उन्हें अपना कीमती वोट मत दीजिएगा,अगर आपके नेता इन चरों बातों मेसे किसी एक बात को लेके भी शक के दायरे में हैं तब भी मामला संगीन ही है, ऐसे नेता अक्सर कहते मिलेंगे की देश का मौजूदा सिस्टम ठीक नहीं है, देश में करप्शन बहुत ज्यादा है, देश बड़े लोगों के हाथ में है वगैरा वगैरा.. और कहेंगे की जैसे ही उनकी सरकार आएगी, यह  सब ठीक हो जाएगा और जनता राज आजाएगा, ऐसे नेता अक्सर सत्ता हासिल करने के बाद लोकतंत्र का गाला घोटते हैं

 

लैटिन अमेरिका के बोलीविया, इक्वेडोर, पेरू और वेनेज़ुएला में 1990 से 2012 तक सभी चुने गए 15 राष्ट्रपति, जिनमेंसे 5 राजनीतिक अनुभव के मामले में बाहर के लोग थे जिनके नाम है अल्बर्टो फूजीमोरी, हूगो छावेज़, इवो मोरालेस, लुसिओ गुतिएर्रेज और राफेल कोरिया, इन सभी ने लोकतंत्र को अपने अपने देश में कमजोर ही किया

 

ऐसा माना जाता है की जब कभी कोई तानाशाही रवैया रखने वाला नेता चुनावों में एक मजबूत पक्ष दिखने लगे तो सभी ऐसे दल या नेता जो लोकतंत्र में भरोसा रखते हो और लम्बे समय से मेनस्ट्रीम राजनीती का हिस्सा रहे हो इन सभी पार्टियों और नेतावों को चाहिए की अगर इन सबमे कोई मतभेद है तो उसे भुलाके एक मंच पर इक्कठे हो जाएं ताकि लोकतंत्र को बचाया जा सके, और सब मिलके तानाशाही रवैया रखने वाले नेता के खिलाफ चुनाव लड़ें

 

इसी तरह हिटलर का सामना करने के लिए कैथोलिक पार्टी जो सबसे ज्यादा नुक्सान के हालात में थी ने अपने सबसे पुराने और कट्टर विरोधी सोशलिस्ट्स और लिबरल्स से हाथ मिलाके एक नए फ्रंट का निर्माण किया ताकि हिटलर हो हराया जा सके, इस गठजोड़ को राइट विंग अलायन्स का नाम दिया गया इस गठजोड़ में रएक्सिस्ट्स को भी शामिल किया गया, बाद में रेक्स और कैथोलिक के बीच मतभेद हो गए जिसके बाद रेक्स को किनारे कर दिया गया, बात की जाएं सोशलिस्ट की तो उन्हें कैथोलिक पार्टी के एक प्रमुख नेता वन ज़ीलैंड पर भरोसा नहीं था, सोशलिस्ट ने तो लोकतंत्र से ज्यादा अपने निजी हितों को आगे रखा जिस वजह से गठजोड़ हिटलर के सामने कमजोर साबित हुआ

 

इसी तरह स्वीडिश पीपल पार्टी ने अपने सबसे बड़े विरोधी और प्रतिद्वंदी सोशल डेमोक्रेट्स से हाथ मिला लिया था ताकि देश में कट्टरवाद और हिंसा फ़ैलाने वाले लोगो का मुकाबला किया जा सके, अमेरिका की बात की जाए तो वहाँ दोनों मुख्य पार्टियों( रिपब्लिकन और डेमोक्रेट्स) दोनों ने दशकों तक कई सारे कट्टरवादियों के मेनस्ट्रीम राजनीती में आने से रोके रखा और देश के लोकतंत्र की रक्षा की, इन मेसे कई कट्टरवादियों को तो जनता का भी जबरदस्त समर्थन हासिल था पर दोनों पार्टियों ने इन लोगो को दूर ही रखा

 

अल्बामा के गवर्नर रहे वालेस ने एक भड़काऊ भाषण देते हुए कहा था की संविधान लोगो से बड़ा नहीं हो सकता लोग ही सबसे बड़ी ताकत है और लोगो में संबिधान बदलने की ताकत होती है, साल 1966 में थर्ड पार्टी रन में लगभग 40% अमेरिकी जनता ने वालेस को अपना नेता चुना था, इसके बाद साल 1972 में वे डेमक्रेट्स की तरफ से ताकतवर उम्मीदवार बनके उभर आए थे, पर साल 1972 में ही हुए एक कातिलाना हमले के बाद उनका प्रचार तंत्र ध्वस्त हो गया था, उस समय वो जॉर्ज मैक्गवर्न से लगभग मिलियन वोटों से आगे थे

 

