कैसे जीते जाते है चुनाव? पढ़िए पूरा आर्टिकल..

16,फरवरी, 2022: जाती और धर्म की राजनीती: साल 1990 में बिहार की राजनीती में लालू प्रसाद यादव ने नया फेबदल किया लालू को उनकी जाती यादव वर्ग का समर्थन प्राप्त हुआ जिनका बिहार में कुल वोट प्रतिशत 16% के आस पास था साथ ही लालू को मुस्लिम समाज जिनका वोट प्रतिशत बिहार में उस समय लगभग 18% के आस पास था का एक जबदरदस्त समर्थन मिला जिसने सालों से सत्ता पर काबिज़ ब्राह्मण- राजपूत और कायस्त समाज के गठजोड़ को उखाड़ फेंका लालू की इस जीत ने देश में जातीय और धर्म पर आधारित राजनीती को हवा दी और देश में पहली बार जातीय और धर्म आधार पर  राजनीतिक मैंडेट ने स्विंग किया, साथ ही एक मैसेज पूरे देश में चला गया, की जातीय और धर्म के आधार पर होने वाली राजनीती का कोई तोड़ मिलना मुश्किल है

छेत्रिय मसले: कांग्रेस ने महाराष्ट्र में अच्छे प्रशाशन लाने पर जोर दिया तो इसी कांग्रेस ने गुजरात में सारा फोकस सेक्युलरिसम  पर रखा, इसे छेत्र वाद की राजनीती कहा जाएगा

इशू पर आधारित सेगमेंटेशन: गुजरात और बिहार में बीजेपी ने कई बार सफलतूर्ण तरीके से डेवलपमेंट को मसला बना के राजनीतिक मैंडेट को अपने पक्ष में स्विंग करवाया, इसी तरह AIADMK और DMK दोनों ने श्री लंका के तमिल लोगो के मसले को उठाया और जनता का मन जीतने की कोशिस की

कुछ जानकार यह बात खुलके मानते है की भारत की 90% जनता असल मुद्दों को दर्किनार करते हुए, जाती और धर्म के आधार पर वोट देती है, और चुना गया नेता ईमानदार है या नहीं इस बात को भी भूल जाती है

चुनाव कमीशन की कई रिपोर्ट कहती हैं की पढ़े लिखे वोटर्स को अगर पता चल जाए की किसी नेता का आपराधिक रिकॉर्ड है तो उसे वोट देने से परहेज करते हैं, टाइम्स ऑफ़ इंडिया में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक कम पढ़े लिखे वोटर्स पार्टी के चेहरे यानिकी पार्टी ब्रांड को वोट दते हैं और ज्यादा पढ़े लिखे लोग सामने खड़े कैंडिडेट को देखते है और प्रखते है की कैंडिडेट कितना काबिल है और अपने वादे निभाने का क्या रिकॉर्ड रखता है और फिर जाके वोट देते हैं

वोटिंग से पहले सबसे जल्दी और आसानी से प्रभावित किया जा सकने वाला सेगमेंट है स्टूडेंट्स का, इस सेगमेंट को ऑनलाइन और सोशल मीडिया के जरिए पार्टियाँ अपनी आइडियोलॉजी से जोड़ सकती है यह सेगमेंट अपने दोस्तों और साथ काम करने वाले लोगो से सबसे ज्यादा प्रभावित रहता है इस लिए इस वर्ग को इसके दोस्तों और साथ काम करने वाले लोगो के जरिए भी प्रभावित किया जा सकता है

इसके बाद सबसे आसानी से वर्किंग प्रोफेशनल्स को पार्टी आइडियोलॉजी से अवगत करवाया जा सकता है इस वर्ग को डिजिटल मीडिया के जरिए अपने साथ पार्टीज जोड़ सकती हैं

घरेलु महिला समाज भी आसानी से पार्टी आइडियोलॉजी से जोड़ा जा सकता है, इस समाज वर्ग को टीवी प्रोमोशंस के जरिए पार्टी की आइडियोलॉजी बताई जा सकती है

इसके इलावा जाती, धर्म और छेत्रिय मसले बेहद जरुरी हैं और इन्हे किसी भी हाल में नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है

बात की जाए इलेक्शन कैंपेन की तो पहले थका दने वाली रैलियों का दौर हुआ करता था अब इसका स्थान डिजिटल मीडिया कैंपेन ने ले लिया है इसके इलावा टीवी चैनल्स और रेडियो चैनल्स पर चलने वाले विज्ञापन भी एहम भूमिका निभा रहे हैं, पिछले कुछ सालों में इलेक्शन कैंपेन में बड़ा बदलाव आया है यह मीडिया जगत में हुई तर्रकी की वजह से हुआ है, यह सबस पहले अमेरिका में देखा गया इसके बाद ऑस्ट्रेलिया, ईस्ट एशिया, वेस्ट्रन यूरोप और फिर ईस्टर्न यूरोप और आगे चलके लैटिन अमेरिका तक फ़ैल गया, आजकल एहि राजनैतिक प्रैक्टिस दक्षिणी अफ्रीका, थाईलैंड और भारत में देखी जा सकती है

ग्लोबल पोलिटिकल कंसल्टेंसी सर्वे डाटा के मुताबिक 90 के दशक में अमेरिका से चलने वाली पोलिटिकल कंसल्टंसीस का 57% रेवेनुए उनके ओवरसीज क्लाइंट्स से आया था, अमेरिकी पलिटिकल कंसल्टेंसी कम्पनीज के लिए सबसे ज्यादा मुनाफा कमाने  वाली मार्किट थी लैटिन अमेरिकी देश जहाँ यह 64% कंसल्टेंसी कम्पनीज काम करती हैं, वही यूरोप में 90%, पोस्ट कम्युनिस्ट देशो में 59%, मिडिल ईस्ट, अफ्रीका और एशिया में कुल 28% काम करती हैं जो सबसे कम हैं पर फिर भी यह देश इन कंपनियों के लिए मुनाफेदार ही हैं

एक जानी मानी अमेरिकी संस्था जिसका नाम अमेरिकन एसोसिएशन ऑफ़ पोलिटिकल कंसल्टेंट्स(आपस) है जो साल 1969 में अस्तित्व में आई थी यह संस्था अब विश्व की सबसे बड़ी राजनीतिक और पब्लिक अफेयर्स प्रोफेशनल बन गई हैं, इस संस्था के पास कुल मिला के 1100 फुल टाइम मेंबर्स हैं साल 2002 में ही इस संस्था ने राजनीतिक कैंपेन से जुड़ा जो बिज़नेस हैंडल किया उसका वर्थ $ 5 बिलियन से भी ज्यादा आंका गया हैं

इलेक्शन कमीशन की ऑफिशल रिपोर्ट के मुताबिक साल 2014 का लोक सभा इलेक्शन अबतक का सबस महंगा चुनाव रहा हैं जिसमे कुल  Rs.1114 करोड़ का खर्च आया था

चुनाव के दौरान चुनाव करवाया जाने के लिए सारे खर्चे केंद्र सरकार को उठाने होते हैं वही लॉ एंड आर्डर और अन्य मेंटेनेंस की जिम्मेवारी राज्य सरकार की रहती हैं

2014 लोक सभा चुनाव सबसे महंगा साबित हुआ हैं इसमें कुल खर्च आया था Rs.3426 करोड़, जो 131% की बढ़ोतरी था साल 2009 में हुए चुनाव में जिसमे कुल खर्च आया था Rs. 1483 करोड़ का, एक अनुमान के मुताबिक साल 2014 के जनरल  इलेक्शन में राजनीतिक पार्टियों, सरकार, कैंडिडेट्स आदि द्वारा कुल खर्च की गई अमाउंट Rs.30,000 करोड़ के आस पास बैठती है

साल 2015 के दिल्ली असेंबली चुनाव में अरविंद केजरीवाल ने अमेरिका के नक़्शे कदमो पर चलते हुए, फण्ड इक्कठा करने के लिए लंच और डिन्नर की ऑफर जनता  के सामने राखी थी, इसके इलावा अमेरिका में साल  2002 में ओबामा द्वारा प्रेसिडेंशियल इलेक्शन के लिए जैसे सोशल मीडिया और डिजिटल मीडिया का बहुत ज्यादा इस्तेमाल किया गया था बिलकुल उसी तरह साल 2014 के चुनाव में नरेंदर मोदी के पक्ष में सोशल और डिजिटल मीडिया का इतेमाल किया गया

2014 के चुनाव माहौल की बात की जाए तो पार्टी लीडर्स के साथ वन टू वन इंटरव्यू करना, लगतार 24 घंटे इलेक्शन की ही कवरेज करना, न्यूज़ चैनलों ने ओपन डिबेट का रास्ता भी खोला जिसमे पार्टी लीडर्स,सोशल एंड मॉस रेप्रेज़ेंटेटिव, और एक्सपर्ट्स को बैठाया जाने लगा इस तरह की तेज तर्रार इंटरव्यूज ने न्यूज़ चेन्नलों के एडवरटाइजिंग रेट्स को भी बढ़ाया, इस प्रक्रिया ने भारतीय राजनीती और मीडिया दोनों को अमेरिकी रंग में रंग दिया

साल 2014 के चुनाव को नरेंदर मोदी और उनकी टीम द्वारा किए गए चुनावी कैंपेन के लिए याद किया जाता रहेगा, इस कैंपेन के दौरान मोदी ने अपनी छवि जिसके तहत उन्होंने पूरे देश को यह कामयाबी से बता दिया की वो लगातार 4 बार गुजरात के मुख्य मंत्री बन चुके हैं लिहाजा वह  यह बात अच्छे से जानते है की देश की तरक्की कैसे की जा सकती है, उन्होंने वाइब्रेंट गुजरात के फॉर्मूले को खूब भुनाया, उन्होंने एडवरटाइजिंग के सभी माध्यम इस्तेमाल किए, उनके कैंपेन रेडियो, टीवी, सोशल मीडिया, डिजिटल मीडिया, प्रिंट मीडिया, सोशल नेटवर्किंग और यहाँ तक की मिक्रोब्लॉग्गिंग पर भी चले, मतलब देश के हर नुक्कड़ और हर कोने तक मोदी के कैंपेन की पहुंच थी

इंडियन नेशनल इलेक्शन के मुताबिक साल 2013 में 27% भारतियों ने यह फैसला किया था की वो बीजेपी को वोट देंगे, जिसमे से कुल 19% लोग मोदी के चेहरे की वजह से वोट दने को राजी थे, सबसे बड़ी बात की कुछ इतने ही प्रतिशत लोग कांग्रेस को भी वोट देना चाहते थे, पर जब मोदी को बीजेपी का चीफ कॉम्पैग्नर बनाया गया तो उन्होंने किसी भी अन्य नेता से ज्यादा वोट्स खींचने में कामयाबी हासिल की, अब एहि वोट प्रतिशत 31% तक बढ़ गया था

सोनर और विलकॉक्स ने जब पब्लिक ओपिनियन की जांच की तो पाया की क्लिंटन कंट्रोवर्सी के दौरान किसी  भी अन्य राष्ट्रपति से ज्यादा चर्चित थे

नरेंदर मोदी: जब मोदी की लोकप्रियता देखके उन्हें गुजरात लोक संघर्ष समिति का जनरल सेक्रेटरी बनाया गया तो उनका काम था गुजरात भरके बीजेपी कार्यकर्ताओं से एक संवाद स्थापित करना यह वही दौर था जब मोदी ने संघर्ष म गुजरात लिखी, इसके बाद साल 1995 में मोदी को बीजेपी का राष्ट्रीय सेक्रेटरी बना दिया गया और उन्हें दिल्ली भेज दिया गया

अब वो दौर आया जब गुजरात में बीजेपी के सबसे बड़े नेता केशुभाई पटेल की सेहत में तेजी से गिरावट आने लगी थी और तभी भुज में आए  भूचाल ने बीजेपी की जनता में पकड़ को और कमजोर कर दिया, बीजेपी को लगने लगा था की किसी करिश्माई नेता के बिना गुजरात में बीजेपी को आने वाले समय में ताकतवर रखा जाना मुश्किल है, तब पार्टी को नरेंदर मोदी ही अकेला विकल्प दिखे, फिर दिन आया 7 अक्टूबर 2001 का जिस दिन नरेंदर मोदी को गुजरात का नया मुख्य मंत्री बना दिया गया