उनीसवीं सदी की शुरुआत में राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार कॉंग्रेस्समेन वाशिंगटन में बैठके ही चुनते थे पर जल्द ही इस प्रक्रिया की आलोचना होने लगी क्यों की लोग चाहते थे की ज्यादा खुली प्रक्रिया का इस्तेमाल हो, इसके बाद राष्ट्रीय पार्टी में अलग अलग राज्यों से बुलाए गए डेलीगेट्स मेसे उम्मीदवार चुना जाने लगा, ऐस सिस्टम में ऐसा उम्मीदवार ही आगे आया करता था जिसे लोकल और राज्य स्तर की कमिटी भेजा करती थी, ऐसे हालात में मेनस्ट्रीम राजनीती के अंदर का उम्मीदवार आगे आया करता था, पर जिस उम्मीदवार की लोकल और रज्य स्तर पर पकड़ कमजोर होती थी वो आगे नहीं बढ़ सकता था

 

इस सिस्टम की वजह से सीनेटर, मेयर और कॉंग्रेस्समेन सभी उम्मीदवार को अच्छे से जानते थे सभी ने कभी न कभी उक्त उम्मीदवार के साथ किसी न किसी स्थान पर काम किया होता था, सभी को उम्मीदवार के गुण और अवगुण का पता होता था, ऐसे सिस्टम में किसी बाहरी के मेनस्ट्रीम राजनीती में घुसपैठ करने की संभावना बहुत कम ही होती है, इस बात की तारीफ करनी होगी की अमेरिका की राजनीती से जुडी दोनों पार्टियों के गेटकीपर्स ने कभी भी किसी भी ऐसे उम्मीदवार को अंदर ही नहीं आने दिया था जो लोकतंत्र को नुक्सान पंहुचा सके

ऐसा नहीं है की अमेरिका का राष्ट्रपति बनने का सपना किसी पोलिटिकल आउटसाइडर नहीं देखा, टीवी कमेंटेटर पेट बुचानन ने साल 1992, 1996, 2000 और फोर्बेस मैगज़ीन के स्टीव फोर्ब्स ने 1996 में रिपब्लिकन्स की तरफ से कोशिस की पर सब फेल ही हुए,

साल 1972 से 1992 के बीच 8 आउटसाइडर ने चुनाव में हिस्सा लेने का प्रयास किया जिनमेंसे 5 डेमोक्रेट्स और 3 रिपब्लिकन उम्मीदवार थे औसतन इन लोगो की संख्या 1.25 per इलेक्शन बैठती है, इसके बाद साल 1996 से 2016 तक कुल 18 आउटसाइडर ने अपना भाग्य आजमाया था जिनमे 13 सिर्फ रिपब्लिकन्स की तरफ से मैदान में थे, इन आउटसाइडर की इस बार गिनती 3 per इलेक्शन बैठी थी

 

थोड़ा पीछे देखा जाए तो फोर्बेस जो एक बहुत बड़े बिज़नेस मैन थे, रॉबर्ट्सन जिन्होंने क्रिस्चियन ब्राडकास्टिंग नेटवर्क की स्थापना की थी, बुचानन एक टेलीविज़न कमेंटेटर थे इन सभी के पास पैसा खूब था, मीडिया आकर्षित करने की कला भी खूब थी, जनता में पकड़ भी अच्छी खासी थी फिर भी इन सभी आउटसाइडर को उम्मीदवारी तक हासिल नहीं हुई थी

 

अब बात डोनाल्ड ट्रम्प की जाए तो शुरू में यह लगता था की उनके उम्मीदवारी जीतने के भी सिर्फ 20% चांस ही थे, इस बार गेटकीपर्स की ताकत और दखल के कम होने की एक वजह अल्टरनेटिव मीडिया जिसमे सोशल मीडिया, डिजिटल न्यूज़ वेब प्लेटफॉर्म और केबल न्यूज़ नेटवर्क को माना जाएगा

 

आयोवा कोकस में जेब बुश को कुल 31 अंक मिले थे, यहाँ मार्को रुबीओ को 27 अंक मिले और वो दुसरे स्थान पर रहे, टेड क्रूज़ को 18 अंक मिले और वो तीसरे स्थान पर रहे, रैंड पॉल को 11 अंक के चौथा स्थान मिला, क्रिस क्रिस्टी, जॉन कासिच, माइक हुकाबी, स्कॉट वॉकर, रिक पैरी, कार्लय फिओरीना इन सभी ने यहाँ डोनाल्ड ट्रम्प से ज्यादा अंक हासिल किए थे

 

यह बात भी सही है की ट्रम्प के सेलिब्रिटी स्टेटस ने उनका खूब साथ दिया और इसके साथ राइट विंग मीडिया का उनको पूरा साथ मिला, इन मेसे सीन हैंनिटी, अन्न कल्टर, मार्क लेविन, माइकल सैवेज प्रमुख थे इन सबके इलावा तेजी से आगे बढ़ते मीडिया हाउस ब्रैटबरट न्यूज़ का भी पूरा साथ ट्रम्प को मिला, फॉक्स न्यूज़ का स्टैंड तो पूरी दुनिया को पहले से ही पता है

 

ट्रम्प ने शुरू से व्लादिमीर पुतिन जैसे ताकतवर तानाशाही सोच वाले माने जाते नेता की तारीफ की जिससे मीडिया में एक बेचैनी शुरू से ही थी पर ट्रम्प के विरोधियो ने उनको शुरू में कुछ ज्यादा तवज्जो नहीं दी, ट्रम्प के समर्थकों ने उन्हें काफी तवज्जो दी पर उनके विचारो के दूरगामी परिणाम पर ध्यान नहीं दिया

 

ट्रम्प ने 2016 के चुनाव से पहले साफ़ कर दिया था की अगर वो हार गए तो वो परिणामो का सम्मान नहीं करेंगे, वो शुरू से कहते थे की बहुत सारे मर चुके लोगों और गैर कानूनी तौर पर रह रहे बाहरी लोगो के नाम वोटर लिस्ट में डाले गए है जिनका इस्तेमाल क्लिंटन को जिताने के लिए किया जा सकता है, वैसे ट्रम्प द्वारा जो धांधले बाजी का इल्जाम लगाया जा रहा था वो बिलकुल गलत था क्यों की अमेरिका में जाली वोटर्स की गिनती हमेशा न के बराबर रही है

 

इतिहासकार डगलस ब्रिंकली ने तो यहाँ तक कह दिय था साल 1860 से लेके अब तक किसी भी राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार ने कभी भी लोकताँत्रिक चुनाव प्रक्रिया पर ऐसे शक नहीं किया है, उनका कहना है ऐसा सिर्फ सिविल वॉर के दौर में कहा और सुना जाता था

 

ट्रम्प ने अपने समर्थको को हिंसा के लिए उकसाया वो अक्सर कहा करते थे की उनके समर्थक उनके रैली के सामने विराध करने वालों को घूँसा जड़ दे अगर किसी समर्थक पर कोई केस लगेगा तो उसके वकील का खर्च ट्रम्प उठाएंगे,

 

ट्रम्प ने शुरू में ही कहा था की वो 2016 का इलेक्शन जीतने के बाद एक सही वकील को बुलाएँगे और जांच के बाद हिलेरी क्लिंटन को जेल भिजवाएंगे, साथ ही ट्रम्प उनके खिलाफ बोलने वाले मीडिया के एक बड़े हिस्से को भी सजा दिलवाने की बात किया करते थे, वाशिंगटन पोस्ट के जेफ्फ बेज़ोस को तो ट्रम्प सीधे तौर पर धमकिया दिया करते और कहते की अगर वो राष्ट्रपति बन गए तो जेफ्फ को बड़ी मुश्किल का सामना करना पड़ सकता है

 

मेनस्ट्रीम पॉलिटिक्स के लोगो को चाहिए की कैसे भी करके सब मिलके हार्डलाइनर को सत्ता में आने से रोके तभी लोकतंत्र बच सकता है, साल 2016 के चुनाव में ऑस्ट्रिया की कंज़र्वेटिव पार्टी ने ग्रीन पार्टी के उम्मीदवार को समर्थन देकर फार राइट रेडिकल नॉर्बर्ट होफर को सत्ता में आने से रोका था, इसी तरह साल 2017 के चुनाव में कन्सेर्वटिव उम्मीदवार फ्रांकोसिस फिल्लोन ने अपने समर्थको से सेंटर लेफ्ट के उम्मीदवार एम्मानुएल मैक्रॉन को वोट देने के लिए कहा ताकि फार राइट उम्मीदवार मरीन ली पेन को सत्ता से दूर रखा जा सके

 

पेरू के अल्बर्टो फ़ूजीमोरी ने न कभी राष्ट्रपति बनने की सोची थी और न ही तानाशाह, पर जब वे राष्ट्रपति बने तो सरकारी कर्मचारी कहा करते थे की या राष्ट्रपति फूजीमोरी कांग्रेस को खत्म कर देंगे या कांग्रेस राष्ट्रपति को जीरो कर देगी हुआ भी ऐसा ही 5 अप्रैल 1992 को फूजीमोरी टीवी पर आए और जनता से कहा की उन्होंने कांग्रेस को खत्म कर दिया है और संविधान को भी स्थगित कर दिया है