अरविन्द केजरीवाल: अरविन्द केजरीवाल को साल 2006 में मेग्सेसे अवार्ड से सम्मानित किया गया इसके बाद NDTV और  CNN-IBN ने केजरीवाल को इंडियन ऑफ़ द ईयर का खिताब भी दे दिया साल  2014 के इलेक्शन के सर्वे के मुताबिक अरविन्द केजरीवाल नरेंदर मोदी के बाद प्रधानमंत्री पद के लिए दूसरी सबसे बड़ी पसंद थे

ट्रम्प ने चुनाव अभियान के दौरान एक कैप पहननी शुरू की जिसपर लिखा था ” मेक अमेरिका ग्रेट अगेन” यह कदम उनकी चुनाव ब्रांडिंग का हिस्सा था, साल 2014 में नरेंदर मोदी ने भी इसी तरह एक कुरता पहनना शुरू किया जिसे मोदी कुरता कहा जाने लगा, यह कुरता 2014 के चुनाव अभियान के दौरान मोदी का ब्रांड बन गया था

नरेंदर मोदी ने जब पहली बार गुजरात के मुख्य मंत्री पद को संभाला तो मीडिया में उनकी छवि एक कट्टर हिन्दू नेता की बनी हुई थी, इसके इलावा फेक एनकाउंटर का मामला और साल 2002 में हुए गोधरा दंगो का मामला भी आग में घी का काम कर रहा था, इसके इलावा मोदी के दफ्तर में झूठे नोटिस भेजे जाते रहे और कुछ अन्य परेशान करने की कोशिशें लगातार की जाती रही, लगभग हर मीडिया में मोदी की इमेज को खराब करने वाले आर्टिक्ल लिखे गए, पर जनता ने इस सबको पॉजिटिव ढंग से लिया जिस का परिणाम हुआ की मोदी डेवलपमेंट और प्रो बिज़नेस मॉडल की वजह से लगातर तीन बार गुजरात के मुख्य मंत्री चुने गए

कुछ इसी तरह जब अरविंद केजरीवाल ने कुल 49 दिन काम करने के बाद एक दम से पद से इस्तीफ़ा दे दिया तो सोशल और प्रिंट मीडिया दोनों में उनके खिलाफ बड़े बड़े लेख लिखे गए और उनकी इमेज एक नाकाम और फैसले लेने में फेल नेता की बनाने की कोशिश की गई पर जनता ने यहाँ भी पूरे मांमले को पॉजिटिव ढंग से लिया और यह माना की केजरीवाल दिल्ली सिस्टम के अंदर के सारे भ्रस्टाचार खत्म कर सकते है जिस वजह से दिल्ली की जनता ने साल 2015 में केजरीवाल की पार्टी को पूरा बहुमत देकर फिर सत्ता में लाया

स्विंगिंग द मैंडेट नामक किताब में लेखकों ने साफ़ तौर पर जिक्र किया है की कुल मिला के 800 न्यूज़ रिपोर्ट्स पर एक रिसर्च किया गया जिसमे पाया गया की लगभग इन सभी रिपोर्ट्स में या तो मोदी को डायरेक्टली या फिर घुमा फिरा कर निशाने पर लिया गया है, इन रिपोर्ट्स में देश के लीडिंग प्रिंट मीडिया, टीवी चैनल्स की डिबेट, लीडिंग मैगजीन्स, लीडिंग ऑनलाइन ब्लोग्स की रिपोर्ट्स शामिल हैं, इन सभी रिपोर्ट्स में मीडिया ने किसी भी मैटर के सभी पहलु जनता के सामने रखे ही नहीं है बस सिर्फ उन्ही हिस्सों को रखा गया है जो मोदी के खिलाफ जाते हैं, यहां तक की जब सुप्रीम कोर्ट की सिट ने भी मोदी के पक्ष में फैसला दिया तब देश का मीडिया सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भी किन्तु परन्तु करता रहा है

इस रिसर्च की कुछ फाइंडिंग्स पर भी नजर मार लीजिए:

  1. लगभग 70% आर्टिकल्स में नरेंदर मोदी को कुछ फर्जी रिपोर्ट्स के दम पर घसीटा गया
  2. इनमेसे 55% रिपोर्ट्स भरोसा न करने लायक सोर्सेज के आधार पर गढ़ी गई
  3. लगभग 40% रिपोर्ट्स सिर्फ एक ओपिनियन भर थी
  4. लगभग 25% रिपोर्ट्स तो कोर्ट फाइंडिंग्स को भी नकारती हुई दिखी और अपना ही अलग फैसला सुनाती हुई दिखी
  5.  52% रिपोर्ट्स में तो मोदी को एंटी मुस्लिम दिखाने का ही काम किया था
  1. ऐसी कोई रिपोर्ट नहीं मिली जो किसी भी तरफ से मोदी के पक्ष में रही हो

इस किताब के लेखक तो यहाँ तक मानते है की नरेंदर मोदी भारत के अकेले ऐसे नेता है जिन्हे मीडिया से इतना ज्यादा सौतेला व्यौहार झेलना पड़ा और इसके उलट मोदी ने लगभग सभी इल्जामो में क्लीन चिट हांसिल की है

इसी तरह एक बार ब्रिटेन के पूर्व प्रधान मंत्री हेरोल्ड मैकमिल्लान से पूछ गया की उन्हें सबसे ज्यादा किस चीज़ से डर लगता है तो उन्होंने कहा की उन्हें सबसे ज्यादा डर इवेंट्स से लगता है, इवेंट्स ही वो चीज़ हैं जो नेता की छवि बनाते और बिगाड़ते हैं

नरेंदर मोदी पर साल 2014 में उस समय एक FIR 30 अप्रैल को तब करवा दी गई जब उन्होंने सरखेज- गाँधी नगर हाइवे में एक पोलिंग बूथ में अपना वोट डालने के बाद अपनी पार्टी का चुनावी चिन्ह दिखाया और एक राजनीतिक भाषण दिया

साल 2008 में जब पश्चिम बंगाल की सरकार ने टाटा ग्रुप को नैनो कार प्रोजेक्ट पश्चिमी बंगाल से हटाने का हुक्म दे दिया तो नरेंदर मोदी ने टाटा ग्रुप को गुजरात में जमीन और लेबर दोनों उम्मीद से जल्दी मुहैया करवा दिया और तो और जिन किसानो की जमीन इस काम के लिए सरकार ने ली उन्हें भी काफी जल्दी मुआवजा भी दिलवा दिए गए, इस बात ने भी एक इवेंट का रूप धारण कर लिया जिसने मोदी की छवि को आसमान पर पंहुचा दिया,