 

ह्यूगो शावेज़ अपने विरोधियों को दुश्मन और बदमाश कहा करते थे, इक्वेडोर के राष्ट्रपति रफाएल कोररयान मीडिया को राजनीतिक दुश्मन कहते थे, मौजूदा समय में तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तय्यिप एर्दोगन मीडिया पर आतंकवाद का प्रोपेगंडा करने का इल्जाम लगाते रहते हैं एर्दोगन अपने राजनीतिक विरोधियों को सीधे आतंकवाद से जोड़ देते है और मीडिया को झूठ फैलाने वाला कहते है, जिससे उन्हें अपने विरोधियो और मीडिया के खिलाफ करवाई करने का आसान सा मौका मिल जाता है

वेनेज़ुएला के विपक्ष ने देश की सुप्रीम कोर्ट से अपील की थी की वो एक मनोरोग माहिरों की टीम बनाए जो मानसिक बीमारी का आधार बना कर छावेज़ को सत्ता से बहार का रास्ता दिखाए

 

लोकतंत्र में आज़ाद संस्थानों की आज़ादी बर्करार रहना बहुत जरुरी है जैसे की अगर न्यायपालिका पर सरकार का दबाव रहेगा तो सरकार अपने विरोधी दलों के नेतावो, व्यापारियों और पत्रकारों को झूठे केसों में फंसा के सजा कराएगी, जिससे निष्पक्षता खत्म हो जाएगी, टैक्स विभागों पर भी सरकार का ज्यादा हस्तक्षेप खतरनाक हो सकता है ऐसा भी देखा गया है की सरकारें अपने विरोधियो और अपने खिलाफ बोलने वाले मीडिया संस्थानों और पत्रकारों पर टैक्स विभाग की रेड करवाती हैं यह कदम भी लोकतंत्र के फलने फूलने के रस्ते में बड़ा रोड़ा साबित होता है

 

हंगरी के प्रधानमत्री विक्टर ओरबन ने जब 2010 में दुबारा सत्ता संभाली तो उन्होंने स्टेट ऑडिट ऑफिस, सेंट्रल स्टैटिस्टिकल ऑफिस और कोर्ट सब अपने कण्ट्रोल में ले लिया था, जो संस्थाएं आसानी से दबाई नहीं जा सकती उन्हें ब्लैकमेल करके और डरा के अपने साथ मिला लेना सरकारों का एक बड़ा हथकंडा होता है, अल्बर्टो फूजीमोरी ने पेरू देश की इंटेलिजेंस एजेंसीज से 100 से ज्यादा विरोधी दल के नेतावों, वकीलों, जजों, पत्रकारों, बिज़नेस से जुड़े लोगों और कई मीडिया हाउस के एडिटर्स के वीडियोस टेप तैयार करवाए जिसके दम पर इन सब लोगो को ब्लैकमेल करके अपने साथ मिला लिया, सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों, 2 कोंस्टीटूशनल सदस्यों, कई सरकारी वकीलों को पैसे से खरीद लिया इन लोगो के घरों पर कैश में पैसा बड़े सीक्रेट ढंग से भेजा जाता था, कुछ ऐसे जज भी थे जो खरीदे नहीं जा सके उन्हें सरकार द्वारा अपने निशाने पर लिया जाता रहा है

 

छावेज़ ने साल 2004 में सुप्रीम ट्रिब्यूनल के 20 से बढ़ा के 32 सदस्य कर दिए नए सभी सदस्य छावेज़  के करीबी थे जिस वजह से अगले 9 साल तक सुप्रीम ट्रिब्यूनल से कोई भी नया फैसला छावेज़ सरकार के खिलाफ नहीं आया, जो मीडिया हाउस सरकार से हाथ मिला लिया करते है उन्हें राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री से जब चाहे सम्पर्क करने की सुविधा मिल जाया करती है, इसी तरह जो बिज़नेस से जुड़े लोग सरकार की जरूरते पूरी करते हैं उन्हें सरकारों द्वारा कम कीमत पर सरकारी ठेकों से नवाजा जाता है, फूजीमोरी एक ऐसे नेता रहे हैं जिन्हे अपने खिलाफ बोलने वाले खास कर मीडिया के लोगों को खरीदने का गजब का हुनर हासिल था, साल 1990 के अंत तक लगभग सभी बड़े टीवी चैनल और सभी बड़े अख़बार सरकार के पेरोल पर थे, फूजीमोरी के खास वलादिमिरो मोंटेसिनोस ने देश के चैनल 4 नामक मीडिया हाउस के मालिक को 12 मिलियन डॉलर चुकाया था बस चैनल के प्रोगरामिंग का कण्ट्रोल  मोंटेसिनोस को देने के बदले में, इसी तरह चैनल 5 को 9 मिलियन डॉलर की रकम दी गई थी, यहां तक की चैनल 9 के मालिकों को 50,000/- डॉलर सिर्फ दो इनवेस्टिगेटिव रिपोर्टर्स को नौकरी से निकालने के लिए दिए गए थे मोंटेसिनोस रोज़ दोपहर 12.30 पर मीटिंग बुलाया करते जिसमे एहि बात होती की शाम को क्या खबर चलेगी.

 

साल 2000 में जब फूजीमोरी को दुबारा इलेक्शन में खड़ा होना था तो उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती थी की विपक्ष के पास जितने लेजिस्लेचर थे उनसे कम फूजीमोरी के समर्थन में थे लिहाजी फूजीमोरी के खास  मोंटेसिनोस ने 3 जरुरी लेजिस्लेचर को वोट न करने के लिए पहले लुइस छू को 1,30,000/- डॉलर दिया जिससे वो वोट न करने के लिए राजी हो गए, दुसरे थे मिगुएल सिक्किए को एक कानूनी केस में मदद दी गई जो उनके किसी बिज़नेस मामले से जुड़ा था इसके बदले में वो भी वोट न करने के लिए राज़ी हो गए, तीसरी थी सुसी दिआज़ जो कुछ पर्सनल कारणों से घर पर ही रही और वोट करने गई ही नहीं इन्हे भी खरीद लिया गया था ऐसा संभव है, इसके बाद भी जब बात नहीं बनी तो मोंटेसिनोस ने विपक्ष के 18 लेजिस्लेटर्स को पाला बदलने के लिए खरीद लिया

 

साल 1990 में मलेशिया के प्रधानमंत्री महाथिर मोहमद ने पुलिस का इस्तेमाल कर अदालत को मजबूर किया की वो उनके मुख्य राजनीतिक विरोधी अनवर इब्राहिम को जेल में डाले जिसमे वो सफल भी रहे, इसी तरह साल 2014 में वेनेजुएला के प्रमुख विपक्षी नेता लेओपोल्डो लोपेज़ को हिंसा भड़काने के आरोप में जेल में डाल दिया गया

 

सरकारें अपने विरोध में बोलने वाले मीडिया हाउसेस को मान हानि जैसे कानूनों का इस्तेमाल करके चुप करवाती है, इसी तरह इक्वेडोर के राष्ट्रपति राफेल कोररया ने अपने देश के एक प्रमुख समाचार पत्र एल यूनीवर्सो पर एक दावा ठोका क्योकि इस समाचार पत्र ने उन्हें तानाशाह लिख दिया था इस केस में उन्होंने समाचार पत्र से कुल 40 मिलियन डॉलर अदालत में जीत लिए, वो बात अलग है आगे चलके उन्होंने समाचार पत्र के मालिक को माफ़ कर दिया था, पर इस मामले से मीडिया पर बड़ा नकारात्मक असर पड़ा था, जरा टर्की पर नजर मार लीजिए, यहाँ एक मीडिया हाउस है डोगन यायिन जो टर्की के लगभग 50% मीडिया मार्किट को कण्ट्रोल करता है, इस ग्रुप के कई टीवी चैनल कई डेली समाचार पत्र निकलते है जिनमेंसे ज्यादा तर सेक्युलर ही है, साल 2009 में टर्की सरकार ने इस ग्रुप पर टैक्स चोरी का इल्जाम लगाते हुए कुल 2.5 बिलियन डॉलर का जुर्माना लगा दिया जिसे चुकाने के लिए ग्रुप को अपना काफी एम्पायर बेचना पड़ा जिसमे 2 बड़े समाचार पत्र और एक टीवी चैनल शामिल है, इन सभी को सरकार समर्थक बिज़नेस ग्रुप्स ने खरीद लिया

 

अगर कोई आपदा आ जाए तो यह किसी के लिए भी बुरा वक्त ही होगा, पर नेतावों के लिए तो आपदा भी कुछ अच्छा ही लेकर आती है, 11 सितम्बर के हमले के बाद अमेरिका के राष्ट्रपति बुश की रेटिंग  53% से बढ़के 90 % हो गई थी इससे पहले इस मामले में सबसे बड़ी रेटिंग उनके पिता बुश सीनियर की थी जो 89% थी