साल 2014 के चुनाव के दौरान मोदी ने देश भर में कुछ 470 के आस पास राजनीतिक रैलियों में हिस्सा लिया और लगभग 5000 इवेंट्स में भी हिस्सा लिया, मोदी के नाम के साथ नमो शब्द का जुड़ना भी हिन्दू समाज के बड़े हिस्से को मोदी से जोड़ने में सफल रहा

आम आदमी पार्टी ने एक सर्वे करवाया जिसके जरिए पार्टी यह बात जानना चाहती थी की आप को कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनानी चाहिए या नहीं क्योकि पूरे देश को यह पता था की आप की आइडियोलॉजी शुरू से कांग्रेस के विरोध में थी, इस सर्वे से आप को यह बात सफलता पूर्वक पता चल गई की दिल्ली की जनता चाहती है की अगर दिल्ली की सरकार चलाने में कांग्रेस का कोई हाँथ नहीं रहने वाला है तो ऐसी स्थिति में आप को कांग्रेस के साथ गठजोड़ करके सरकार बना लेनी चाहिए

अगर राजनीती में कभी किसी नेता से कोई गलती हो जाए तो उसे जनता से माफ़ी मांगते समय यह ध्यान रखना है की माफ़ी गंभीर दिखनी चाहिए वरना लोगो को लगेगा की उनके साथ धोखा हुआ है साथ ही यह बात भी लगनी चाहिए की माफ़ी बिलकुल सचाई से मांगी जा रही है मतलब यह माफ़ी कोई ढोंग नहीं है

मोदी ने गुजरात का मुख्य मंत्री रहते हुए महिलावो की भलाई के लिए ठोस कदम उठाए, मोदी ने बेटी बचाओ कैम्पेन चलाया जिसका मकसद राज्य में लिंग अनुपात में संतुलन लाना था, इसके इलावा मोदी ने गौरव नारी नीति प्रोग्राम चलाया जिसके तहत हर छेत्र में महिलाओं के योगदान को बढ़ाया गया, बालिका समृद्धि योजना लाइ गई, किशोरी शक्ति योजना लाई गई ताकि शिक्षा के साथ साथ बालिकावों को सही न्यूट्रिशन भी मिल सके, इन कदमों ने मोदी की आइडियोलॉजी में महिला वोटर्स का विश्वास मजबूत कर दिया

सितम्बर 2013 से लेकर अप्रैल 2014 तक मोदी ने 5827 पब्लिक इवेंट्स में हिस्सा लिया इसके इलावा मोदी ने देश के 25 राज्यों का दौरा किया और जनता की तकलीफों को सुनने का काफी समय निकालने  के इलावा, मोदी ने कुल 437 रैलियों में हिस्सा लिया

ट्विटर, फेसबुक, गूगल हैंगआउट्स, डिजिटल कम्पैनिंग, के साथ लगभग 4000 अलग अलग जगह पर चाय पे चर्चा प्रोग्राम चलाया गया, और 1350 साइट्स को 3D रैलियों के द्वारा कवर किया गया साल 2014 के चुनाव तक मोदी की उम्र 63 साल थी पर उनके कैंपेन की वजह से देश का युवा उनमे अपनी उम्मीद पूरी होते देखने लगा और उन्हें अपने बीच का समझने लगा

CAG की वेबसाइट के मुताबिक 15 दिसम्बर 2013 को 48 लाख लोगो का इवेंट चलाया गया, जो मानव इतिहास में सबसे ज्यादा लोगो के एक स्थान पर इकठा होने का इवेंट होने का दवा भी था, इस इवेंट में लोगो को कांग्रेस द्वारा कश्मीर मुद्दे और धारा 370 के मामले में फेल होने के बारे विस्तार से बताया गया

महाराष्ट्र के यवतमल जिले के धभादि गांव में चाय पे चर्चा प्रोग्राम रखा गया जिसमे महाराष्ट्र के किसानो की समस्या सुनी गई जिन्हे तबकी सरकार द्वारा नजरअंदाज किया जाता रहा है

एक अनुमान के मुताबिक़ मोदी ने चाय पे चर्चा प्रोग्राम के तहत देश और विदेश की लगभग 4000 लोकेशंस पर लगभग 2 करोड़ लोगों से सीधा संवाद किया और अंदाज़न लगभग 500 करोड़ रुपए एडवरटाइजिंग पर खर्च किए गए, 2014 चुनाव के दौरान मोदी ने लगभग 1350 रैलियों को 3डी टेक्नोलॉजी के माध्यम से सम्बोधित किया जिसमे से लगभग 600 रैलियां चुनाव होने के काफी करीब की गई थी

CAG ने देश भर के बहुत सारे युवा लोगो को इलेक्टोरल प्रोसेस से जोड़ा, CAG के इन्ही युवा लोगो ने वोटर्स अवेर्नेस प्रोग्राम चलाए, डिजिटल मीडिया के माध्यम से वोटर रजिस्ट्रेशन प्रोग्राम चलाया, ऐसे प्रोग्राम कॉलेज और वर्क प्लेस पर चलाए गए, आगे चलकर इन युवा लोगो को CAG ने राज्य, जिले और और राष्ट्रीय स्तर पर इवेंट करके सम्मानित करने का काम भी किया

“मोदी जी आने वाले हैं” एक गाना लाया गया जिसे उदित नारायण ने अपनी आवाज़ दी थी इस गाने को देश के कोने कोने तक पहुंचाने का काम किया CAG टीम और ABVP के युवा कार्यकर्त्ता ने, एक छोटा वाहन लिया जाता जिसे केसरी रंग से रंगा जाता, वाहन पर मोदी और अटल जी की तस्वीर के पोस्टर लगाए जाते, एक 55 इंच की एलसीडी लगाईं जाती जिसपर पार्टी प्रेजिडेंट राजनाथ सिंह और मोदी के मैसेज चलाए जाते,