राजनीति  में  हर  बार  ऐसा  नहीं  होता  की  नेता  ही  ताकत  का  इस्तेमाल  कर पूरे सिस्टम को बिगाड़ देते है कई बार देखने में आया है की सिस्टम भी नेतावों के साथ गलत व्यौहार किया है, साल 1979 में एकुआडोर में राष्ट्रपति को पद से हटाने के लिए एक छोटा प्रस्ताव पारित किया गया और उन्हें पद से बिना किसी से चर्चा किए हटा दिया गया, 6 फरवरी 1997 एक बार फिर राष्ट्रपति को यह कहते हुए पद से हटा दिया गया की उनकी मानसिक हालत इतनी स्थिर नहीं की वो देश चला सकें, इस कदम से पहले बहस तक नहीं हुई की वो दिमागी तौर पर ठीक हैं या नहीं

 

अमेरिका जो आज पूरी दुनिया में सबसे मजबूत लोकतंत्र के लिए जाना जाता है में भी शुरू से ही इतना मजबूत लोकतंत्र नहीं था, साल 1798 में सेडिशन एक्ट लाया गया जिसके बाद अगर कोई सरकार के खिलाफ झूठी स्टेटमेंट जनता तक पहुंचाएगा तो उसे आपराधिक मामले का सामना करना पड़ेगा, माना जाता है की यह एक्ट रिपब्लिकन पार्टी के समाचार पत्र और उनके कार्यकर्ताओं को दबाने के लिए लाया गया था

 

साल 1937 में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति फ्रैंकलिन रूज़वेल्ट ने देश की सुप्रीम कोर्ट को दबाने का पहला और आखिरी प्रयास किया था जिसके बाद अमेरिका की लगभग सारी मीडिया ने इसे सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ सीधा हमला माना था और खुलकर इस कदम के खिलाफ लिखा था, रिपब्लिकन्स ने तो राष्ट्रपति के इस कदम की आलोचना की ही थी साथ ही डेमोक्रेट्स जिस पार्टी से राष्ट्रपति खुद आए थे के काई सदस्यों ने राष्ट्रपति के इस कदम की खूब आलोचना की थी, इस आलोचना में मिसौरी के सीनेटर जेम्स ए रीड, जॉर्जिया से कांग्रेसमैन एडवर्ड कॉक्स प्रमुख थे, इस मामले के बाद आजतक अमेरिका के किसी भी राष्ट्रपति ने न सुप्रीम कोर्ट और न ही मीडिया पर हाथ डालने की कोशिश की है

अमेरिका में सीनेट को यह ताकत मिली हुई है की अगर उसे लगे की अमेरिका के राष्ट्रपति अपने किसी करीबी को जज या कैबिनेट का सदस्य बनाना चाहते है तो सीनेट उन्हें ऐसा करने से रोक सकती है, वैसे सिर्फ 9 कैंडिडेट्स को सीनेट ने साल 1800 से लेके 2005 तक के दौर में रोका है,

ऐसा बिलकुल नहीं की भारत में ही मीडिया का रुख एक पार्टी के खिलाफ तो दूसरी पार्टी के पक्ष में रहता है, सितम्बर 11 के हमले के बाद तब के अमेरिकी राष्ट्रपति बुश ने कभी भी डेमोक्रेट्स पर देश प्रेम की कमी या ऐसा कोई अन्य इल्जाम नहीं लगाया पर उस समय राइट विंग मीडिया ने डेमोक्रेट्स को अल क़ायदा के लिए काम करने वाला खुलेआम कहा

 

डेमोक्रेट्स की तरफ से राष्ट्रपति पद की दौड़ में बराक ओबामा मैदान में थे तब राइट विंग मीडिया फॉक्स न्यूज़ ने उन्हें एंटी अमेरिका कहा, उनको कम्युनिस्ट और कई बार मुस्लिम कहके उनके काम काज पर ऊँगली उठाई, अभी ओबामा को राष्ट्रपति बने हुए कुछ ही दिन हुए थे की जॉर्जिया के कोंग्रेसस्मेन पॉल ब्रॉउन ने एक ट्वीट करके कहा की श्री मान राष्ट्रपति जी आप संविधान में विश्वास नहीं रखते आप समाजवाद में विश्वास करने वाले है

 

राष्ट्रपति ओबामा ने जब ईरान के परमाणु कार्यक्रम के लिए एग्रीमेंट बनाया जो एक ट्रीटी नहीं थी जिसके लिए उन्हें सिनेटर्स की अनुमति लेनी जरुरी नहीं थी जिसके बाद साल 2015 में अर्कांसस के सीनेटर टॉम कॉटन और अन्य 46 रिपब्लिकन सिनेटर्स ने ईरान के नेता को एक खुला पत्र लिखा जिसमे यह साफ़ किया गया था की ओबामा के पास इस बात की कोई शक्ति नहीं की वो ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर  अमेरिका की तरफ से निगोशिएट कर सके

 