उत्तर प्रदेश में तो ऐसे काम के लिए जो वाहन चलाए जाते उसे जीपीएस के जरिए मॉनिटर किया जाता था लखनऊ पार्टी दफ्तर में ऐसे हर चलाए जा रहे डाइवर की लोकेशन और पूरा वेरवा बारीकी से रखा जाता था, ऐसे कुल 400 वाहन पूरे उत्तर प्रदेश के हर इलाके को कवर करने के लिए चलाए गए, इसके इलावा मोदी के चेहरे वाले मास्क पूरे उतर प्रदेश में बांटे गए, मोदी के मैसेज लिखे पर्चे पूरे प्रदेश भर में बांटे गए

महिला कार्यकर्ताओं ने अपने हाथों पर मेहँदी और रंगों को मिला के बीजेपी के चुनाव निशान कमल का फूल छपवा लिया था जो देखने में बहुत ही आकर्षित लगता था, ऐसा महिला वोटर्स को आकर्षित करने के लिए किया जाता था, इन महिला कार्यकर्ताओं ने कुल 400 चुनावी छेत्रो में कुल 6 लाख चुनाव बूथों को कवर करते हुए 2 से 3 करोड़ वोटर्स को कवर किया था

कर्नाटक ने चुनाव के समय नमो ब्रिगेड वेबसाइट को लांच करने के बाद ही कुछ 7000 युवाओं ने खुदको रजिस्टर किया, 3 लाख वॉलेंटेर्स ने पार्टी द्वारा दिए गए नंबर पर मिस्ड कॉल करके अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई, इसके बाद बैज और टी-शर्ट्स भी लांच की गई, इन बैजेस ने 140 असेंबली में मोदी के सन्देश को पहुंचाने में कामयाबी हासिल की

कर्नाटक में कुल 20,000 वॉलेंटर्स की एक बड़ी फार्स को उतारा गया इन 20,000 वॉलेंटर्स ने कुल 15 लाख वोटर्स तक पहुंच बनाई वही कर्णाटक असेंबली चुनाव थे जहा साल 2013 में बीजेपी को जबरदस्त हार मिली थी नमो कॉलर ट्यून, नमो रेडियो, नमो एंथम, नमो नमः लॉच करने का मकसद मोदी की गुजरात में मुख्य मंत्री के तौर पे उपलब्धियों को देश की जनता तक पहुंचना था,

कॉलर ट्यून, गाने, स्टोरी टेलिंग के जरिए एक आम आदमी की सोच को मोदी के पक्ष में प्रभावित करने की कोशिस की गई, मोदी के वॉलेंटेर्स वीकेंड में माल्स और रेलवे स्टेशन पर जाके पार्टी का कैंपेन चालते, मुंबई के वानखेड़े स्टैडियम जैसे मशहूर स्थान पर भी मोदी ब्रिगेड ने कैंपेन चलाया गया शहरों में लगे यूनिपोल्स और बिलबोर्ड्स के जरिए भी मोदी का प्रचार किया गया, मोदी के वॉलेंटेर्स ने नमो मोबाइल एप्प बनाया और फेसबुक का खूब इस्तेमाल लिया ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगो तक मोदी और पार्टी का सन्देश पहुंचाया जा सके कॉम्पिटिशन करवाए गए जिसमे जीतने वाले को मोदी ब्रांड की मर्चेंडाइस टी-शर्ट्स दी जाती

वाइब्रेंट गुजरात एक ऐसा प्रोग्राम था जो गुजरात में विदेशो से बिज़नेस आकर्षित करने के लिए लाया गया था पर आगे चलकर इसकी खूब मार्केटिंग की गई इस मार्केटिंग के जरिए यह बात देश की जनता को बताई गई की यह प्रोग्रमम मोदी की वजह से ही संभव हो सका है

मध्य प्रदेश, राजस्थान और वेस्ट बंगाल ने भी वाइब्रेंट गुजरात के जैसे प्रोग्रमम चलाए पर मशहूर सिर्फ मोदी का गुजरात वाइब्रेंट ही रहा, मोदी ने पडोसी देशों और विकसित देशों के प्रति देशी की पालिसी बदल दी, मोदी की ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका विजिट को खूब तारीफ मिली

पोलिटिकल कैंपेन की परिभाषा सिर्फ इतनी है की पहले एक कम्युनिकेशन जरिया है जिसमे सबसे पहले सही मैसेज को ढूंढो, फिर सही टारगेट वोटर ग्रुप को ढूंढो और फिर बार बार एही मैसेज टारगेट वोटर्स तक पहुचावो और कुछ नहीं करना होता है, पर कैंपेन बनाने के समय कुछ जरुरी रिसर्च वर्क जरूर कर लेना चाहिए:

  1. इलेक्शन किस किसम का है और इसके मौजूदा नियम क्या क्या हैं
  2. टारगेट डिस्ट्रिक्ट की विशेषताएँ क्या हैं
  3. वोटर्स की विशेषताएँ क्या हैं
  4. पिछले एलक्शन में क्या क्या हुआ था
  5. इलेक्शन को प्रभावित करने वाले फैक्टर्स कौन कौन से हैं
  6. आपके कैंडिडेट की कमजोरियां और मजबूतियां कौन कौन सी हैं
  7. आपके सभी विरोधियों की कमजोरियां और ताकतें कौन कौन सी हैं

कैंपेन तैयार करते समय कुछ अन्य बातों का भी ध्यान रखें:

  1. आपके टारगेट डिस्ट्रिक्ट में कुल कितने लोग रहते हैं
  2. इस बार के इलेक्शन में कितने लोग वोट देने वाले हैं
  3. टारगेट पोजीशन के लिए कितने कैंडिडेट्स खड़े हैं
  4. इस बार के चुनाव में प्रति कैंडिडेट कितने वोट गिरने का अनुमान है
  5. इस इलेक्शन में कितने कैंडिडेट चुनाव लड़ने के लिए सीरियस हैं
  6. आपकी पार्टी को इलेक्शन जीतने के लिए कितने परसेंट वोट की जरुरत है
  7. प्रति घर में अनुमानित कितने वोटर्स रहते हैं
  8. एक घर में अगर सभी वोटर्स एक ही कैंडिडेट को वोट देने का मन बना रहे हैं तो कितने घर चाहिए ताकि आपके कैंडिडेट को जीत मिल सके
  9. कितने घरों तक आपको मैसेज पहुंचना है ताकि आपके कैंडिडेट को जीतने के लिए जरुरी वोट्स मिल जाएँ

दिल्ली चुनाव में अरविन्द केजरीवाल की पार्टी को सपोर्ट करने के लिए देश के कोने कोने से वॉलेंटेर्स दिल्ली आए थे, कैंपेनिंग टीम ने पंजाब से आए वॉलेंटेर्स को राजौरी गार्डन और तिलक नगर जैसे इलाकों में कैंपेनिंग करने के लिए भेजा तो उत्तर प्रदेश और बिहार से आए वॉलेंटेर्स को पूर्वांचली सीट्स के इलाकों में भेजा ताकि जनता तक पार्टी का पूरा मैसेज आसानी से पहुंच जाए, इनमेसे ज्यादा तर वॉलेंटेर्स काफी पढ़े लिखे और ऊंचे पदों पर तैनात अपनी अच्छी तनख्वा वाली नौकरी छोड़ कर आए थे यह लोग अरविन्द केजरीवाल से देश की पुरानी राजनीतिक सिस्टम को बदलने की उम्मीद रखते थे

वो 2 फरवरी का दिन था जब कन्नौट प्लेस के इलाके में 100 से ज्यादा वॉलेंटेर्स की एक टीम आई जिसने सर पर अरविन्द केजरीवाल की तस्वीर वाली टोपी लगा राखी थी और यह लोग गिटार बजाते हुए, देश भक्ति के गीत गाते हुए लोगो से अरविन्द केजरीवाल के लिए वोट मांगे, कैंपेनिंग का यह तरीका इतना प्रभावी रहा की दूसरी पार्टियों को भी इस तरीके का अनुशरण करना पड़ गया

आम आदमी पार्टी के मुताबिक़ इस बार भी उनके पास फण्ड की बहुत कमी थी जिस वजह से रेडियो पर जिंगल सिर्फ 5 घंटे वो भी सिर्फ पीक घंटों पर चलाए गए और और सिर्फ उन्ही स्थानों पर होर्डिंग लगाए गए जहा कमसे कम 5000 लोगों का फुटफॉल था, पार्टी ने अपने मैसेज में सिर्फ अपने द्वारा पिछली 49 दिन की सरकार के दौरान किए गए कामों को जनता तक पहुंचने की कोशिश की

इनसब बातों से पहले भारत में राजनीतिक लोग यह सोचते थे की सोशल मीडिया का राजनीतिक भविष्य पर कोई ख़ास असर पड़ने वाला नहीं पर यह सोच तब बदल गई जब अन्ना हजारे के आंदोलन ने जनता के दिलों पर अमिट चाप छोड़ दी

चुनाव के दौरान जब नरेंदर मोदी कही भाषण देने जाते तो उक्त राज्य की सरकार इस डर से की ज्यादा लोग मोदी का भाषण न सुन सके इस लिए टीवी को बंद रखने का एहि तरीका था की दूर दराज के इलाकों में बिजली काट दी जाती थी पर मोदी की आईटी टीम ने मोदी के वॉइस और वीडियो प्री रिकार्डेड भाषण सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया करते थे जिससे जब चाहे लोग मोबाइल पर सुन और देख सकते थे इस तरकीब ने मोदी के मैसेज को देश के हर दूर दराज इलाके तक पंहुचा दिया, एक रिपोर्ट के मुताबिक़ उस समय 30 लाख से ज्यादा लोगों ने मोदी का भाषण सोशल मीडिया पर चलने वाले ऑडियो और वीडियो क्लिप्स पर सुना और देखा था, पेम्फ्लेट्स बाँटे गए, कई सारे NGO’s से हाँथ मिलाया गया जो जनता के लिए लम्बे समय से बहुत करीबी से काम कर रह थे, बूथ स्तर पर कैंपेनिंग करवाई गई, डाटा पॉइंट्स बनाएं गए जिसके तहत बीजेपी और कांग्रेस शाषित राज्यों के द्वारा किए गए कामों की तुलना की गई, गाने और कविताएँ बनाई गई, फेसबुक और ट्विटर पर हर अन्य पार्टी के नेता की गतिविधियों से सीख लेके आगे बढ़ा गया

दुनिया भर के देशों के इलेक्शन कैंपेन ख़ास कर ओबामा के इलेक्शन कैंपेन से सीख लेते हुए भारतीय जनता के लिए कैंपेन बनाए गए, जब कहीं मोदी जी को रैल्ली में भाषण देना होता तो उनकी टीम उस इलाके की जरूरतों के हिसाब से भाषण तैयार करती थी, जैसे के जब मोदी कोस्टल एरिया में भाषण देने जाते तो उनकी स्पीच का केंद्र मछवारों की जरूरतों और तकलीफों पर रखा जाता था, जब कोई कांग्रेसी नेता कोई भाषण देता और बीजेपी और मोदी के खिलाफ कुछ बोलता तो मोदी की एक टीम कुछ ही मिनटों में उस भाषण को काउंटर करने लायक पॉइंट्स तैयार कर लेती थी

साल 2004 के चुनाव में बुश और केरी दोनों ने $ 300 मिलियन का खर्च चुनाव कैंपेनिंग पर किया था, अगर साल 2008 के चुनाव की बात की जाए तो मक्कैन ने लगभग $ 400 मिलियन अपने चुनाव कैंपेन पर खर्च किया था तो वहीँ ओबामा ने लगभग $ 800 मिलियन खर्च किया था जो मक्कैन द्वारा खर्च की गई राशि का लगभग दुगना था ओबामा ने अपने प्रतिद्वंदी से तीन गुना ज्यादा पैसा मीडिया पर खर्च किया था वहीँ ओबामा ने अपने प्रतिद्वंदी से लगभग चार गुना ज्यादा पैसा ब्राडकास्टिंग मीडिया पर खर्च किया था वहीँ इंटरनेट कम्पैनिंग पर ओबामा ने पांच गुना ज्यादा पैसा खर्च किया था, ओबामा की  मीडिया स्ट्रेटेजी मक्कैन से बहुत ज्यादा एडवांस थी

ओबामा ने अपने प्रेसिडेंशियल कैंपेन के दौरान कुल 50 लाख लोगो तक पहुंच बनाने के लिए 15 अलग अलग सोशल नेटवर्क्स का इस्तेमाल किया, उन्होंने अपने फेसबुक के 25 लाख फॉलोवर्स, 1.15 लाख ट्विटर फॉलोवर्स, और अपने यू ट्यूब चैनल्स पर 5 करोड़ देखने वालों का इस्तेमाल किया