याद रखिए की अमेरिका में प्रवासी लोगो का आना साल 1960 में शुरू हुआ था यह सिलसिला पहले लैटिन अमेरिका फिर एशिया से आने वाले लोगो की वजह से शुरू हुआ था, साल 1950 में अमेरिका की कुल आबादी का महज 10% ही अश्वेत लोगो का था साल 2014 में यह आंकड़ा 38% तक पहुंच गया,  अमेरिका सेंसस बिउरो के मुताबिक साल 2044 तक अमेरिका में अश्वेत लोग बहुसंख्य हो जाएंगे, यह  सभी अश्वेत लोग डेमोक्रेट्स को अपनी पार्टी मानते है वोट देते हैं, साल 1950 में डेमोक्रेट्स की कुल वोट का 7% ही अश्वेत लोगो का था जो 2012 तक बढ़के 44% हो गया वही रिपब्लिकन्स का 90% वोटर आज भी श्वेत वर्ग का ही है, इन वजहों से ही रिपब्लिकन श्वेत लोगों की पार्टी बन गई और डेमोक्रेट्स कम गिनती वर्ग की पार्टी बन गई

एक स्टडी के मुताबिक डोनाल्ड ट्रम्प के कार्यकाल के दौरान मीडिया कवरेज का लगभग 80% नेगेटिव रहा, इसके मुकाबले क्लिंटन के समय में यह आंकड़ा 60%, बुश के समय 57% और ओबामा के समय 41% था जिससे साफ़ पता लगता है की ट्रम्प की छवि मीडिया में ख़राब थी, ट्रम्प के कार्यकाल में ऐसा कोई हफ्ता नहीं जाता था जिसके दौरान मीडिया कवरेज 70% से नीचे नेगेटिव रही हो, ट्रम्प ने तीन बेहद खतरनाक कदम उठाए जिसमे निष्पक्ष संस्थानों को अपने प्रभाव में लेना, अपने मुकाबले के राजनीतिक खिलाड़ियों को किनारे करना और नियमों में बदलाव करके अपने पक्ष को मदद देना था यह  सभी कदम लोकतंत्र को कमजोर करते हैं राष्ट्रपति बनते ही ट्रम्प ने सीआईए और FBI के टॉप पदों पर  अपने पर्सोनली करीबी लोगो को बैठाया, राष्ट्रपति पद सँभालने के पहले ही हफ्ते में ट्रम्प ने FBI के डायरेक्टर जेम्स कोमी को डिनर पर बुलाया और रूस के साथ सम्बन्धो की चल रही जांच में सहयोग करने के लिए कहा, ऐसा बाद में जेम्स कोमी ने खुद माना, इसके बाद ट्रम्प ने सीआईए प्रमुख माइक पोम्पियो को इस मामले में दखल देने के लिए कहा, आगे चलकर नेशनल इंटेलिजेंस के डायरेक्टर डेनियल कोएट्स और NSA माइकल रोजर्स को एक स्टेटमेंट जारी करने के लिए कहा की रूस के साथ सबंधो वाली बात गलत है, पर दोनों अधिकारीयों ने ऐसा करने से मना कर दिया, इसके बाद कोमी को राष्ट्रपति ने उनके पद से कार्यकाल खत्म होने से पहले ही हटा दिया ऐसा अमेरिका के इतिहास में 82 सालों में पहली बार हुआ था,

 

अमेरिकन अटॉर्नी प्रीत भरारा ने एक मनी लॉन्डरिंग के मामले की जांच शुरू जो ट्रम्प के कुछ करीबी लोगो तक जा सकती थी तो राष्ट्रपति ने प्रीत भरारा को पद से हटा दिया, ट्रम्प द्वारा निष्पक्ष जांच एजेंसियों के काम को रोकना उन कदमो की याद दिलाता था जो कम लोकतान्त्रिक देशो में ही उठाए जाते है, ट्रम्प ने जजों पर भी निशाना साधा जब नाइन्थ सर्किट के जज जेम्स रॉबर्ट ने ट्रम्प प्रशाशन द्वारा लगाए गए ट्रेवल बैन पर रोक लगा दी तो ट्रम्प ने नाइन्थ सर्किट के काम काज को खत्म करने की धमकी दे डाली,

 

ट्रम्प ने CNN और न्यू यॉर्क टाइम्स पर झूठी ख़बरें फैलाने का आरोप लगाया, साल 2017 के फरवरी माह में ट्रम्प ने एक ट्वीट किया जिसमे कहा की अमेरिका का मीडिया अमेरिका की जनता के खिलाफ काम कर रहा है, मीडिया अमेरिका की जनता का दुश्मन है, साल 2017 के अक्टूबर माह में ट्रम्प ने NBC और कई अन्य मीडिया हाउसेस के लाइसेंस पर भी सवाल उठाया, राष्ट्रपति ट्रम्प ने राष्ट्रपति बनने के बाद उंनसे चुनाव हारने वाली हिलेरी क्लिंटन के खलाफ बोलना जारी रखा जो अमेरिका के कानूनों के खिलाफ है उन्होंने इसके इलावा अपने से पहले राष्ट्रपतियों के खिलाफ भी बोलना जारी रखा जो अमेरिका में अलिखित कानूनों के खिलाफ है