भारत के मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंदर मोदी दुनिया के चुनिंदा नेतावों मेसे हैं जिन्होंने सबसे पहले माइक्रोब्लॉगिंग साइट ट्विटर का इस्तेमाल शुरू किया था जुलाई 2014 तक नरेंदर मोदी ट्विटर पर फॉलो किए जाने वाले चौथे सबसे बड़ी पसंद बन गए थे

मशहूर पार्श्व गायक उदित नारायण द्वारा गाए गए कॉलर ट्यून को 1 लाख से ज्यादा लोगों ने इंटरनेट से डाउनलोड किया, बीजेपी के लिए बनाई गई इस कॉलर ट्यून को हजारों लोगो ने यू ट्यूब पर ऑफिसियल और कई सारे अनऑफिशियल अकाउंट पर सुना

दिल्ली के चुनाव से 2 माह पहले एक लम्बी चौड़ी टीम काम पर रखी गई जिसमे ज्यादा तर वो युवा थे जो IIT से पढ़ कर अभी निकले ही थे इन लोगों का काम था ट्विटर और अन्य सोशल मीडिया साइट्स पर लोगो की जरूरतों और शिकायतों के बारे पूरी जानकारी रखना जो बातें आम आदमी पार्टी को चुनाव के लिए ध्यान में रखनी थी

आम आदमी पार्टी ने ट्विटर को फेसबुक से ज्यादा इस्तेमाल किया ऐसा इस लिए की ट्विटर पर चुनाव के मध्यनजर फेसबुक से ज्यादा परिपक्य ऑडियंस मौजूद थी, अरविन्द केजरीवाल के ट्विटर हैंडल पर उस समय 70 लाख फॉलोवर्स थे, एक कॉमन टॉपिक पर ज्यादा से ज्यादा लोगो को लाने के लिए हैशटैग का इतेमाल किया जाता है कई तरह के हैशटैग का बहुत कामयाबी से आम आदमी पार्टी ने ट्विटर पर इस्तेमाल किया

अरविन्द केजरीवाल जब कानपूर के दौरे पर थे तब उनकी आईटी टीम ने #kejriwalatkanpur का लगातार ट्रेंडिंग करवाया जिसके तहत देश भर की जनता को लगातार बताया गया की कब कब और कहाँ कहाँ केजरीवाल ने कानपूर में मूवमेंट की

ऑनलाइन फण्ड रेसिंग का काम सबसे पहले साल 2000 में अमेरिका में शुरू हुआ इसके बाद अगले 2 या 3 सालों में यह बात साफ़ हो गई की चुनाव के लिए फण्ड रेसिंग इंटरनेट के जरिए आसानी से की जा सकती है

ओबामा ने अपने चुनाव प्रचार के लिए $300 मिलियन का कुल विज्ञापन सिर्फ ऑनलाइन विज्ञापन पर खर्च किया जिसमेसे 70% पैसा उन्होंने सिर्फ गूगल पर खर्च किया था ,इसी तरह जब ओबामा अपने दुसरे कार्यकाल के लिए चुनाव लड़ रहे थे तब उन्होंने अपने रिपब्लिकन प्रतिद्वंदी से लगभग दुगना पैसा सिर्फ ऑनलाइन विज्ञापन पर खर्च किया था कुछ ऐसे ऑनलाइन कैंपेन चलाए गए जैसे की लिंक दिया जाता जिसे क्लिक करने पर आप ओबामा के साथ डिनर करने का मौका जीत सकते थे और कुछ लिंक ऐसे भी दिए गए थे जिसे क्लिक करने के बाद आप ऑनलाइन ओबामा की पत्नी को मदर्स डे की शुभ कामना दे सकते थे, ओबामा की आईटी टीम के पास 1 करोड़ से ज्यादा मोबाइल नंबर्स का डाटा स्टोर था जो 18 साल से लेकर 27 साल तक के युवा लोगों के नंबर थे, ओबामा की टीम को यह बात अच्छे से पता थी की युवा बच्चे मोबाइल फ़ोन का इस्तेमाल सिर्फ फ़ोन करने और टेक्स्ट मैसेज के लिए ही नहीं करते वो मोबाइल पर गेम खेलने और इंटरनेट चलाने के लिए भी करते हैं, इसी वजह को ध्यान में रखते हुए ओबामा की टीम ने ओबामा रिंगटोन बनाई, ओबमा08 नाम से मोबाइल एप्लीकेशन भी तैयार करवाई जो उपभोक्ता को अपना एड्रेस बुक शेयर करने के लिए कहती जिसका इस्तेमाल ओबमा के वॉलेंटर्स और विज्ञापन चलाने वाले लोग ओबामा के चुनावी मैसेज उपभोक्ता तक पहुंचाने का काम किया करते, आगे चलके इसी डाटा बेस के जरिए ओबामा की टीम ने लोगों को लोकल इवेंट्स तक खींच लाने का बड़ी सफलता से काम किया, चुनाव प्रचार के दौरान ओबामा की टीम ने 1800 चुनावी प्रचार से जुड़े वीडियो ऑनलाइन अपलोड किए, जो 15 सेकण्ड्स से लेकर 40 मिनट्स तक हुआ करते थे, इन वीडियोस को लगभग 11 करोड़ बार ऑनलाइन देखा गया

चुनावों में फण्ड जुटाने के कई अलग अलग तरीके अब तक इस्तेमाल किए जाते रहे हैं जिसमे पार्टी के सदस्यों द्वारा दिया जाने वाला फण्ड, खुद चुने हुए नेतावों द्वारा दिया जाने वाला फण्ड, पार्टी से बाहर की फर्मों दवरा दिया जाने वाला फण्ड, कुछ यूनियंस द्वारा दिया जाने वाला फण्ड और कुछ अन्य ऑर्गनाइशेशंस द्वारा दिया जाने वाला फण्ड प्रमुख हैं, आज के जमाने में राजनीतिक पार्टियां ऑनलाइन डोनेशंस और डायरेक्ट ईमेल का इस्तेमाल करके भी फण्ड जुटा रही हैं,फेसबुक, ट्विटर और गूगल हैंगआउट्स ने भी पार्टियों को ऑनलाइन डोनेशंस देने वालों से जोड़ दिया है इसी तर्ज पर भारत में दिल्ली चुनाव के दौरान केजरीवाल की टीम ने मोबाइल एप्प शुरू किया जिसका नाम आप का दान रखा गया

भारत में मुंबई में रघु राम MTV रोडीज़ ने आप के लिए एक डिनर इवेंट प्लान किया जिसमे अरविन्द केजरीवाल के साथ डिनर करने वाले को Rs.20,000/- पटरी को डोनेट करने होते थे, इसी तरह बेंगलुरु में केजरीवाल के साथ सेल्फी लेने का इवेंट प्लान किया गया जिसमे पर सेल्फी के एवज में सेल्फी लेने वाले को पार्टी को डोनेशन देना होता था चुनाव प्रचार के लिए ली जाने वाली राशि को इनकम टैक्स में छूट दी जाती है ऐसा इस लिए है की इनकम टैक्स के सेक्शन 80GGC में ऐसा प्रावधान है

साल 2014 के चुनाव में देश की जनता ने पहले कांग्रेस के खिलाफ लगे भ्रस्टाचार के आरोपों की वजह से नरेंदर मोदी के पक्ष में वोट देकर केंद्र में नई सरकार बनाई, फिर अगले 6 माह बाद ही दिल्ली में जब चुनाव हुए तो दिल्ली की जनता ने केजरीवाल को दिल्ली की सत्ता की चाभी सौंपी क्योकि जनता को लगने लगा था की कही बीजेपी को यह भ्रम न हो जाए की देश की राजनीती में उसकी मॉनोपोली बन गई है

आने वाले चुनावों में राजनीतिक पार्टियों को इस बात का धान रखना होगा की सेन्सस 2011 के मुताबिक भारत की जनता की कामकाज उम्र(15 साल से 64 साल), यह कुल जनसँख्या का 63.4% बनता है, साथ ही साल 2020 तक भारत दुनिया का सबसे युवा जनसँख्या वाला देश बन गया था भारत की जनता की औसत उम्र है 29 साल

जनता की भलाई की बात तो अनेकों नेता सालों से करते आए हैं पर अच्छा नेता वही साबित हो सकता है  जिसके पास वादे करने से पहले एक सही रोड मैप हो जो यह साबित कर सके की किए जाने वाले वादे कैसे पूरे किए जाएँगे साथ ही नेता को यह भी ध्यान रखना चाहिए की पूरा रोड मैप पार्टी एजेंडा के हिसाब से ही बना हो , इसके इलावा एक कामयाब नेता को ऊर्जा से भरपूर होना चाहिए, जो कभी भी हार न मानने वाली सोच का मालिक हो, नेता में इतनी ऊर्जा होने चाहिए की वो एक रैली के बाद दूसरी को सम्बोधित करने के लिए तैयार रहे, एक सफल नेता में दबावों को सहने की शक्ति हो और आलोचना को झेलने की हिम्मत हो

चुनाव हो जाने के बाद नेतावों को कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए, जैसे की अगर किसी नेता के पक्ष में चुनाव सर्वे आने लगे तो उसे अपनी क्रेडिबिल्टी को और बढ़ने की तरफ कोशिस करनी शुरू कर देनी चाहिए, अगर चुनाव सर्वे पक्ष में नहीं है तो क्रेडिबिलिटी बढ़ने से भी जीतने की संभावना कम ही रहेगी

दिल्ली चुनाव से एक दम पहले 27 जनवरी 2015 को दिल्ली से मुख्य मंत्री पद के लिए बीजेपी की तरफ से चुनाव लड़ रही किरण बेदी का NDTV के रविश कुमार के साथ एक इंटरव्यू था जिसमे किरण बेदी सवालों से भागती हुई नजर आई, किरण बेदी ने इंटरव्यू का ढंग से सामना तक नहीं किया, यह बात जनता के सामने उनकी कमजोरी के रूप में पेश हो गई, नेतावों को ध्यान रखना होगा की चुनाव से एक दम पहले होने वाले हर इंटरव्यू का वो ध्यान रखे और किसी भी सवाल के सामने खुदको कमजोर साबित न होने दें, किरण बेदी ने तो इसके बाद एक मीडिया मैनेजर तक अप्पोइंट कर दिया जिस वजह से जनता में उनकी नेगेटिव इमेज बन गई

नेतावों और राजनीतिक पार्टियों को ध्यान रखना होगा की उन्हें हर चुनावी बूथ को सीरियसली लेना होगा वरना एक मजबूत कैंपेन करने के बाद भी आप चुनाव हार जाएँगे, इस बात पर साल 2014 चुनाव में बीजेपी की स्ट्रेटेजी वन बूथ टेन यूथ याद की जानी चाहिए जिसे बीजेपी ने उत्तर प्रदेश चुनाव में बखूबी लागु किया था

राजनीतिक पार्टियों के वॉलेंटेर्स को चुनाव से एक रात पहले या फिर चुनाव वाले दिन सुबह जाके जनता को याद दिलाना चाहिए की वो समय पर आके उनकी पार्टी को वोट दे, साथ ही ध्यान रखना चाहिए की जो वोटर्स दूर दराज इलाकों से आएंगे उन्हें किसी समस्या का सामना न करना पड़े, इसके इलावा जो लोग पहली बार वोट डालने आएंगे उन्हें और बुजुर्ग वोटर्स को बूथ तक आने जाने और सिस्टम की जानकारी से जुडी कोई समस्या न होने पाए

वॉलेंटेर्स को ध्यान रखना चाहिए की कोई पार्टी फर्जी वोटिंग न करवा सके अगर ऐसा होता है तो वॉलेंटेर्स को चाहिए की वो समय रहते इसकी शिकायत करें, वोट डालने आए लोगो की शिनाख्त करना और उन्हें वोटिंग पर्ची देना एक जरुरी काम है वॉलेंटेर्स को चाहिए की पहली बार वोट डालने आए लोगों को वो सही बूथ तक पहुचाएं और इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग की स्थिति में मशीन का इस्तेमाल करने की जानकारी भी दें

Sources- BOOK name “ swinging The Mandate” By, Dhiraj Sharma and Narayan singh rao, source websites: www. theguardian.com,  www. swingleft.org

note: pictures have taken from internet but note for commercial purpose

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