 

ट्रम्प कहते थे की उन्होंने अपने से पहले के सारे राष्ट्रपतियों से ज्यादा अंतर् से चुनाव जीता है जो गलत है ओबामा, जॉर्ज एच.डब्लू. बुश, और क्लिंटन ने भी बड़े अंतर् से चुनाव जीता था, ट्रम्प कहते थे की उन्होंने किसी भी अमेरिकी राष्ट्रपति से ज्यादा बिल्स पर दस्तख़त किए है यह बात भी गलत ही है इस मामले में वो जॉर्ज. एच. डब्लू. बुश और क्लिंटन से पीछे थे

 

कोलोम्बिया में साल 2002 में चुने गए राष्ट्रपति उरिबे ने अपने राजनीतिक विरोधियो के साथ आतंकियों जैसा व्यौहार किया, पत्रकारों की जासूसी करवाई, कोर्ट को दबाने की कोशिस की ऐसा उन्होंने तीसरी बार राष्ट्रपति बनने के लिए किया पर देश के संविधान के मुताबिक यह गैरकानूनी है, देश का विपक्ष न डरा न झुका सभी ने इकठा होकर कांग्रेस और कोर्ट का सहारा लिया किसी भी असंवैधानिक तरीके का सहारा नहीं लिया और साल 2010 में कोर्ट ने राष्ट्रपति को झुकने पर मजबूर कर दिया और उनके तीसरे बार के नामांकन को ख़ारिज कर दिया, यहां एक शिक्षा है किसी भी तानाशाही के खिलाफ लड़ते हुए पूरे विपक्ष को चाहिए की वो संविधानिक और लोकतान्त्रिक संस्थानों को पहले मजबूत करे और फिर संविधानिक तरीके से ही तानाशाही करने वाली सरकार को झुकाएं

 

जब कभी ऐसी स्थिति आजाए की मौजूदा सरकार लोकतंत्रिक नियमो का उलंघन कर रही हो तो सभी विपक्षी दलों जिनके आपस में कुछ बड़े मतभेद ही क्यों न हो सब भूलकर एक साथ एक गठबंधन बनाकर चुनाव लाडे, ऐसी स्थिति में विपक्ष गठबंधन जितना एक दुसरे पर भरोसा करेगा उतना आसानी से चुनाव जीतकर तानाशाही सरकार को सत्ता से बहार करेगा, ऐसे हालातों में विपक्ष के किसी भी ग्रुप को लोकतंत्र के नियमों का उलंघन करके कोई कदम नहीं उठाना चाहिए वरना ऐसे कदम का विपक्ष को नुकसान और सत्ता में बैठी सरकार को ज्यादा फ़ायदा होगा और सरकार के चुनाव जीतने की संभावना बढ़ जाएगी

 

स्टोरी के अंत में हम भारत देश और भारत से बहार पढ़ने वाले सभी पाठकों से यह बात साफ़ कर देना चाहते है की कहानी में जो भी उधारण दिए गए और जिन नेतावों के बारे लिखा गया है सब रिकॉर्ड में दर्ज है पूरी कहानी में कोई भी आरोप और किसी के भी पक्ष में लिखा गया है कुछ भी हमारा अपना न विचार है न हमारी किसी की भी भावनावों को ठेस पहुंचने की कोई मंशा है, इस स्टोरी के ज्यादा तर कंटेंट How Democracies Die, what history reveals about our future- by steven levitsky and Daniel ziblatt नामक एक किताब से प्रेरित है,एक और बात का ध्यान रखना होगा जो लेखक ने किताब में साफ़ किया है की उन्होंने किसी तरह से किसी चुने हुए नेता की तुलना हिटलर और मुसोलिनी जैसे तानाशाहों से नहीं की है, सभी अलग अलग उधारण के तौर पर लिए गए है जिनका एक दुसरे से कोई लेना देना नहीं है इस स्टोरी में उधारणों के द्वारा सिर्फ समझने की कोशिस है की कैसे डेमोक्रेसी कमजोर होती है और बीते सालों में होती रही है और कैसे इसे आने वाले समय में मरने से बचाया जा सकता है,

 

Other sources- www.theguardian.com, www.toppr.com

Piucture- from internet, picture not use for commercial purposes


 

 

 

 

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